7-2-2014 को मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया था, उसका कई हिस्सा इस बार भी दुहाराया गया है। ताजे आदेश में स्पष्ट लिखा है कि एक साल के अंदर 4 किश्तों में वर्कर के बकाया राशि का भुगतान मालिकान करें. यानि इस आर्डर के मुताबिक तीन माह बाद अगर वर्कर का पैसा नहीं मिला तो वर्कर फिर से माननीय सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे. जब तीन की बजाय 6 माह में भी वर्कर को पैसा मिलने लगेगा, तब नए क्रांतिकारियों की भीड़ डीएलसी और लेबर कोर्ट में जरूर देखने को मिलेगी.
उल्लेखनीय है कि मजीठिया देने से अब मालिकान बाल बाल नहीं बच पाएंगे. उन्हें हर हाल में वर्करों को पैसा देना होगा. वह भी फिक्स डिपॉजिट के अंदाज़ में. मालिक अब सुप्रीम कोर्ट की गिरफ्त में फंस चुके हैं और इस बार अगर उन्होंने अवमानना की, उनका बाल बाल बचना मुश्किल होगा और ऐसा होने पर उनके प्रिय प्यादे को खुद को बाल बाल बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं मिलेगा. कुल मिलाकर यह तय है कि अब मजीठिया का भूत अख़बार मालिकानों और उनके प्यादों को जगे में भी डराता रहेगा.
अब यह भी तय माना जा रहा है कि कंपनियों के जो बड़े प्यादे हैं, जो सीनियर होने की हेकड़ी दिखाते हैं, वे खुद को होश में रखेंगे. वे अपने वर्करों से बहला कर, पुचकार कर, प्यार से बातें करके काम निकलना चाहेंगे, क्योंकि उन्हें पता है कि अगर कोई कर्मचारी भड़का, तो मामला जंगल की आग जैसा हो जाएगा. हर कोई सीना तान कर केस करने निकलेगा. ऐसा होने पर प्यादे अपनी नौकरी को बाल बाल बचाना चाहेंगे लेकिन बचाना बेहद मुश्किल होगा.
उल्लेखनीय बात यह भी है कि जो कर्मचारी, चाहे वह दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान, प्रभात खबर, अमर उजाला, पंजाब केसरी आदि का हो, अगर उसने संसथान में तीन साल से अधिक समय गुजार लिया है, तो वह इस लड़ाई को बड़े मज़े से लड़ सकता है. बस थोड़ा संयम रखना होगा और उन्हें एक साल के लिए आर्थिक रूप से मज़बूत भी होना होगा. यहाँ स्पष्ट है कि इससे कम अवधि संस्थान में गुजरने वाले साथी से धैर्य से काम लें और वक़्त का इंतज़ार करें. अवसर उनके लिए भी आएगा.
हाँ तो कुल मिलाकर 3 साल नौकरी करने वाले साथी अगर केस में आते हैं तो कम से कम 10 से 15 लाख तो उन्हें मिलेगा ही. फिर जितने दिन केस लड़ेंगे, उसका भी पैसा उसमें जुड़ेगा. चूँकि आपने रिजाइन नहीं किया है और प्रताड़ित होकर केस किया है. अगर कंपनी ने नो एंट्री लगा दी, तो कुछ और काम करते रहिए और केस लड़िये, रोज मेल पर अपनी हाजिरी भेजते रहिए कि हम तो काम करने गए पर हमें रोक दिया गया इसलिए मेल से उपस्थिति कुबूल करें. इसके डाक्यूमेंट्स को इकट्ठा करते रहिए और कोर्ट में लगाते रहिए.
अगर नौकरी इस दौरान भी चलती रही, तो फिर आपकी बल्ले बल्ले है, क्योंकि देनदारी से बचने के लिए अगर कंपनी कुछ भी करती है, जैसे ट्रांसफर, सस्पेंशन या टर्मिनेशन, तो उन्हें इसका खामियाजा भुगतना होगा. एक्ट इसकी भी इजाजत नहीं देता. याद रहे कि अगर आप इसके लिए तैयार रहेंगे, तो मालिकानों के ये प्रिय प्यादे आपसे हमेशा डरेंगे और अपनी नौकरी बाल बाल बचाने में जुटे रहेंगे. कुल मिलाकर चैन से जीना है तो जाग जाइये….
मजीठिया क्रन्तिकारी और वरिष्ठ पत्रकार रतन भूषण के फेसबुक वॉल से.
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kashinath matale
June 25, 2017 at 1:02 pm
BAHOT HI SARAL AUR SIDHI BHASHA ME SENIOR JOURNALIST SHRI RATAN BHUSHAN JI NE BATAI HAI. UTSAHAVARDHAK LEKH HAI. WAH MAJA AA GAYA. LADHNEKI UMMID/DHADHAS BADH GAYA HAI.
LACHARI SE JINE SE ACCHA HAI LADHKAR MARNA.
Sameer
June 27, 2017 at 4:24 am
Arey bhai ab kyon bekasoor karamchariyon ko jhuti dilasa de rahe ho…Sar aadmi iss baat se wakif hai ki milega ab ghanta…Jab sc ne apna palla jhad liya to labour court kyon marega.wo b tab jab waha ke employee aur labour commissioner khud paisa khate hai..Shame on u