बॉम्बे हाई कोर्ट ने अंग्रेजी सांध्य दैनिक मिड डे के संपादक (इनवेस्टिगेशन) ज्योतिर्मय डे (जेडे) मर्डर केस में आरोपी रही जिग्ना वोरा को क्लीन चिट दिए जाने के फैसले को बरकरार रखा है। इससे पहले स्पेशल मकोका कोर्ट ने जिग्ना वोरा को आरोपों से बरी कर दिया था। साल 2011 के चर्चित जे डे हत्याकांड मामले में एकमात्र महिला आरोपी जिग्ना वोरा पर गैंगस्टर छोटा राजन को पत्रकार जेडे की हत्या के लिए उकसाने का आरोपी बनाया गया था।
जिग्ना वोरा की रिहाई मुंबई पुलिस के लिए बड़ा झटका मानी जा रही थी। जिग्ना वोरा को क्लीन चिट दिए जाने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार ने हाई कोर्ट में अपील दायर की थी। इससे पहले स्पेशल मकोका कोर्ट ने कहा था कि जिग्ना वोरा की संलिप्तता साबित नहीं हो पाई है। सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में कहा था कि जिग्ना वोरा जे डे की जोरदार पत्रकारिता से नाराज थीं और उनकी सफलता से जलती थी।
जे डे अंग्रेजी सांध्य दैनिक मिड डे के संपादक (इनवेस्टिगेशन) थे और उन्हें 11 जून 11 को पवई स्थित उनके आवास के समीप गोली मार दी गई थी। इस घटना से देश के मीडिया जगत में शोक की लहर दौड़ गई थी। इस मामले की जांच पहले पुलिस कर रही थी लेकिन इसकी जटिलता को देखते हुए इसे बाद में अपराध शाखा को सौंप दिया गया। मामले में सनसनीखेज मोड़ तब आया था, जब पुलिस ने 25 नवंबर 2011 को मुंबई के द एशियन एज की डेप्युटी ब्यूरो चीफ जिग्ना वोरा समेत 10 अन्य को गिरफ्तार किया। जांच के दौरान पता चला था कि वोरा कथित रूप से लगातार छोटा राजन के संपर्क में थीं और डे की हत्या के लिए उसे उसकाया था।
इसी मामले में छोटा राजन हो चुका है दोषी करार इससे पहले मई 2018 में पत्रकार ज्योतिर्मय डे की हत्या में विशेष मकोका अदालत ने राजेंद्र सदाशिव निखलजे यानी छोटा राजन को भारतीय दंड संहिता की धारा 302, 120-बी और महाराष्ट्र कंट्रोल ऑफ ऑर्गनाइज्ड क्राइम एक्ट (मकोका) की धारा 3 (1) (i), 3 (2) और 3 (4) के तहत दोषी करार दिया था और उसे आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। राजन के साथ, 8 अन्य आरोपी दोषी पाए गए और उन्हें भी यही सजा सुनाई गई। जबकि एक आरोपी की मौत हो गई थी और 2 अन्य जिग्ना वोरा और पॉलसन पलितारा बरी कर दिए गए थे।
मिडडे इवनिंगर के साथ काम कर रहे अपराध संवाददाता 56 वर्षीय ज्योतिर्मय डे संगठित अपराध / ‘अंडरवर्ल्ड’ को सक्रिय रूप से कवर कर रहे थे। जेड ने कई ऐसे लेख लिखे थे जो छोटा राजन के खिलाफ जाते थे।
जस्टिस बीपी धर्माधिकारी और एसके शिंदे की पीठ ने पाया कि वर्ष 2011 के इस हत्याकांड में सीबीआइ वोरा के खिलाफ साक्ष्य प्रस्तुत करने में विफल रही है। पीठ ने मंगलवार को कहा कि सीबीआइ ने कुछ फोन कॉल और चश्मदीद गवाहों के आधार पर वोरा व राजन आदि के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया था। हालांकि, कोई भी फोन कॉल यह साबित नहीं कर सका कि डे की हत्या वोरा के कहने पर की गई थी।
गौरतलब है कि सीबीआइ ने आरोप पत्र में दावा किया था कि वोरा ने पेशागत दुश्मनी के कारण मिड डे अखबार के पत्रकार जेडे की शिकायत विदेश में रह रहे गैंगस्टर राजन से की थी। अभियोजन के अनुसार, गैंगस्टर राजन अपने गिरते स्वास्थ्य और अंडरवर्ल्ड में कमजोर होती पकड़ के संबंध में डे की रिपोर्टिग को लेकर नाराज था, इसलिए उसने डे की हत्या करवा दी। इंडोनेशिया में गिरफ्तारी और अक्टूबर 2015 में भारत में प्रत्यर्पित किए जाने के बाद राजन इन दिनों दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है।
जे. डे. हत्याकांड की सुनवाई अधीनस्थ न्यायालय में करीब 7 वर्षों तक चली। सुनवाई के दौरान अभियोजन पक्ष ने कहा था कि जे. डे. लगातार छोटा राजन के खिलाफ लिख रहे थे और उसके काले कारनामों को उजागर रहे थे। इस बात को लेकर छोटा राजन ने जे. डे. की हत्या करवा दी। अभियोजन पक्ष का यह भी कहना था कि जे. डे. मोस्ट वॉन्टेड अंडरवर्ल्ड डॉन दाउद इब्राहिम की प्रशंसा करते थे, जो छोटा राजन को खराब लगत लगता था। हत्याकांड में तेल माफियाओं का नाम भी सामने आया था। जे. डे. हत्याकांड में छोटा राजन का नाम आने के बाद उसके उपर कई न्यूज चैनलों को फोन कर धमकाने का भी आरोप लगा। पहले वह कह रहा था कि वह जे. डे. को सिर्फ धमकाना चाहता था, न कि उसकी हत्या करवाना चाह रहा था। बाद में उसने अपने गुनाह कबूले थे।
मामले की जांच के दौरान उस समय टर्निंग प्वाइंट आ गया जब पुलिस ने दावा कि, जे. डे. हत्याकांड में पत्रकार जिग्ना वोरा का भी हाथ है।उन्होंने मुखबीरी की थी।उनके उपर शूटरों को जे. डे. की लोकेशन, गाड़ी का नंबर समेत अन्य जानकारी उपलब्ध कराने के आरोप लगे थे।मामले की जांच के दौरान एक और अहम घटना सामने आई।सीबीआई ने दावा किया था कि, जे. डे. अंडरवर्ल्ड की स्याह दुनिया पर एक किताब लिख रहे थे, जिसमें राजन को ‘चिंदी’ जैसा बताने और दाउद इब्राहिम को मुंबई का असली डॉन लिखने की चर्चा थी।इससे छोटा राजन बौखला गया था। ट्रायल के दौरान सरकारी वकील ने कुल 155 गवाह पेश किए थे।
madan kumar tiwary
August 28, 2019 at 10:26 pm
एक सामान्य व्यक्ति भी वोरा की संलिप्तता समझ जाएगा,अफसोस उच्च न्यायालय ने नही समझा