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टीवी

रवीश कुमार ने एनडीटीवी वालों को सात पार्ट में भेजा लंबा-चौड़ा विदाई पत्र, सब एक साथ पढ़ें

Part -1

नमस्कार,

यह विदाई का पत्र है। जाने की बातों से ज़्यादा यहां आने के दिन याद आ रहे हैं। किराये के मकान से इस दफ़्तर तक आने के रास्ते की हवा भी अच्छी लगती थी कि NDTV जा रहा हूं। नाइट शिफ्ट दिन की तरह लगता था। अर्चना के दूसरे तल पर लिफ्ट से आना कभी अच्छा नहीं लगा। सीढ़ियों की एक ख़ास बात यह होती है कि आप हर दिन चढ़ना और उतरना दोनों देखते हैं। इस वक्त कितने चेहरे याद आ रहे हैं, जो यहां से बहुत साल पहले चले गए और जो अभी भी हैं। जो आगे भी रहेंगे। इस वक्त कमाल ख़ान बहुत याद आ रहे हैं। उनके जाने के बाद लखनऊ ब्यूरो आज तक वीरान लगता है। याद अपना जितिन भूटानी भी आ रहा है, जिसकी मज़बूत हाथों पर कैमरा रख कर हमने कई मुश्किल शूट पूरे किए। काश उसे लंबी उम्र मिलती। शेष नारायण सिंह , ओबैद सिद्दीकी भी याद आ रहे हैं। दोनों इस दुनिया में नहीं हैं। स्व नारायण राव याद आ रहे हैं, जिन्होंने मुझे नियुक्ति पत्र दिया था। उनकी आवाज़ के बिना NDTV, NDTV नहीं लगता था।

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गुडमार्निंग इंडिया के दिन याद आ रहे हैं। स्मिता चक्रवर्ती का पंचम तल पर आना। दिव्या लारोइया का मद्धम स्वर में ग़लतियां बता जाना। काम में डूबी हुई रेणु राव, शिबानी शर्मा, रुबीना ख़ान शापू याद आ रहे हैं। अरुण थापर, मोनिका, सालेहा वसीम, शेन, सत्येन वांग्चूं, अर्पित अग्रवाल, आशीष पालीवाल, तरुण भारतीय, स्मृति किरण, प्रियंका झा, बेत्सी,बोनिटा, नताशा बधवार, मनीष बधवार, यास्मिन, रुपाली तिवारी ये वो नाम हैं जो NDTV में प्रथम स्मृतियों का हिस्सा बने। चेतन भट्टाचार्जी तो वहां से लेकर यहां तक साथ ही रहे। उनकी जीवन साथी नताशा जोग भी। इनके बीच रहकर शानदार काम करने का अनुभव और आनंद इस दफ़्तर की सीढ़ियां चढ़ते ही मिल गया। गुडमार्निंग इंडिया से काम का जो बेंचमार्क बना, वो दिमाग़ से कभी उतरा ही नहीं। कंधे से कंधा टकरा कर और मिला कर काम करने का जुनून देखने को मिला। यहीं मुलाक़ात हुई मनहर से, जिससे मुझे रिपोर्टर बनने का ख़्वाब उधार में मिला। रिपोर्टर बनने का सपना उसका था और मैं बन गया। बहुत याद आओगे मनहर तुम।

दूसरे तल पर एक बिखरा-बिखरा सा इंसान काम कर रहा था, जिसे हम लोग आज भी बाबा कहते हैं। मनोरंजन भारती। जब भी मिलते थे, यही कहते थे कि काम सीख लो। एडिट भी जान लो और रिपोर्टिंग भी करो। ट्रांसक्राइब करो। बाबा ख़ुद को पीछे रखकर आगे बढ़ाने में लगे रहते थे। मनहर के बाद बाबा ने यह लोड ले लिया कि हम दोनों को रिपोर्टर बनना है लेकिन बनने का मौका मुझे ही मिला। शूट से लौट कर कंप्यूटर के बगल में एक छोटी से डायरी रख देना और कहना कि लिख दो। बाबा हमेशा शूट से काम में लिपटे हुए आते थे। लगता था कि किसी ने पसीना बहाया है, अपना और दूसरों का भी काम किया है। बाबा की यह सामान्य बात हमारे भीतर आत्मविश्वास पैदा कर रही थी। मुझे इस बात की हमेशा खुशी रहेगी कि बुख़ार में होने के बाद भी मनोरंजन भारती रमन मैगसेसे की घोषणा के दिन दफ्तर आए थे। बस इतना कहा था कि आपका कल आना ज़रूरी, बाबा ने कहा कि बहुत बुख़ार है। फिर भी उस दिन बाबा आए। बाबा से एक चीज़ चुरा ली। बाबा में असुरक्षा नहीं है। मुझे बढ़ाया और हमेशा बढ़ते देख अपना सीना ताना। मैंने जान लिया कि इस पेशे में असुरक्षा पालने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। बाबा आप इस प्यार को कभी नहीं समझ पाओगे।

