मुझे नहीं पता था कि प्राइम टाइम की एंकरिंग से मेरी ज़िंदगी इतनी बदल जाएगी कि मेरी ग़ैरहाजिरी भी चिन्ता और अफवाह का कारण बन जाएगी । रात के नौ बजते ही मैसेज आने लगते हैं और दिन भर फोन कि कहाँ हैं । क्या NDTV ने आपको हटा दिया है, क्या आपने NDTV छोड़ दी है ? क्या सरकार के दबाव में आप एंकरिंग नहीं कर रहे हैं ? हमें आपकी चिन्ता हो रही है । आप सही तो बोल रहे हैं न कि छुट्टी पर हैं। हम आपके साथ हैं। आप हमारी आवाज़ हैं । अगर आपको साइड लाइन किया जा रहा है तो साफ साफ बोलिये।
एंकर हटायें जाते हैं, कंपनियाँ छोड़ जाते हैं और अज्ञात दबावों की भूमिका होती है, इस दुनिया में ये सब हो चुका है। मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ है। मैं जहाँ काम करता हूँ वहाँ छुट्टी नहीं लेना अपराध माना जाता है। आपको छुट्टी लेनी पड़ती है। मुझे अच्छा तो लगा और चाहूँगा कि इस अनिश्चित दुनिया में मेरी खोज ख़बर लेते रहे। आप सौ पचास लोगों का प्यार टी आर पी की दौड़ में प्राइम टाइम को नंबर वन तो नहीं बना सका लेकिन मेरा दिल भर देता है! ये पंक्ति तो मज़ाक़ के लिए थी मगर आपकी चिन्ता से सर झुक जाता है और आँखें भर आती हैं। पूछते रहियेगा। टीवी की पत्रकारिता भले ही बंदरकारिता हो गई है लेकिन हैरान हूँ कि इस समाज में कुछ लोग अभी भी पत्रकार की राह जोहते हैं। तब भी जब मैं मुख्य रूप से दिल्ली के आस पास ही पेशेवर जीवन काट देने वाला पत्रकार रहा हूँ।
फिर भी हर फोन और मैसेज का जवाब देते मेरी छुट्टी की छुट्टी हो गई । इतनी खोजाई होने लगी है कि नौ बजते ही अपराध बोध धरने लगता है कि क्या करें, आफिस चले जाएँ। बचपन में जैसे लगता था कि पिताजी घर आ गए होंगे, शाम होने से पहले घर पहुँच ही जाना है। वरना दरवाज़े पर ही द्वारपूजा का बंदोबस्त हो जाएगा! चलो छोड़ो छुट्टी, प्राइम टाइम ही कर लेते हैं।
कई चैनलों के संपादक अपने कार्यक्रमों की रेटिंग का बखान सोशल मीडिया में करते हैं तो उसमें तो मेरा शो आख़िरी पायदान के नीचे भी नज़र नहीं आता। लगता है जितने लोग देखते हैं, मुझे फोन और मैसेज करने वाले भी उतने ही होंगे! हमारे चैनल के प्रबंध संपादक व्यक्तिगत रूप से मुझे प्राइम टाइम की रेटिंग नहीं बताते हैं। लिहाज़ा हम भी पता नहीं करते कि पिछले हफ्ते की रेटिंग क्या रही। कई चैनल अपने नंबर वन होने का विज्ञापन भी चलाते हैं, उनमें भी खोजा लेकिन हम होंगे तब तो दिखेंगे!
तो आप NDTV को इस बात का श्रेय तो दीजिये कि आज के हालात में मुझे चार साल से प्राइम टाइम करने दिया जा रहा है। क्या ये सब वो चैनल कर सकते हैं जो अपनी रेटिंग का विज्ञापन भी दिखाते हैं और पत्रकारिता करने का ढोल भी पीटते हैं? क्या वे रेटिंग न आने पर अपने पत्रकारिता वाले उस शो को जारी रखेंगे जहाँ कल वो भूत प्रेत चलाया करते थे और जहाँ मालूम नहीं कल क्या चलने लगेगा। क्या वे सारे चैनल इस बात का विज्ञापन चला सकते हैं कि रेटिंग नहीं आई तो भी हम चलायेंगे। प्राइम टाइम भी कभी बंद हो सकता है लेकिन क्या कोई चैनल बिना रेटिंग के दावे के चार साल चलायेगा?
अब आप ठीक से सोचिये। रेटिंग से गायब रहने वाले शो का एंकर नहीं दिख रहा, और ये सबको दिख रहा है! अगर मेरा यह हाल है तो कई वर्षों से लेकर कई हफ़्तों से नंबर वन रहने वाले शो के एंकर जब छुट्टी पर जाते होंगे तो क्या होता होगा? शहर में सन्नाटा छा जाता होगा, उनके दफ्तर के लैंडलाइन घनघनाते लगते होंगे। लोग तो उनके लोकेशन पर पहुँच जाते होंगे कि भाई या बहन तुम चलो वापस स्टुडियो, हमसे खाना नहीं खाया जा रहा है। क्या पता इसीलिए उन्हें छुट्टी ही न मिलती हो। क्या पता वे इस डर से छुट्टी न ले पाते हों कि उनके बिना चैनल न बंद हो जाए। मैं यह सब सोच कर डर गया। अच्छा हुआ मैं उन नंबर वन शो का एंकर नहीं हूँ। उन पर कितना दबाव रहता होगा। हर ब्रेकिंग न्यूज में वही सब नज़र आते हैं।
आप अगर हिन्दी पत्रकारिता का नाश करने वालों की टोली का सामाजिक विश्लेषण करेंगे तो उन सभी में कम से कम एक गुण तो समान पायेंगे ही। ज्यादातर छुट्टी को अपराध मानते होंगे। कई लोगों को यह बीमारी परंपरा से भी मिली है। हिन्दी का आदमी जब छुट्टी पर जाता है तो दिल पर भारी बोझ लेकर जाता है। ठीक है कि उसके पास पैसे कम होते हैं मगर छुट्टी का अपराध बोध इतना गहरा होता है कि वो कम पैसे वाले पर्यटन का भी जोखिम नहीं उठाता। गोआ जाकर भी ऐसे संकोच में तस्वीर खींचायेगा जैसे मंदिर गया हो। दफ्तर ही नहीं उस पर घर परिवार का भी दबाव रहता है। अब चैनलों में चोटी के लोग विदेश यात्राओं पर चले जाते हैं मगर सबकी ऐसी हालत नहीं है। ज्यादातर बॉस की लंदन या प्राग वाली तस्वीर पर लाइक करके ही ख़ुश हो लेते हैं और ख़ुशामद भी हो जाती है। दूसरे चैनलों के कई सहयोगी रोते मिलते हैं कि कई दिन से काम कर रहे हैं। एक वीकली ऑफ़ नहीं मिला है। मैं सबका दर्द समझता हूँ।
अब हो सकता है सभी चैनलों में छुट्टी को लेकर उदारता आ गई हो । वर्ना वहाँ काम करने वाले इतने ख़ुश कैसे नज़र आते ! मैं जहाँ काम करता हूँ वहाँ शुरू से ही छुट्टी अधिकार है। आपको लेनी ही है। प्राइम टाइम का एंकर होकर भी पहले ट्रेन का टिकट काटता हूँ फिर दफ्तर को तारीख बता देता हूँ । कोई दूसरा एंकर नहीं होता है तो थोड़ा बहुत एडजस्टमेंट कर लेते हैं लेकिन सबको छुट्टी ऐसे ही मिलती है । ज़रा सी तबीयत ख़राब होने पर घर भेज दिया जाता है । चाहे वो एंकर हो या वो डेस्क पर हो । मैं भी उतनी ही छुट्टी लेता हूँ जितने के लिए अधिकृत हूँ। बाकी आप लोग पूछ पूछ कर ऐसा कर देते हैं जैसे मैं साल में छह महीना काम ही नहीं करता ।
रात की एंकरिंग एक मुश्किल काम है। बच्चों के पालन पोषण का सारा भार एंकर की पत्नी पर आता है । शायद एंकराओं के पति सारी ज़िम्मेदारी संभाल लेते होंगे । सुबह स्कूल छोड़कर आप उस भार की भरपाई नहीं कर सकते । प्राइम टाइम की एंकरिंग पारिवारिक तनाव पैदा करने वाली होती है । इसलिए प्राइम टाइम के एंकर को हर तीन महीने के बाद एक हफ्ते का ब्रेक मिलना चाहिए । सालाना छुट्टी के अलावा ! हा हा । ज्यादा मांग लिया ? मैं इन सवालों पर सोचता हूँ । जब बच्चे ठीक से पढ़ेंगे लिखेंगे नहीं, थोड़ा पत्नी के साथ शाम की चाय ही न पीये और घर के काम में हाथ न बंटाये तो स्त्री पुरुष बराबरी के आप अपराधी हो जाते हैं । न्यूज में वैसे ही आदतें बिगड़ जाती हैं । घर में भी दिन भर आप मेल चेक करते रहते हैं कि कौन सी खबर हुई, किसका कबाड़ बयान आया । जो लोग बिना छुट्टी काम करने और दिन भर दफ्तर में रहने का दंभ भरते हैं वो बीमार हैं । इनके घर की कहानी बहुत ही दुखद होगी । ये खाक बेहतर समाज बनायेंगे ।
इसलिए कोई एंकर अगर तीन चार महीने से छुट्टी पर न गया हो तो उसे फोन कीजिये । उसके दफ्तर फोन कीजिये कि क्या बात है ये बहुत दिनों से छुट्टी पर नहीं गया है । उसके संपादक से कहिये कि ठीक है हम उसे बहुत पसंद करते हैं मगर यह कई साल से देर रात तक स्टुडियो में रहता है, इसके घर में तो सब ठीक है न या इसके घर में भी कुछ न बोलने वाली कोई समझौतावादी समझदार बीबी है ? आप उसकी खुशी के लिए उसकी छुट्टी की मांग कीजिये । वैसे सारे एंकर जाते ही होंगे छुट्टी पर । नंबर वन आने वाले लोगों की क्षमता हम जैसों से अलग होती है । वो दुनिया का हर काम बेहतर ढंग से कर लेते हैं । उनमें असुरक्षा की भावना भी होती होगी कि कहीं उनके छुट्टी पर चले जाने के बाद कोई दूसरा न बेहतर तरीके से कर दे !
