Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

रवीश की यही समझ उन्हें बड़ा बनाती है

Shambhunath Shukla : टीवी न्यूज चैनलों में Ravish Kumar एक शानदार एंकर ही नहीं है या वे महज न्यूज चयन में सतर्कता बरतने वाले बेहतर टीवी संपादक ही नहीं अथवा आम आदमी के सरोकारों के प्रति आस्था जताने वाले पत्रकार ही नहीं है वरन उनकी असल खूबी है उनकी सामाजिक सरोकारों के प्रति आस्था। एक ही उदाहरण काफी होगा जब कल उन्होंने एक वृद्घ से बात करते हुए कहा कि बेटियां न होतीं तो क्या होता! इस एक वाक्य ने हम पति-पत्नी को भिगो दिया। मुझे खुशी हुई यह सुनकर।

<p><img class=" size-full wp-image-15527" src="http://www.bhadas4media.com/wp-content/uploads/2014/08/images_abc_news2_shambhunathshuklaji.jpg" alt="" width="829" height="259" /></p> <p>Shambhunath Shukla : टीवी न्यूज चैनलों में Ravish Kumar एक शानदार एंकर ही नहीं है या वे महज न्यूज चयन में सतर्कता बरतने वाले बेहतर टीवी संपादक ही नहीं अथवा आम आदमी के सरोकारों के प्रति आस्था जताने वाले पत्रकार ही नहीं है वरन उनकी असल खूबी है उनकी सामाजिक सरोकारों के प्रति आस्था। एक ही उदाहरण काफी होगा जब कल उन्होंने एक वृद्घ से बात करते हुए कहा कि बेटियां न होतीं तो क्या होता! इस एक वाक्य ने हम पति-पत्नी को भिगो दिया। मुझे खुशी हुई यह सुनकर।</p>

Shambhunath Shukla : टीवी न्यूज चैनलों में Ravish Kumar एक शानदार एंकर ही नहीं है या वे महज न्यूज चयन में सतर्कता बरतने वाले बेहतर टीवी संपादक ही नहीं अथवा आम आदमी के सरोकारों के प्रति आस्था जताने वाले पत्रकार ही नहीं है वरन उनकी असल खूबी है उनकी सामाजिक सरोकारों के प्रति आस्था। एक ही उदाहरण काफी होगा जब कल उन्होंने एक वृद्घ से बात करते हुए कहा कि बेटियां न होतीं तो क्या होता! इस एक वाक्य ने हम पति-पत्नी को भिगो दिया। मुझे खुशी हुई यह सुनकर।

मेरी तीन बेटियां हैं और दो बहनें भी। सब रोज फोन करती हैं कैसे हो भैया और कैसे हो पापा। न कोई बेटा न कोई भाई। मगर बेटियां या बहनें कोई बेटे या भाई से कमतर तो नहीं। यह अलग बात है कि हर कोई कहता रहता है कि एक बेटा होता तो अच्छा होता। खाक अच्छा होता! मुझे अपने मरने के बाद कोई धार्मिक कर्मकांड नहीं कराना और जिनके घर बेटे होते हैं तो आमतौर पर देखता हूं कि बेटे की नौकरी के बाद वे भी अलग-थलग रह जाते हैं। अथवा बेटे की शादी होती है तो बहू से पटी न पटी तब फिर क्या! इससे तो बेटियां-बहनें अच्छी माँ-बाप व भाई की पीड़ा को समझती हैं और हर कष्ट या पीड़ा में सहायक होती हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कुनबा बेटियों से बढ़ता है बेटे तो अलग रहते व बसते हैं। बेटियों के प्रति संवेदनशील हो समाज। बेटियों को सम्मान दोगे तो तय मानिए कि बहू भी खुद को सम्मानित महसूस करेगी। वाकई रवीश की यही समझ उन्हें बड़ा बनाती है। मैं तो चाहूंगा कि रवीश सदैव ऐसे ही सामाजिक सरोकारों के प्रति जागरूक बने रहें।

वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला के फेसबुक वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. pawan

    February 8, 2015 at 9:08 am

    काफी दिनों से भाई रवीश कुमार के प्राइम टाइम में नज़र नहीं आए हैं, शंभुनाथ शुक्ला जी। सोमवार को लगता है होगी मुलाकात।

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement