Jayram Shukla : ये कौन? मीडिया के इस बातूनी चेहरे को भला कौन नहीं जानता.. उस दिन गृहमंत्री द्वारा रफेल की पारंपरिक पूजा में नीबू-मिर्च लगाकर पूरा प्राइम टाइम होम दिया था। आज सूर्य भगवान की आराधना हेतु छठ की पूजनसामग्री लेकर निकला है। बहरहाल यह वैसे ही है जैसे कुछदिन पहले कामरेड सीताराम येचुरी सिर पर कलश लेकर निकले थे. दबी में ही सही, अपनी संस्कृति- परंपरा से जुड़े रहना अच्छी बात है।
हमारे शहर में कुछ समय के लिए एक भीषण वामपंथी समालोचक आए..दिनभर ‘संघियों’ को पानी पी-पीकर गाली देने वाले इन कामरेड शिरोमणि की पोल उस दिन खुल गई जब वे रिटारमेंट के बाद अपनी नौकरी का विस्तार पाने की लालसा में एक ‘संघी प्रचारक’ के चरणों पर विनयवत् होते पकड़े गए। वैसे इन कामरेडों के कुर्ते कमीज के अंदर झाँकिए तो ग्रह-नक्षत्रों को साधने के लिए गले भर गंड़े-ताबीज मिल जाएंगे।
हालात के मारे मेरे एक कामरेड़ी बौद्धिक ने अपना वस्त्र, वाहन, मकान सबकुछ लाल रंग से रँग ड़ाला…खोजने पर पता चला यह लालिमा वोल्सेविक या माओ की क्रांति की नहीं अपितु ‘मंगल’ को साधने के लिए है..उन्हें जिसकी हिदायत एक ज्योतिषी ने दी थी। एक कामरेडी बौद्धिक का हाल यह कि वे साहित्यिक संगोष्ठियों में जाने से पहले हनुमान चालीसा पढ़ा करते हैं। मैं उस दिन चकित रह गया जब उनके बेटे मुझसे कहा -अंकल बैठिए पापा पूजा कर रहे हैं। मार्क्स-लेनिन के पोट्रेट लगे ड्राइंग रूम में इंतजार करते हुए सोच ही रहा था कि देखो ये कैसे अपने बजरंगबली के अंतःपुर में लुका कर रखे हैं..इतने में वे लाल-देह-लाली लसै, हें..हें करते आ गए..।
मैंने पूछा- कामरेड ये दिलबदल कब से ? वे बोले पिताजी बजरंगबली को विरासत में दे गए थे..यह बताते हुए कि ये हमारे कुलदेवता हैं..तो मरते क्या न करते पूजना पड़ता हैं..वैसे इसमें हर्ज ही क्या..लाल देउता कम्युनिस्टन के ..और अपने बजरंगबली तो सर्वहारा के लीडर हैं..! मुझे छत्तीसगढ़ के उस गंगाराम की याद आ गई जिसका पादरियों ने ईसाईकरण करते हुए उसे ‘माइकल गैंगरम’ बना दिया था। एक दिन किसी ने उसे गाय को रोटी देते हुए देख लिया और पूछा- अब तो यह ईसाई है..तो फिर गाय को रोटी क्यों..? गंगाराम उर्फ माइकल गैंगरम ने..अपना कान पकड़ कर राम-राम करते हुए कहा- ईसाई बन गया तो क्या अपना धरम छोंड़ दे..।
अब पांडेजी भले ही प्राइमटाइमर रवीश बन गएं हों..। क्या अपना धरम थोड़ी न छोड़े हैं..। उजाले और अँधेरे के इस गड्डमड्डगड्ड को कुछ तो समझा करो यार! यहां के सारे कम्युनिस्टी भी गंगाराम से कामरेड गैंगरम बने हैं..विचारों के इस द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के चलते, समय रहते ये बेचारे गंगासागर में मकरसंक्रांति के सूर्य की आराधना के लिए जुटने वाले ‘करोड़ों सर्वहाराओं’ को समझ नहीं पाए .इसीलिए बंगाल की खाड़ी में, ‘बकरलेंड़े’ की तरह डूब गए..!
