Shambhunath Shukla : मोदी जी का पहला कार्यकाल निश्चय ही बेहतर था। इसीलिए पब्लिक ने दोबारा भी उन्हें ही चुना। किंतु उनके दूसरे कार्यकाल में शनि की कुपित दृष्टि पड़ गई। पहले कार्यकाल में देश भर में शांति रही। कहीं कोई बवाल नहीं, कोई मारकाट नहीं।
आम लोगों की बेहतरी के लिए उज्ज्वला योजना, स्वास्थ्य के वास्ते आयुष्मान योजना, सस्ती दवाओं के लिए जन औषधि केंद्र खोले गए थे। सड़कें बनीं, स्वच्छता मिशन का असर पड़ा। लेकिन उनके लग्गू-भग्गू चमचों और अलोकप्रिय मुख्यमंत्रियों ने सब चौपट कर डाला।
तब मंत्री भी ठीक ही थे। चाहे सुषमा स्वराज रही हों या अरुण जेटली या अपने ठाकुर साहब। पर अब अमित शाह हैं, निर्मला हैं, निशंक हैं और औने-पौने नेता। मोदी जी अपनी चुप्पी तोड़ें और अपने मंत्रियों के बेतुके व बड़बोले बयानों पर अंकुश लगाएँ। इनके बोल देश में नरक मचाए हैं। मोदी जी दूसरी बार प्रधानमंत्री तो क़ई बनें मगर तीसरी बार सिर्फ़ नेहरू जी ही। आप उनके जैसे बड़े बनें।
अब जनऔषधि केंद्रों पर ज़ेनेरिक दवाओं का टोटा रहता है। टेल्मा-40 जैसी दवा उपलब्ध नहीं है। ऐसे में आम गरीब आपको वोट नहीं करेगा। मँहगे-महँगे सूट पहनने से अच्छा है, बापू की तरह आधी टाँगों वाली धोती पहनो, आश्रम में रहो, महँगी गाड़ियों का मोह त्यागो।
आप कहोगे इससे बाहर के देशों में हमारी बदनामी होगी। लेकिन प्रधानमंत्री जी, आपके देश की आधी जनता को रोटी नहीं मिलती। तन ढकने को वस्त्र नहीं है, तब आप नेहरू की तरह आलीशान ढंग से न रहो। उनके बाप तो अंग्रेजों के समय भी देश के तीस बड़े धनपतियों में थे। जबकि आप दावा करते हो, आप चाय वाले हो, पिछड़ी जाति से हो।
तब इतनी अय्याशी तो न ही दिखाओ। गांधी के देश से आए हो, गांधी की तरह रहो। उनकी सुदामा स्टाइल वाली धोती वाली अदा पर आइंस्टीन भी फ़िदा था।
अपने कानपुर में सहयोगी रह चुके वरिष्ठ पत्रकार और कई वर्षों तक हिंदुस्तान में संपादक रहे साथी Sanjay Katiyar की यह टिप्पणी गौरतलब है। आम जन और एक बुद्धिजीवी में फ़र्क़ होता है। संपादक न तो किसी राजनीतिक दल का प्रवक्ता होता है, न वह हवा में तलवार भाँजता है। एक बेहद संतुलित टिप्पणी झारखंड के नतीजों पर।
“झारखंड चुनावों के नतीजों के बाद से सोशल मीडिया गरमाया हुआ है। मोदी-शाह पर चौतरफा हमलों के बीच लोग ये भी कहने से नहीं चूक रहे कि मोदी युग का पतन शुरू हो गया है। कोई इन नतीजों को NRC-CAA पर भी जनमत बता रहा है तो कोई कह रहा है कि राम मंदिर और धारा 370 जैसे मुद्दों को जनता ने नकार दिया है। जमकर भड़ास निकाली जा रही है और कोई कहने से चुके भी क्यों, मौका जो है। दरअसल एक जैसी धार्मिक और राष्ट्रवादी खुराक से ऊबी जनता के लिए ये नतीजे स्वाद बदलने वाले हैं। ठीक वैसे ही जैसे धर्मनिरपेक्षता की अति लोग ऊबे थे। जनता ने तब भी सबक दिया था और अब भी सबक दे रही है। लेकिन तब न कांग्रेस खत्म हुई थी और न अब भाजपा खात्मे पर है। भाजपा और मोदी के पतन का एलान इसलिए भी नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि उनके पास समय है और सामने कोई चमत्कारिक नेतृत्व भी नहीं है। उनके लिए राह फिसलन भरी जरूर है पर सम्भलने के मौके भी पर्याप्त हैं। उन्हें अब समझना होगा कि इस देश में अब धार्मिक, राष्ट्रवादी और विभाजनकारी खुराक से और लाभ नहीं मिलने जा रहा है। इस खुराक का चर्मोत्कर्ष भाजपा देख चुकी है और अब जमीनी मुद्दों के सामने इसकी चमक मद्धम पडने लगी है। ये चमक और भोथरी होती जाएगी अगर भाजपा और मोदी देश के मन की बात को नहीं समझेंगे, अगर वो बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, मन्दी जैसे मसलों को जल्द से जल्द नहीं सुलझाएंगे। क्योंकि सिर्फ नकारने से समस्याएं खत्म नहीं होतीं। बीमारी छुपाने से बीमार का इलाज नहीं होता। भाजपा को ये समझना होगा।”
वरिष्ठ पत्रकार शंभूनाथ शुक्ला की एफबी वॉल से.