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Part 2

गुडमार्निंग इंडिया के बंद होते ही हम पंचम तल से द्वितीय तल की दुनिया में आ गए। जहां कितनी ही प्रतिभाएं आकार ले रही थीं और एक दूसरे से टकरा रही थीं। इन्हीं सबके बीच हम सभी अपनी जगह खोज रहे थे। किनारे की एक गोल मेज़ पर। जहां वर्तिका से लेकर बेख़ौफ़ एकता कोहली तक।एकता कोहली ने तभी का तभी बोलना सिखाया मगर ठीक से आया नहीं। हितेंद्र, उदय, विजय त्रिवेदी, प्रीतपाल कौर, विजय त्रिवेदी से मुलाकात हुई। विजय जी की डायरी कौन नही चुरा लेना चाहता था। कितनी बार मांगा, दिया भी नहीं ! तो ख़ैर ये गोल डेस्क, जो हिन्दी डेस्क कहलाता था,एक दिन बड़ा हुआ और NDTV इंडिया चैनल बना। फिर तो दूसरे चैनलों से भी कई साथियों का आना हुआ और कुछ लोग बहुत से लोग में बदल गए और फिर कुछ लोग होकर रह गए। दिबांग, एन पी सिंह से मिलना हुआ। उनके साथ काम किया। तब यहां कितने नए लोगों का आना होता था।उस समय के अच्छे बुरे अनुभव साफ़-साफ़ याद हैं।मैं उन तमाम अनुभवों को केवल महिमामंडन के हवाले नहीं करना चाहता क्योंकि हर तरह के अनुभव की एक भूमिका होती है। व्यक्ति और संगठन की यात्रा में। बहरहाल इस दफ्तर में एक डॉक्टर भी थीं, डॉ नाज़ली। जो आज तक मेरी चिन्ता करती हैं। कई साल पहले हम लोगों को यहां टीके भी लगाए गए। कितनी यादें हैं। आरफ़ा, अभिसार, प्रसून सब यहीं तो मिले। जो यहां से जाकर भी अपना काम कर रहे हैं।

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द्वितीय तल की दुनिया कमाल की थी। यहां आते ही रोज़ डॉ रॉय को देखना हुआ। राधिका रॉय को भी। मुझे डॉ रॉय का वह भाषण याद है, जब स्टार से अलग होकर NDTV को अपना चैनल बनना था। उन्होंने एक बात कही थी कि हर किसी की अपनी स्टाइल होगी। बस कोई कानूनी चूक नहीं करे। उसे लेकर सतर्क रहे। एक डेस्क होगा, जो कॉपी चेक करेगा मगर उसका फैसला अंतिम नहीं होगा। डेस्क के एडिटर और रिपोर्टर के बीच बहस होनी चाहिए, गहमा-गहमी होनी चाहिए कि क्यों यह लाइन सही है, ग़लत है। बहुत लोग भूल गए, मुझे वह बात याद रह गई। वो आज़ादी सबके लिए थी मगर मैंने संभाल ली। राजदीप के जाने के बाद उन्होंने मुझसे कहा था कि तुम जैसे चाहो वैसे लिखो और काम करो। तुम्हारी एक स्टाइल है। उसे मत चेक करो, बस लीगल का ध्यान रखा करो क्योंकि वो महंगा शौक है। बहुत टाइम बर्बाद करता है। तब डॉ रॉय ने कहा कि तुम्हारी रिपोर्ट का अलग शो होना चाहिए और तुम्हारे नाम से। रवीश की रिपोर्ट। पहली बार उन्होंने ही ये नाम कहा था, जो बाद में ऑनिन के समय इसी नाम से लांच हुआ। जब कहा था, तब लांच नहीं हो सका। मगर मैं उसी तरह काम करता रहा। यह सही है कि उसके बाद डॉ रॉय ने मेरे काम में एक बार भी टोका-टाकी नहीं की। यह बात एक फैक्ट है। मैं क्या लिखूं, क्या बोलूं, इसे लेकर कभी इशारा तक नहीं किया। बस डॉ रॉय बहुत अच्छा सूट पहनते थे। कभी-कभी लगता था कि अपना कोट और अपनी टाई मुझे दे दीजिए! पर उनसे मांगने की हिम्मत नहीं हुई, वैसे मांग लेता तो पक्का दे देते। वैसे विदेशों से लाए गए उनके चॉकलेट याद रहेंगे। उसके बहुत किस्से हैं। जब डॉ रॉय मेरी स्टोरी का लिंक पढ़ देते थे तो वह शाम ख़ुद पर फ़िदा होने की शाम होती थी। सभी आपको प्रणॉय ही बुलाते हैं। आप किसी के ‘सर’ नहीं थे और न आपके सर में कभी प्रणॉय रॉय होने का गुमान देखा। आपसे खुल कर बात करने की आज़ादी मिली और ना कहने की भी।