Rajneesh Jain आज वाम की जगह वामा हैं, सिर पर टोकरी जिसे दूसरों के सिर पर देख कर “अंधविश्वास” का बोझ कह दिया करते थे। …यह जो करना “पड़ता” है न यही है सरलता, तरलता जो लोक में बहती है। … देश काल परिवेश की अवस्थाओं में लोक मजबूर हो जाता है, अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा होता है पर मरता नहीं, अपनास्वभाव नहीं छोड़ता। यही वह लोक है जिसे कूपमंडूक कह दिया करते थे।
Shantanu Tripathi पीछे पुलिसकर्मी क्या आपकी सुरक्षा में हैं रवीश भाई।
Udit Tiwari आप मोदी से कम हैं क्या? देखो, पीछे -पीछे गारद चल रही!
Shatrughan Saini आपके रिवाज़ रिवाज़ हैं और बाकि देश के लोगों के रिवाज़ ढकोसला और अंधविश्वास हैं ..क्यों ठीक है ना रवीश कुमार …
Manoj Singh टीवी चैनल पर राफेल की पूजा का कितना भी मजाक बना लो रवीश कुमार जी पर घर मे माता जी की छड़ी पड़ने पर वापिस लाइन पर आ ही जाओगे..!
Naved Shikoh पूजा का मज़ाक किसी ने नहीं उड़ाया था, नीबू के टोटके का मजाक उड़ाया गया था।
Raghwendra Pratap Singh नीबू का टोटका हिंदू धर्म में बहुत महत्व रखता है। वो पूजा पद्धति का एक हिस्सा है हमारे यहाँ।
Naved Shikoh मेरी जानकारी में नीबू का टोटका मुसलमान ज्यादा करते हैं। मुस्लिम घरों और दुकानों में नीबू और मिर्चें लटकी देखी जा सकती हैं। चौराहे पर नीबू काटने का अंधविश्वास हिन्दू मुसलमानों में बराबर का है। राफेल के साथ नीबू के टोटके की पहला व्यंग्य मैंने किया था। सनातन धर्म के करीब आठ-दस जानकारों, विद्वानों, पंडितों और पूजा पाठ से जुड़े लोगों ने मुझे तो ये बताया था कि सनातन पूजा पद्धति में नीबू के टोटके का ज़रा भी स्थान नहीं है।
Vinod Srivastav नींबू पूजा का नहीं तंत्र मंत्र का हिस्सा और दोनों का फर्क आप जानते होंगे. पूजा जन कल्याण और स्वकल्याण के लिये की जाती है और तंत्र मंत्र स्वयं सिद्धि और दूसरे को हानि पहुंचाने के लिये की जाती है।
Vasant Gupta मोदी जी खुद एक सभा में नीम्बू मिर्ची पर दूसरे नेता पर तंज़ कसते नज़र आ रहे हैं..
Arun Akash कथनी और करनी में यही अन्तर है
Amit Guru परम्परा, संस्कृति और अध्यात्म अलग है!, जोग टोक,काला जादू अलग। आप राजनाथ जी के जोग टोक पर हुए हमले से अभी उबर नही पाए।
रेवती रमण शर्मा धर्म को अफीम की गोली और राफेल की पूजा को ढ़कोसला बताकर शस्त्र पूजा का मजाक उड़ाने वाले देश के बड़के पत्रकार की घर वापसी.. भगवान भास्कर इस “कौन जात हो” वाले हिंसक गिद्ध को सद्बुद्धि दें और इनके हृदय से देशद्रोह की कालिमा को अपने तेज से समाप्त करके इन्हें अपनी उर्जा देशहित में उपयोग करने हेतु प्रेरित करें। यही आशा है और प्रार्थना भी है। जय छठ मैया
दुर्गा दत्त पाण्डेय राघवेन्द्र जी, इसी पूजा पद्धति के विषय में आज के प्रधानमंत्री ने भूतकाल में एक बयान दिया था….. उस बयान से इस लेख को जोड़कर लिखते तो सोने पे सुहागा होता।
Sushil Kumaar Singh नीबू का टोटका हिन्दू पद्दति का हिस्सा नहीं है !
राय मयंक नींबू यदि टोटका है तो बलात्कारी मौलवियों की मजार की चादर क्या निमोनिया से बचाने के लिए डालते हो मुर्दे पर? 10 फ़ीट जगह 1 मुर्दे को क्यों चाहिए?
