Khushdeep Sehgal : भाई रवीश कुमार को पूर्व क्षमायाचना के साथ बिना मांगे सलाह… वरिष्ठ पत्रकार रवीश कुमार को सोशल मीडिया पर एक विशेष विचारधारा के लोग हड़का रहे है, अपशब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं…ऐसा करके वो अपनी दूषित मानसिकता का परिचय दे रहे हैं,,,उनसे सुधरने की किसी तरह की उम्मीद करना बेमानी है…लेकिन समझ नहीं आ रहा कि रवीश क्यों उनकी बात पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं…ऐसे लोगों की पूरी तरह अनदेखी करना ही श्रेयस्कर है…इन्हें ज़रा सा भी तूल दो तो इनका उद्देश्य हल हो जाता है..
ऐसे ही मुद्दे पर मुझे शाहरुख़ ख़ान की ओर से एक हालिया इंटरव्यू में कही बात बहुत पसंद आई थी…शाहरुख़ की हर फिल्म रिलीज़ होने से ठीक पहले उनकी देशभक्ति को लेकर सवाल उठाए जाते हैं…शाहरुख़ से पूछा गया था कि आप इन लोगों को जवाब क्यों नहीं देते…शाहरुख़ ने कहा था कि मैं हर बार क्या जवाब दूं…कि मैं बहुत बड़ा देशभक्त हूं…शाहरुख़ ने कहा कि इतने बरस इंडस्ट्री में रहते उन्होंने ऐसी बातों के बीच जीना सीख लिया है…शाहरुख़ ने एक और बहुत अहम बात कही…उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर कोई भी अपनी बात कह सकता है…सोशल मीडिया का मतलब ही यही है…शाहरुख़ ने कहा कि जब मैं खुद सोशल मीडिया का इस्तेमाल करता हूं तो दूसरों को कैसे कुछ कह सकता हूं… शाहरुख़ ने साथ ही कहा कि ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है…भारत में अच्छे लोगों की और अच्छे काम की कद्र करने वालों की संख्या बहुत है..
इस मामले में वैसे भी रवीश कुमार को सलाह देने वाला मैं कौन होता हूं…उन्हें पूरा अधिकार है कि वो जैसे चाहे सोशल मीडिया का इस्तेमाल करें…जिस मुद्दे पर चाहें, जिसे चाहें जवाब दें…मेरा अनुरोध बस इतना है कि रवीश कुमार जैसों की इस देश को खास तौर पर पत्रकारिता को बहुत ज़रूरत है..वो ऐसे सिरफिरों की हरकतों पर अपनी ऊर्जा बिल्कुल ना खपाएं…बस अपना काम वैसे ही करते जाएं, जैसे कि अब तक करते आए हैं…ये बुलबुले वक्त वक्त पर उठते रहेंगे और साथ ही अपना वजूद खोते रहेंगे…फिर कहूंगा, इन्हें ज़रा सी भी भाव देने का मतलब यही है कि कितने कमजर्फ होते हैं यह गुब्बारे जो चंद साँसों में फूल जाते हैं…
सादर,
खुशदीप
टीवी जर्नलिस्ट और ब्लागर खुशदीप सहगल के फेसबुक वॉल से.
kamaal
January 17, 2016 at 12:05 am
आपने तो ये बड़ा अपराध कर दिया। बिन मांगे सलाह दे दी। अरे हुजूर रवीश कुमार कोई लौंडे थोड़ी हैं, वो तो 21वीं सदी में मीडिया के सबसे बड़े महानायक हैं। हिंदी सिनेमा में तीन खान हैं और हिंदी मीडिया में दो महानायक हैं। एक रवीश कुमार और दूसरा पुण्य प्रसून वाजपेयी। ये दोनों भारतीय हिंदी समाज की कुंठाओं की जमीन पर उगी वो बेल हैं जो लहलहा रही हैं। उन्हें अपनी खुदाई पर इतना यकीन है कि हल्के से सवाल भी उनके अहंकार को छलनी कर देते हैं। गौर कीजिएगा, हल्के छिछले सवाल भी उनके अहंकार को आहत कर देते हैं। और वो सार्वजनिक मंच पर बिलखने लगते हैं। एक छद्म रचते हैं जैसे सारी दुनिया उनके पीछे पड़ी है। ऐसा करने से उन्हें कुंठित हिंदी समाज की सहानुभूति मिलती है। उसी सहानुभूति पर ये लहलहाते हैं। ऐसे में आपने इतनी बड़ी सलाह देकर उन्हें दो तरीके से आहत किया है। पहला आपने महानायक रवीश कुमार की ब्रांडिंग के तरीके पर हमला किया है और दूसरा आपने उनके अहंकार को ठेस पहुंचाई है। इस पर आपको उनसे माफी की भी उम्मीद है!! कमाल करते हो खुशदीप बाबू… दिल को खुश रखने को ये खयाल अच्छा है।