राधिका रॉय ने जब न्यूज़ रूम छोड़ दिया, उसके बाद स्क्रिप्ट की वह क्वालिटी कभी नहीं लौट सकी। मैं उनकी लिखावट का हमेशा कायल रहा। स्क्रिप्ट लिखते समय तरह-तरह के सवाल पूछने और लाइनों को कांट-छांट कर कस देने में आपका कोई मुक़ाबला नहीं है। ग्राफिक्स से लेकर एडिट और विज़ुअल पर उनकी पकड़ का आलम यह था, बाहर शूट कर रहे लोगों के दिमाग़ में यह बात होती थी कि कहीं मिसेज़ रॉय ने देख लिया तो। उनके सवालों के सामने जवाब ही नहीं मिलता था और तारीफ मिल जाती थी तब फिर लगता था कि कोई रोक नहीं सकता है। मैं इस दफ्तर में चिट्ठी छांटने से लेकर समूह संपादक भी बना और इसी दफ्तर में मेरा एक और रिकार्ड है। डिमोट होने का। कुछ घंटे के लिए मुझे रिपोर्टर से डिमोट कर दिया गया था। आयशा कगल और राधिका बोर्डिया ने बचा लिया। बाबा ने राजदीप को कहा और राजदीप ने भी बात की। हंगामा मच गया था और उस दिन के बाद से मेरी दुनिया बदल गई। मेरे अनुभवों के गहरे संसार में बहुत सी बातें हैं लेकिन उस रात राधिका रॉय ने मुझे बचा लिया और वापस रिपोर्टर बना दिया। वह पत्र आज भी मेरे पास है और हर साल पढ़ता हूं।

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डॉ रॉय और राधिका रॉय को शुक्रिया नहीं कहना चाहता, उससे बात खत्म हो जाती है। कितना कुछ कहना बाकी हैं। मैंने आखिरी बातचीत में उनसे पैसा नहीं मांगा, लाल माइक मांगा जो उन्होंने मेरे घर भिजवा दिया है। यह कितनी सुंदर बात है कि राधिका रॉय ने अपने NDTV का एक छोटा सा हिस्सा मुझे सौंप दिया। ज़िंदगी यादों का सफ़र है। मुझसे कोई ग़लती हुई होगी, हुई ही होगी, तो उसे भुला दीजिएगा।आपके बनाए इस बगीचे में कितने भारत थे।असम से बानो हरालु, किसलय, ओडिशा से संपद महापात्रा, हैदराबाद से उमा और टी एस सुधीर और कोलकाता से मोनी दी चमका करती थीं। केरल के बॉबी नायर भी। चेन्नई के सैम डैनियल और संजय पिंटो और जेनिफ़र। बंगलुरु से माया शर्मा। एक बिहारी इतने सारे भारत के बीच हैरत और आनंद का जीवन जीकर जा रहा है!

Part-3

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मुझे यहां कुछ शानदार वीडियो एडिटर मिले। श्रीनि, गोपी, रमन, दो -दो प्रवीण, कुलदीप, संजय, प्राणेश, भरत, समय, कमाल के ही लोग थे। सैंडी, संदीप बलहारा एक एडिटर थे, फितूरी, मगर कभी मन चल जाए तो शानदार एडिट हो जाता था। मुझे समझ नहीं आया कि ये सारे एडिटर मेरी ही स्टोरी के समय खास तौर पर जुट जाते थे या सभी के साथ ऐसा करते थे। वैसे सभी के लिए करते थे। सब एक से एक दिग्गज एडिटर हैं, जब मैं नया रिपोर्टर था, तब भी आप लोग जी जान लगा देते थे। प्राइम टाइम का एक अफसोस है। मैं आप एडिटर से मिल नहीं सका। उधर आने का कम ही मौका मिला।

उसी तरह से कैमरापर्सन भी।नरेंद्र गोडावली, धनपाल, कानन पात्रा, जितिन भुटानी, मोहम्मद मुर्सलिन, आज़म, मनोज ठाकुर, शशिकांत, लाइली, नताशा बधवार। रूपेन पाहवा आप याद आते रहेंगे। नरेंद्र गोडावली और धनपाल सबसे सीनियर कैमरापर्सन थे लेकिन जब मेरे साथ शूट करते थे तो सबसे जूनियर बन जाते थे। ये वो टीम वर्क है जो मैंने NDTV में होते देखा, जो मेरे जीवन का हिस्सा बन गया। प्रेम सिंह, सुधीश राम, पूजा आर्या। सुधीश राम के साथ शूट न कर पाने का अफ़सोस रहेगा। अनामित्रो चकलाधर याद हैं। शारिक से यहीं मुलाकात हुई, जो तब कैमरा छोड़ कर रिपोर्टर बनना चाहते थे। मुझे सूट पहनना सिखाया ! वैसे हीरो ही बना रहे थे। मज़ा आया शारिक इस सफ़र में। पटना के हबीब औऱ भोपाल के रिज़वान को नहीं भूल सकता और मुंबई के राकेश को। कानन, राकेश और सचिन का आभार। आप तीनों ने कोविड के दौरान घर आकर कितना कुछ संभाला। सचिन के बिना तो इतना लंबा वक्त नहीं काट सकता। आप सभी ने मुझे बीमार हाल में देखा लेकिन काम से कभी समझौता नहीं करने दिया। देवज्योति और कविता अब आपके डेली मेल में हम नज़र नहीं आएंगे।

