साल 2019 में मीडिया जगत में सफल पहचान बनाने वाला रिपब्लिक भारत आजकल अपनी नई तुगलकी नीतियों के कारण चर्चा में बना हुआ है। रिपब्लिक भारत अपने तुगलकी एम्प्लॉयमेंट कॉन्ट्रैक्ट से पत्रकारों का शोषण करने की कवायद शुरू कर चुका है। कॉन्ट्रैक्ट को एकतरफा इस तरह से लिखा गया है कि पत्रकार चाहकर भी अपना बचाव नही कर सकते।
राष्ट्र सर्वोपरी कहने वाला एक बड़ा संस्थान रिपब्लिक भारत जो देश भक्ति का दम भरते नही थकता, वही चैनल आज देश के पत्रकारों को बंधुवा मज़दूर बनाने पर तुला हुआ है। आइए आपको बताते हैं रिपब्लिक भारत के कॉन्ट्रैक्ट में क्या लिखा हुआ है जिससे रिपब्लिक के पत्रकार इस कॉन्ट्रैक्ट का विरोध कर रहे हैं और लगातार रोज़ पत्रकार त्यागपत्र देने को मजबूर है। अभी तक लगभग 10 से 15 त्यागपत्र दिए जा चुके हैं।
कॉन्ट्रैक्ट में क्या लिखा है-
रिपब्लिक भारत के तुगलकी कॉन्ट्रैक्ट में पत्रकार को नौकरी छोड़ते वक़्त संस्थान 90 दिनों का नोटिस पीरियड देगा। जो वरिष्ठ पत्रकार है वो 180 दिन यानी 6 महीनों का नोटिस पीरियड देंगे। इसके साथ ही संस्थान को छोड़ने के बाद 1 साल तक वह ऐसे किसी संस्थान में कार्य नही करेंगे जो रिपब्लिक भारत का प्रतिद्वंदी हो।
रिपब्लिक भारत के खिलाफ अगर कोई दावा ठोंकता है या रिपब्लिक भारत को नोटिस भेजता है और मानहानि का मुकदमा करता है तो संस्थान जांच करेगा। जिस पत्रकार के द्वारा गलती हुई है, वह पत्रकार खुद ही जुर्माने की राशि का भुगतान करेगा। साथ ही वकील भी मय हर्जे खर्चे के साथ खुद ही नियुक्त करेगा। रिपब्लिक भारत जब चाहेगा वह पत्रकार को बिना कोई वजह बताये टर्मिनेट कर सकता है और किसी भी प्रकार का भुगतान भी नहीं किया जाएगा
आपको बता दें इस तुगलकी फरमान का विरोध करने के कारण कई पत्रकार त्यागपत्र दे चुके हैं और लगातार त्यागपत्र देने का सिलसिला बदस्तूर जारी है। जबसे मीडिया जगत में टाइम्स का हिंदी चैनल आने की घोषणा हुई है तभी से रिपब्लिक अपने कर्मचारियों को रोकने के लिए तरह तरह के पैंतरे आज़मा रहा है और इसी के चलते ही एकतरफा कॉन्ट्रैक्ट लाया गया है।
कांट्रैक्ट के मुताबिक नौकरी छोड़ने के बाद एक साल तक पत्रकार कहीं काम नहीं करेगा। सोचने वाली बात है कि अगर एक पत्रकार मीडिया जगत में काम नही करेगा तो वह क्या करेगा। क्या वह रिक्शा चलाएगा या सब्जी का ठेला लगाएगा, या फिर गरम तेल में पकोड़े तल कर बेचेगा? इसका भी ज़िक्र कॉन्ट्रैक्ट में करना चाहिए था। या फिर क्या एक साल तक रिपब्लिक भारत पत्रकार को भुगतान करेगा जिससे वह अपने परिवार का भरण पोषण कर सके? लेकिन रिपब्लिक भारत ने सिर्फ अपना हित ही सोचा। पत्रकारों का हित राष्ट्र के नाम पर ही छोड़ कर आंखे मूंद लिया है।
कॉन्ट्रैक्ट पर महाभारत छिड़ा हुआ है… इसलिए आज पूछता है भारत…
1- क्या अर्णब गोस्वामी टाइम्स हिंदी के आने से डर गए है।
2- क्या देशभक्ति का दम भरते भरते पत्रकारों को बंधुआ मजदूर बनाएंगे।
3-क्या टाइम्स हिंदी की दहशत से रिपब्लिक भारत डरा हुआ है।
आगे की कथा पढ़ें….
अर्णब के चैनल ने गुलामी के कांट्रैक्ट पर साइन कराने के लिए दबाव बनाने के वास्ते रोक दी सेलरी?
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