ट्रेन में भी ज्यादातर लोगों ने ऐसे धरा जैसे मैं पकड़ लिया गया हो । अच्छा रवीश जी, तभी कहे कि आप दिख क्यों नहीं रहे । छुट्टी मना रहे हैं । मेरे सहित पूरा परिवार छिपने लगता था । फिर सबकुछ सामान्य ही हो जाता था । चौदह तारीख से आ जाऊँगा । आप लोग खोज खबर रखिये लेकिन ज्यादा हल्ला मत कीजिये नहीं तो मेरी छुट्टी की हालत भी CISF CRPF के जवानों वाली हो जाएगी । जब भी एयरपोर्ट पर टकराते है , उदासी भरे स्वर में कहने लगते हैं कि हमारी व्यथा दिखाइये न । दिक्कत है कि लोकतंत्र में उन्हें कैमरे पर बोलने की इजाज़त नहीं है । वही जब देश के लिए जान देकर शहीद हो जायेंगे तो सारा देश रोएगा । क्यों न थोड़ी चिन्ता उनके जीते जी भी कर ली जाए । क्यों न पत्रकारों की छुट्टी को सामाजिक स्वीकृति मिले । देखिये तो अंग्रेजी के लोग कितनी ठसक से छुट्टी मनाते हैं ।
नोट : हिन्दी के युवा पत्रकारों, पत्रकारिता के नाम पर तुम्हारी जवानी का शोषण किया जाता है। कम पगार और ज्यादा काम। सिस्टम ही ऐसा है। इसे मैं भी नहीं बदल सकता दोस्त। शायद तुम भी नहीं। पत्रकारिता के बड़े सवाल का संबंध तुमसे है ही नहीं। इसलिए लोड मत लो। मैंने शुरू में गलती की। जोखिम उठाकर ठीक से पर्यटन नहीं किया। जवानी भी बीत गई। पत्रकारिता का भी कुछ नहीं हुआ। कहीं मेरा ही कुछ न हो जाए। बस आप जैसे पूछने वाले रहेंगे तो कुछ नहीं होगा। प्यार पर भरोसा करना चाहिए।
जाने माने पत्रकार रवीश कुमार के ब्लाग कस्बा से साभार.
shaikh aamir
January 12, 2016 at 10:26 pm
रविश जी आप यूँहीं प्राइम टाइम के रविश जी नहीं हैं
Archit
January 13, 2016 at 7:41 am
रवीश आपको केवल बीजेपी के विरोधी ही खोजते हैं क्यूंकि आपके अलावा कोई agenda set करके BJP को हर छोटी चीज के लिये नही कोसता।
इसलिये जब आप नही आ रहे हैं तो उन तमाम बीजेपी विरोधियों का खाना हज़म नही हो रहा। आप और आपका चैनल बार-बार एसे बनता है जैसे TRP की rating फर्जी होती हैं। अगर एसा है तो आपका चैनल घाटे में क्यूं है?
क्यूं नही आपको बाकी चैनल्स की तरह विग्यापन मिल रहे हैं?
असलियत ये है की हर किसी को रात नौ बजे debate देखने का मन नही होता। बल्कि कई लोग तो दिनभर के बाद घर आकर पूरे दिन का समाचार सुनने को बेताब रहते हैं ना की आपकी agenda set debates सुनने के लिये।
Yashwasnt जी से अनुरोध है की क्र्पया इस पेज को neutral रहने दें। इस पेज पर किसी के पक्ष में ना झुकायें।
mr ex
January 17, 2016 at 9:10 am
Sir please you handle channel and content instead of few stupid people who are running it right now