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देवना द्विवेदी ने मुझे कभी ना नहीं कहा। जो भी कहा, उसका रास्ता निकाला। हमेशा यकीन दिलाया कि यह सब आपका है, हक से इस्तेमाल कीजिए। वंदना का एक किस्सा बताता हूं। आज़ादी के पचास साल पर मैंने एक स्क्रिप्ट लिखी थी, जो उस सीरीज़ के ब्रीफ से काफी अलग थी। पढ़ते ही वंदना की आंखें चमक गईं और कहा कि शानदार स्क्रिप्ट है। फिर उसे अपने घर ले गईं, उनके पिताजी या ससुर जी ने वो स्किप्ट पढ़ी और आकर बताया कि बहुत पसंद आई है। जब वह स्पेशल प्रोग्राम चला तो हंगामा मच गया। रजत प्रोड्यूसर थे, जो बाद में रवीश की रिपोर्ट के भी प्रोड्यूसर थे। रजत का काम पता नहीं कहां दर्ज होगा लेकिन ये लोग ग़ज़ब का काम कर गए हैं।

NDTV India की प्रोडक्शन टीम केवल इसी बात को लेकर बहस करती थी कि कैसे अलग करें। रिसोर्स कम हैं मगर उसकी चिन्ता नहीं। करना तो अलग ही है। जब प्राइम टाइम की कोई गंभीर समीक्षा करेगा तो दो प्रोड्यूसर के काम को अलग से समझेगा। स्वरलिपि और विपुल पांडे। दोनों ने कैसे शो किया है, यह वही बता सकते हैं। मैंने कई बार कहा कि आज मेरा मन नहीं है। स्वरलिपि और विपुल ने कभी नहीं कहा कि उनका मन नहीं है। विपुल ने कई ऐसे शो बना दिए कि यकीन ही नहीं होता था कि ये काम तीन घंटे में हुआ है। स्वर के जाने के बाद तो टूट ही गया था, मगर विपुल पांडे के कारण संभल गया। मनप्रीत, रचना, शानदार डायरेक्टर शिवानी सूद अनुदीप, बिस्वा और सम्मी।दफ्तर आता तो सम्मी साहब का बनाया हुआ छक कर खाता। आप सभी के किस्से और सबके झगड़े याद हैं। पीसीआर की टीम का जवाब नहीं। जो चले गए और जो रह गए हैं, अब तो मैं ही चला गया हूं, आप लोग बहुत याद आएंगे। शिवानी सूद तुम शानदार हो। रोना नहीं। बिल्कुल नहीं। एक पायल थीं, हैं न। प्राइम टाइम की पहली प्रोड्यूसर !

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Part- 4

बहुत मुश्किल हो रहा है, एक-एक नाम के साथ अपनी इस यात्रा को याद करना। संजय अहिरवाल और महुआ चौधरी को याद कर रहा हूं।संजय ग़लत को बहुत साफ़ पहचानते थे। ऑनिन का कांफिडेंस और उसकी जानकारी मुझे हैरान करती थी। उसकी पढ़ाई के हिसाब से यह माध्यम नहीं था! मगर इस माध्यम को कितना कुछ मिला। ऑनिन के कारण पत्रकारिता के पेशे के भीतर झांकना सीखा और पहचानना भी।अभिज्ञान प्रकाश सोच रहे होंगे कि भूल गया हूं। ऐसा कैसे हो सकता है।

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सुनील सैनी के साथ बेहद स्पेशल रिश्ता बन गया। काम के साथ हां-ना की बहसों के बीच उनको देखा और सामंजस्य बनाना सीखा। वे शानदार टीम लीडर हैं। उनकी सख्ती से कई लोगों के पास तकलीफों के कई किस्से भी हैं मगर मैंने उन्हीं किस्सों के बीच सुनील की नरमी और खूबियों को देखा और मुझे बहुत सहयोग मिला है। शायद सुनील का काम ही ऐसा है कि उनके हिस्से सब कुछ अच्छा नहीं आएगा। पीछे रहकर काम करने वाला ख़ुद को थैंकलेस कहता है मगर सुनील का काम कहीं से थैंकलेस नहीं है। किसका कहां इस्तेमाल करना है, सुनील से बेहतर कोई नहीं जानता। दिल्ली से अखिलेश, निहाल,मुंबई से सुनील सिंह, सोहित, पूजा भारद्वाज, पूर्वा, अभिषेक, अहमदाबाद से राजीव पाठक,जयपुर से राजन महान और हर्षा कुमार सिंह, श्रीनगर से नज़ीर साहब, आप लोग हमारी यादों का हिस्सा हैं। आपके साथ काम कर मैंने एक अलग भारत को जाना है। कोविड के दौरान मुंबई से सोहित के अलावा पूजा भारद्वाज ने ऐतिहासिक और शानदार रिपोर्टिंग की है। मुकेश सिंह सेंगर न हों तो हमारा व्हाट्स ग्रुप भरता ही नहीं। शरद शर्मा थोड़ा घर भी रहा कीजिए। लखनऊ से आलोक पांडे की कई रिपोर्ट ने प्राइम टाइम में चार चांद लगाए हैं। क्रांति संभव के साथ हमने कई असंभव योजनाएं बनाईं मगर पूरी नहीं हुईं। ह्रदयेश एनडीटीवी से जाकर भी शानदार काम कर रहे हैं।

