Nitin Thakur : क्या रवीश कुमार के शो की टीआरपी ना आने की वजह से किसी को दस्त लग सकते हैं? जी हां, लग सकते हैं। एक जाने-माने दरबारी विदूषक (विदूषक सम्मानित व्यक्ति होता है, दरबारी विदूषक पेड चाटुकार होता है) का हाजमा खराब हो गया और उसने मीडिया पर अफवाह फैलाने वाली एक वेबसाइट का मल रूपी लिंक अपनी पोस्ट पर विसर्जित कर दिया। कई बार लोग जो खुद नहीं कहना चाहते या लिखने की हिम्मत नहीं जुटा पाते वो किसी दूसरे के लिखे हुए का लिंक डाल कर बता देते हैं।
वेबसाइट चुगली कर रही थी कि रवीश के शो की टीआरपी ना आने की वजह से अब चैनल उनके प्रोग्राम का विश्लेषण कर रहा है। हां, वेबसाइट ने ये नहीं बताया कि बाई द वे एनडीटीवी के कौन से प्रोग्राम की टीआरपी आ रही है। टीआरपी के आधार पर तो पूरा चैनल ही विश्लेषण के दायरे में है, लेकिन लिखनेवाले की शैली से पता लग रहा है कि उसका इंटरेस्ट लिखने में कम बल्कि रवीश के खिलाफ प्रचार में ज़्यादा है। आखिर कोई रवीश कुमार के नाम के आगे ब्रैकेट में पांडे यूं ही तो नहीं लिख देगा। ये बात और है कि पूरे लेख में लेखक बेचारा रवीश के नाम की स्पैलिंग तक ठीक लिखने में भटक रहा है मगर जाति का ज़िक्र करना उसे बहुत ज़रूरी लगा (और इस तरह के कच्चे लेख को छापना दरबारी विदूषक को भी ज़रूरी लगा)।
आगे बता दूं कि ‘रवीश कुमार के शो की टीआरपी नहीं आ रही’ ये बताते हुए लेखक को इस बात का ज़िक्र करना बहुत आवश्यक लगा कि रवीश के भाई को बिहार में कांग्रेस से टिकट मिला था। इन दोनों बातों का आपस में कनेक्शन सिर्फ वो लोग ही जोड़ सकते हैं जिन्हें शो और उसके कंटेंट से ज़्यादा रवीश की जाति और उनके भाई के चुनाव में रुचि है। मुझे शो और उसके एंकर से सवाल करने पर कोई आपत्ति नहीं है, वो खूब करें लेकिन लेख की भाषा और खबर से इतर अफवाहें फैलाने से मुझे एक खास किस्म की सोच वालों के जलने की बू आ रही है। वैसे भी रवीश कुमार के प्रति इनकी झल्लाहट और उसकी वजह किसी से छिपी नहीं। एक बात मैं लेख लिखनेवाले अद्भुत प्राणी से जानना चाहूंगा।
लेख की शुरूआत में उसने लिखा, ‘सरोकार की बात करने वाले एंकर्स भी लाखों की सैलरी पाते हैं ‘, मैं ये नहीं समझ पाया कि लाखों की सैलरी पाने में सरोकार कहां से बाधक बन गए? एंकर चोरी कर रहा है, डाका डाल रहा है या अपराध कर रहा है? संस्थान ने एंकर के साथ कॉन्ट्रैक्ट किया और सैलरी दी, इसमें ये सरोकार किस ढंग से बिखर गए? जब अफवाह फैलाते लेख लिखने से सरोकारों को चोट नहीं पहुंच रही तो किसी इंसान को मेहनत का ठीक मेहनताना मिलने से सरोकारों की कौन सी हत्या हो रही है? तुम क्या चाहते हो कि पत्रकार ज़िंदगी भर झोला ही उठाए फिरे?
एंकर क्या हर पत्रकार को लाखों में सैलरी मिलनी चाहिए, ताकि उसे घर चलाने के लिए कोई झूठ बोलने वाली वेबसाइट ना चलानी पड़े और उस पर हिट्स के लिए किसी दरबारी विदूषक से फेसबुक पर लिंक शेयर की गुज़ारिश ना करनी पड़े। वैसे ‘सूत्रों’ के मुताबिक इस अफवाह फैलानेवाली वेबसाइट का लिंक शेयर करनेवाले दरबारी विदूषक महोदय को भी लाखों में सैलरी मिलती है और उसके सरोकार झूठ फैलाने वाले लिंक डालने के बावजूद बरकरार हैं।
सोशल मीडिया के चर्चित राइटर नितिन ठाकुर की एफबी पोस्ट.
समरजीत
February 2, 2017 at 11:56 am
रवीश कुमार के शो को टी आर पी नही मिलती है मतलव साफ है इस आदमी से पुरा देश नफरत करता है, अफजल गुरू और याकुब मेनन का समर्थन कोई वेबजह नही करता है, भागलपुर से पाकिस्तान आम का ट्रक ऐसे ही नही जाता कुछतो कनेक्सन है!