O.p. Singh Parihar गुड़ खाए, गुलगुले से परहेज……
Rishi Kumar Singh Srinet सबसे बड़ा नौटंकीबाज है ये।
Sanjeev Singh टोटका और पूजा में अंतर समझिये भाई। माना रविश को इस तस्वीर में देखकर आपकी बांछे खिल गयी होंगी।
Raghwendra Pratap Singh दूसरे को ढोंग बताकर खुद ही ढोंग नहीं करना चाहिए। इसीलिए किसी के पूजापाठ पर कभी टिकटिप्पड़ी नहीं करना चाहिए ये रवीश कुमार को ध्यान रखना चाहिए।
Satyendra Tiwari आस्था और अंधविश्वास दोनो इतर हैं… अन्तर नहीं समझे तो आप अपने साथ अन्याय करेन्गे…
Vasant Gupta मोदी जी खुद एक सभा में नीम्बू मिर्ची पर दूसरे नेता पर तंज़ कसते नज़र आ रहे हैं..
Sanjeev Kumar अगर रवीश कुमार का मज़ाक उड़ाने की ठान ही लो, तो उनके नीले कुर्ते का भी उड़ाया जा सकता है।
Brijesh Singh यदि आप किसी का मज़ाक उड़ाते हैं तो प्रकान्तर से उसका प्रचार करते हैं। रवीश जैसे सैकड़ों पत्रकार नकारात्मक प्रचार द्वारा मोदी की लोकप्रियता को और बढ़ा रहे हैं।
Dhiraj Kumar यही था न जो राफेल की पूजा को ढकोसला बता रहा था..?
Kundan Vashishtha राफेल और छठ में कैसी समानता?
Dhiraj Kumar आप समझ नहीं पाये। पूजा पर सवाल उठाने वाले ही पुजारी के रूप में अपनी ब्रांडिंग कर रहे हैं।
Azad Ashraf आस्था और आम पूजा मे कोई फर्क नहीं है क्या। और हाँ उसे कोई ब्रांडिंग करने की जरुरत नहीं वह अपने आप मे खुद एक ब्रांड है।
Shikha Bhargaw अब मौलवी साहब सिखायेंगे कि पूजा और आस्था में क्या फर्क है..
Kundan Vashishtha शायद मैं सही समझ रहा हूँ, वस्तु की पूजा से वास्त्विक पूजा महत्वपूर्ण है।
Ranjan Singh Bhaiya Mai aap ka bahut adhik respect karta hu lekin Bihari hu aur Ravish ke mathe par Daura ka comment acha nahi laga
Dhiraj Kumar अगर आपकी भावनाओं को ठेस पहुंचा तो क्षमा प्रार्थी हूँ, लेकिन मेरा मानना है कि अगर आप खुद पूजा के समर्थक हैं तो दूसरे की पूजा और भावनाओं की निंदा नहीं करनी चाहिये।
Satender Sharma ये व्यक्तिगत आस्था है. जैसे मोदी जी देश के मुसलमानों की टोपी तो नहीं पहनते लेकिन विदेशी शेखों की पूरी ड्रैस पहनने को तैयार रहते हैं. घरेलू आस्था और अंतरराष्ट्रीय आस्था में फर्क लाजिमी है.
Adv Shailesh Chaudhary पहिये से निम्बू दबाना और दौरी उठाना में शायद फर्क है
Shiv Shankar भक्ति का ऐसा खुमार उठा है। कि परम्पराओं को भी ताक पे रखने में हर्ज नहीं। भाई रवीश कुमार जी अपनी परम्परा निभा रहे हैं और वो नहीं भूले अपनी जमीन… जो भूल गए वो है?
DrRaju Ranjan Prasad यह तो परीक्षा दे रहा है बेचारा!
सौजन्य : फेसबुक
शाहनवाज़ हुसैन ख़ान
November 4, 2019 at 7:24 pm
रविश एक ईमानदार व निडर प्रेस रिपोर्टर हैं। उनका सम्मान बस यहीं कारण हैं। , जबकि आज की मीडिया 80 प्रतिशत अपने को बेचने में लगी है ,वो कहते हैं ना लल्लो चप्पो ।
आज के पत्रकारों को रविश कुमार की तरह पत्रकारिता की परिभाषा समझना व भृष्ट नोकरशाही को समझाना भी चाहिए न की अपना उल्लू सीधा आज तो मैं पिता ।