होता यह है कि काम करने की जगह पर हम अपने सहयोगियों के बारे में कई किस्से गढ़ लेते हैं, पसंद-नापसंद के आधार पर धारणाएं बना लेते हैं और इसी में बहुत समय बर्बाद कर देते हैं। कुछ बातें सही भी होती हैं मगर संभव हो तो कभी इन दीवारों के पार झांकने की कोशिश कीजिएगा। इन किस्सों के कारण अपने काम से नाराज़ नहीं होना चाहिए।

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आज की तारीख़ में आशीष भार्गव इस इंडस्ट्री के श्रेष्ठ लीगल एडिटर है। हर दिन सारी डिटेल के साथ कोर्ट की रिपोर्टिंग भेजना, बिना थके, बिना कुछ पाए, आसान नहीं। रवीश रंजन को बहुत मिस करूंगा। इस शख्स के साथ मेरी ज़िंदगी की कई यात्राएं जुड़ी हुई हैं। चमकते रहना सौरव। सौरव शुक्ला ने कितना कुछ किया रिपोर्टिंग में और अपना विस्तार किया है। यह सब इसी चैनल में संभव था और कहीं नहीं।

अनुराग द्वारी जी आप बच नहीं सकते हैं। अनुराग की प्रतिक्रियाओं ने मुझे सहज बनाया। आलोचनाओं में झांकना सिखाया है। बस इस पर यकीन ही नहीं हो रहा है कि हम और अनुराग द्वारी मिले ही नहीं है। इमोशनल अत्याचार। NDTV India में एक ही प्रोफेसर हैं, प्रो हिमांशु शेखर। मोजो किंग उमा शंकर सिंह का जैकेट याद रहेगा। अमरीका जाता था तो उमा का जैकेट भी ले जाता था। कादंबिनी के साथ ऐंकरिंग की यादें हैं। तब जब डबल ऐंकर शो हुआ करता था।

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पटना के मनीष कुमार का विशेष रुप से याद करना चाहता हूं।पिछले तीन साल के दौरान मैं भयंकर मानसिक भूचाल से गुज़र रहा था। मनीष ने बहुत संभाला है।हर दिन सुबह, दोपहर और शाम फोन कर मनीष ने पूछा है कि सब ठीक हैं।अभी तक कितना हुआ है स्क्रिप्ट। बस अब हो जाएगा। थोड़ा और जोड़ लीजिए। मनीष की इस खूबी से कितने साल अनजान रहा। जिस किसी को दूसरे को संभालना आता है, उसके भीतर कई खूबियां होती है। बिना इसके आप यह काम नहीं कर सकते हैं। मनीष को जानने में काफी देर लगा दी। निधि कुलपति आप भी।। इन तीन वर्षों में मेरी औचक छुट्टियां बढ़ने लगी थीं। वजह आप जानती थीं। जब भी अचानक कहा, आपने मना नहीं किया। नीता शर्मा कहां गईं, पर वो तो दफ्तर आती ही नहीं हैं! वर्क फ्राम रोड करती हैं। नग़मा जी शुक्रिया। सिक्ता देव। मानसून यात्रा। ! क्या सीरीज़ थी वो।

सुशील बहुगुणा के बिना तो काम ही नहीं चलता। उनके बारे में कम लिखने में भी ज्यादा ही लिखना पड़ जाएगा। किस मौके पर क्या नहीं कहना है, इसकी पहचान सुशील बहुगुणा को बहुत है। उनके दिमाग़ में लाल बत्ती तुरंत जल जाती है। प्रियदर्शन जी ने कभी हिन्दी की गलतियां बताने में और सही बातने में कोताही नहीं की।उनकी विशाल साहित्यिक और सांसारिक जानकारी का हमेशा ही लाभ मिला है। बसंत, संतोष, भरत, प्रीतीश,समीक्षा।मिहिर उदास नहीं होना है। आप चैनल से बाहर सामाजिक कार्यों में सक्रियता बनाए रखिए। लोगों को जागरुक करते रहें। अदिती सिंह और जया कौशिक। क्या होता है न, हर कोई कभी सराहना तो कभी हौसले की निगाह से जीवन की गाड़ी को आगे बढ़ाता रहता है। सौमित मोहन आपका मेल शानदार होता है। जसबीर हम आपसे कम बात कर सकें मगर आपकी लगन का जवाब नहीं। आप कितनी मेहनत करती हैं। अजय शर्मा ने बहुत खास वक्त में मुझे साथ दिया है। मेरी ज़रूरतों को समझा है।

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Part-5

असद आप ख़ास हैं। जैसे-जैसे हम व्यस्त होते गए, आप छूटते गए लेकिन आपने हमेशा रास्ता ही बनाया। मेरी ग़लतियों को कंकड़-पत्थर की तरह उठा कर रास्ते से अलग किया और उच्चारण सही किया। आप उस मील के पत्थर की तरह किनारे खड़े रहते हैं जो हर यात्री का गवाह होता है। आपकी चुटकियां याद रहेंगी। प्रियदर्शन और दीपक चौबे के झगड़े के बिना इस चैनल की स्मृतियां बेस्वाद लगेंगी।

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मुन्ने भारती, कर्मवीर और अपने सुशील कुमार महापात्रा। ये तीन खंभे हैं जिन पर त्रिलोक टिका नज़र आता था। सुशील महापात्रा के साथ मेरा रिश्ता विचित्र है। इसमें खूबसूरती है, मनोरंजन है, बेचैनियां हैं, परेशानियां हैं। पर इन सबके बीच महापात्रा जी बेहद शानदार और ईमानदार सहयोगी हैं। बहुत काम करने वाले। सुशील के साथ तो पूरा जीवन ही गुज़रा है। कर्मवीर तुम बहुत प्यारे हो। मैं तुम्हारी कुछ ख़ूबियां अपना लेना चाहता हूं। मुन्ने आप लोगों की मदद करते रहना। चाहे कोई कुछ कहे। आप इसी के लिए बने हैं।

संजय किशोर तो मुझसे पहले ही चले गए। विमल जी हैं। किसी को हैरानी होनी चाहिए कि विमल मोहन और संजय के जैसा खेल पत्रकार हैं। विमल ने एथलिट में जो पकड़ बनाई है, उसका सम्मान शायद कम हुआ मगर एथलिट की दुनिया के लोग जानते हैं कि विमल मोहन का काम क्या है।

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सूज़न थॉमस और बोनिटा मैं आपसे माफी मांगता हूं। मेरी वजह से आप लोगों को हज़ारों फोन कॉल उठाने पड़े। बोनिटा अक्सर कहती थीं कि इसका अलग सिस्टम बनाना होगा, हम और काम कर ही नहीं सकते। सैंकड़ों फोन कैसे उठाएं। मगर उसका कोई हल नहीं निकला। आपका सरदर्द बना रहा। सॉरी। आप और सूज़न दोनों ने गाली देने वाले फोन कॉल और तारीफ करने वाले फोन कॉल में कोई भेदभाव नहीं किया। सबसे प्यार से बात की। पता नहीं आपने कैसे संभाला। रात को प्राइम टाइम के बाद घर जाते वक्त हमेशा फ्रंट डेस्क की तरफ देखता था, कि सारा गुस्सा अब इन पर निकलने वाला है।

मैं एक छोटी सी टीम के केंद्र में था मगर वो टीम मुझसे काफी बड़ी थी। सर्वप्रिया सांगवान जब बीबीसी जा रही थीं तब लगा कि मैं ख़ाली हो गया। स्वरलिपि के जाने के बाद वीरान हो गया था मगर वृंदा शर्मा जैसी काबिल सहयोगी किसी को मिल जाए, वह इस पेशे में हर मुश्किल काम कर सकता है। वृंदा के कारण हमने कई टॉप क्लास शो किए। वृंदा भी जा चुकी हैं मगर टैलेंट और रिसर्च क्या होता है, ये मैंने वृंदा के काम में देखा। वृंदा की निष्ठा का जवाब नहीं है। शुभांगी डेढ़गवे ने वृंदा की जगह ले ली, पता नहीं चला।इतने कम समय में शुभांगी अधिकार से हां और ना में साफ़-साफ- बात करने लगीं। जब तक आपके सहयोगी अधिकार से हां या ना में बात नहीं करते हैं, तब तक वहां टीम का निर्माण नहीं होता है। अहमदाबाद से एक सहयोगी हैं, सूचक पटेल। सरकार के दस्तावेज़ और संसद की रिपोर्ट पढ़ने में सूचक किसी को भी मात दे सकते हैं। सूचक किसी दिन खुल गए और उनकी प्रतिभा को अवसर मिला तो नई लकीर खींच देंगे।

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हिन्दी चैनल ग़ज़ल का टीम वर्क था। चैनल से बाहर के साथियों का योगदान तो कभी हम ठीक से समेट नहीं पाएंगे। जिन्हें हम अक्सर स्ट्रिंगर कहते हैं मगर वे किसी संपादक से ज्यादा की योग्यता रखते हैं। हरिद्वार से राहुल, फैज़ाबाद से प्रमोद, बेगुसराय से संतोष, इटावा से अरशद, आगरा से नसीम, अलीगढ़ से अदनान, सहरसा से कन्हैया और रांची से हरबंस। कैथल से सुनिल रवीश, करनाल से अनिता, फरीदाबाद से अजीत। बनारस अपने आप में एक चैनल है। अजय सिंह उसके सुपर एडिटर। कमाल की भाषा और अनेक गुण। अजय सिंह शानदार सहयोगी रहे। मेरे ही नहीं, न जाने कितनों के, इस चैनल के ही नहीं, दूसरे चैनलों के भी। पंजाब से अश्विनी, अर्शदीप, संगरुर से मनोज। आप सभी ने मुझे चुनौती दी कि आपसे ज्यादा करके दिखाऊं। मेरी तरह आपको अवसर मिला होता तो आप मुझसे अच्छा करते। कई लोगों के नाम छूट गए हैं मगर यहां लिखे गए हर नाम सभी के प्रतिनिधि हैं। रजनीश जी ने इतनी लंबी टीम को कैसे संभाला वही जानते होंगे। आप सभी ने मेरी ख़ूब मदद की है।

Part-6

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तनवीर साहब आपकी अकाउंटिंग शानदार है। सुनीता लांबा आपने बीमा का ठीक ध्यान रखा। सत्य प्रकाश, नरेंद्र नौटियाल, चमन और आशीष आप सभी ने मेरी यादों को समृद्ध किया है। एडमिन के जेपी ने भी हमेशा मदद की है।जेपी साहब आपको सलाम है। आई टी टीम के विरेश, आज़ाद साहब आपने कितना सहयोग किया। NDTV वेबसाइट के कितने ही सहयोगी याद आ रहे हैं। देशबन्धु, विवेक और मयंका।

NDTV की एच आर हेड अनुराधा का पुराना दौर याद आ रहा है। जब अनुराधा मौसम समाचार पढ़ा करती थीं तो दुनिया हैरान हो जाती थी। मौसम समाचार में उन्होंने जो कमाल किया है, उसे कोई नहीं दोहरा सका। डॉ रॉय का शो आख़िर तक देखने का सबसे बड़ा कारण यह होता था कि मौसम समाचार आएगा और अनुराधा पढ़ेंगी। पढ़ने का क्या अंदाज़ होता था। छोटे वाक्य और आते ही समाप्त। सुपर अनुराधा। आप याद आएंगी अनुराधा। और हैना, जो चुपके से बुलाने आती थीं! आप लोगों ने मुझे अच्छी यादें दी हैं। रिनी चंदोला ने भी। भास्कर तो चले गए और जार्ज साहब को कौन भूल सकता है। बाज को हमेशा अलग से याद करता हूं। नम्रता के बिना तो किसी चुनावी दिन की सुबह नहीं होती थी। 8 दिसंबर को नम्रता आपकी फाइल मिस करेंगे।

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रसोई घर के सहयोगी याद आ रहे हैं। अख़्तर, कमलेश, कलिकांत, दिलीप, मिथिलेश चौधरी, संतोश। गंगा को कौन भूल सकता है। ट्रांसपोर्ट के अजय सिंह, सरजी मोहन, नेगी, आनंद, राहुल और अनिल। कोरोना के समय अजय नहीं रहे।

सुपर्णा सिंह, आपका शुक्रिया।आपसे मुलाकात नहीं हो सकी लेकिन आपसे सहमति-असहमति के बीच ख़ुद को परखने का मौका मिला। आपसे मिला हर सहयोग याद रहेगा। आपने किया भी। मेरी सुरक्षा की हमेशा ही चिन्ता की और कभी समझौता नहीं किया। कई बार मुझसे ज़्यादा चिंता की। सोनिया आपका भी शुक्रिया। मनिका, गौरी, अंकिता, वासु सब तो याद ही आ रहे हैं। ऐसा लग रहा है कि सभी हैं, मैं खो गया हूं। शिखा त्रिवेदी के लिए यह मेल छोटा पड़ जाएगा।

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Part- 7

जब भी कोई NDTV छोड़ कर जाता था, उसके गुडबाय मेल को संभाल कर रख लेता था। कइयों के प्रिंट आउट ले आया था। कुछ ने तो बहुत ही मज़ेदार गुडबाय मेल लिखे हैं। कुछ के गुड बाय मेल से खुशी भी हुई तो कुछ के मेल से गहरा सदमा भी लगा। इसलिए इसका असर किस पर क्या होगा, मैं नहीं जानता। गुड बाय मेल अपने आप में एक साहित्य है। कोई देख सकता है कि इस चैनल को छोड़ते वक्त लोग क्या क्या याद करते हैं। कितना मिस करते हैं। बेशक कम अच्छी यादों को इसमें नहीं लिखते हैं, मगर कई बार अतिरेक से भरी उन बहुत अच्छी यादों में भी कितना कुछ दर्ज हो जाता है, जिससे आप NDTV को समझ सकते हैं। मेरा गुडबाय ज़्यादा लंबा हो गया। जो यहां छूट गए हैं, वो दिल में हैं। समय-समय पर याद आते रहेंगे। इस पत्र में नाम केवल नाम की तरह दर्ज नहीं है। हर नाम के साथ अनगिनत किस्से हैं। अच्छे भी और बुरे भी।

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तारा रॉय…..

आप जितना भी शांत रहें, किनारे रहें, इतनी आसानी से आप खो नहीं सकती हैं। मुश्किल वक्त में चैनल के लिए आपका काम हमेशा दिखता रहा है। पीछे रहकर चुपचाप काम करना मुझे बहुत पसंद आया। मैं आपकी शालीनता का कायल हूं। जानता हूं, ये उदासियों के दिन हैं, मगर आप आसमान की तरफ़ देखिए। वहां कितने ही तारे हैं।

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ऐसा हो नहीं सकता कि मेरी बातों से किसी को चोट न पहुंची हो, कोई आहत न हुआ, हो सके तो माफ़ कर दीजिएगा। सभी से बिना शर्त माफ़ी मांगता हूं। आपके सहयोग, आपके गुस्से, आपके प्यार के सामने सर झुकाता हूं। आपका प्यार मिलता रहे।

मैं जा चुका हूं। इस विदाई पत्र के ज़रिए थोड़ी देर के लिए वापस आया हूं। जाना इसी को कहते हैं कि लगे कि गया ही नहीं है। लगे कि यहीं कहीं हैं। लगे कि कहीं आ तो नहीं गया। कभी भी आ जाएगा। आप सभी वे लोग हैं, जिनकी बदौलत मैं करोड़ों दर्शकों के दिलों तक पहुंच सका।

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मैं आपकी मेहनत का एक चेहरा भर हूं। बाहर दर्शक उदास हैं, अंदर आपमें से बहुत लोग। केवल यह चैनल नहीं बदल रहा है।इस देश में काफी कुछ बदल रहा है। आप सभी इतिहास के एक अहम मोड़ पर खड़े हैं। मुड़ कर देखते रहिएगा और आगे भी।

कितने ही सपने यहां पूरे हुए, उसका हिसाब नहीं। कई चीज़ें तो ऐसी भी हो गईं जो सपने से कम नहीं थीं। एक सपना अधूरा रह गया। सोचा था कि यहीं से रिटायर होना है। सारे सहयोगी मुझे सीढ़ियों से होते हुए अर्चना की पार्किंग तक आएंगे और तब मैं वहां मुड़ कर सबको गुडबाय बोलूंगा।मगर हुआ नहीं। इसके उलट दनदनाते हुए चला गया।

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चलता हूं….

आपका,

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रवीश कुमार

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9 Comments

9 Comments

  1. Rajbir Singh

    December 3, 2022 at 8:07 pm

    The last hope collapsed

  2. Daljeet Singh Khanuja

    December 3, 2022 at 8:28 pm

    पक्षपात की पत्रकारिता लम्बी नहीं चलती, किसी एक दल(जो राष्ट्र धर्म विरोधी हैं) उनकी खुशामद करना शर्मनाक है,आज नही तो कल ये तो होना ही था,,,,

  3. शैलेश श्रीवास्तव

    December 3, 2022 at 10:00 pm

    चलो एक गन्द मीडिया से हटी

    • Adnan Ahamad

      December 5, 2022 at 3:08 am

      Pehle ankh khol kr record check kro samjhe bhayyaa aese hi bas apni dimag ki gandi soch mat dikhao

  4. हरेंद्र शुक्ला

    December 4, 2022 at 7:15 am

    दिलों में अगर बदगुमानी रहेगी परिशां हर जिन्दगानी रहेगी,
    अगर जा रहे हो तो जाने से पहले कोई ज़ख्म दे दो निशानी रहेगी।
    करीब ८ वर्ष पहले आपसे बीएचयू हिंदी भवन में एक क्षणिक मुलाकात ने मुझे बहुत प्रभावित किया। तब मैं आज अखबार के लिए अपनी सेवाएं दे रहा था। सच में आप पत्रकारिता के दुनियां के कबीर हैं कबीर हैं…. काशी से… ऊं नमः शिवाय

  5. Dr N V R Murty

    December 4, 2022 at 6:14 pm

    NDTV had been a part of our lives since ” the world this week ” days.
    So also Ravish Kumar ji since the last few years.
    I wonder how 8th December will be without Mr Roy !
    We feel a great loss.

  6. Anurag Tripathi

    December 5, 2022 at 6:58 am

    He is perhaps the last Journalist of electronic media.You raised the issues of common people and asked the true questions from the government. With your resignation the fourth pillar of democracy got weakened. Now electronic media has become totally govt media. We hope you will never give up the mission of people.

  7. Parkash

    December 5, 2022 at 1:31 pm

    May God bless you

  8. Pankaj singh

    December 5, 2022 at 7:33 pm

    Neutral to Rabish Aap bhi nahi the aapne hamesa dalali kiya hai. Aaj nahi to kal aapko beijat ho jana hi tha. Aap midiya ke nam par kalank the..

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