देवप्रिय अवस्थी-
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का इस्तीफा कहीं राज्य में भाजपा की लोकप्रियता में गिरावट की परोक्ष स्वीकारोक्ति तो नहीं या फिर मोटाभाई को नया प्यादा बैठाना है?
कुमुद सिंह-
पता नहीं क्यों लग रहा है जैसे अमित शाह प्रधानमंत्री की कुर्सी के काफी नजदीक खड़े हैं, उनका हाथ मोदी के गिरेबां तक पहुंच गया है.
जिस प्रकार मोदी ने बौखलाकर अमित शाह के करीबी रुपानी से इस्तीफा लिया है उसके बाद अब अमित शाह की चाल देखने की बारी है. मोदी का इस्तीफा कभी आ जाये तो चौंकियेगा नहीं. क्योंकि शतरंज में अपना प्यादा मारकर राजा को चेक दिया जाता है.
सौमित्र रॉय-
पता नहीं, मोदीजी अपनी नाकामी छिपाने के लिए कितनों की और बलि लेंगे। अभी दो विकेट गिरने बाकी हैं।
समझदार को इशारा ही काफी है।
जान लें कि रुपाणी के इस्तीफे के पीछे बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन मंत्री एल संतोष का अहम रोल है।
यह भी याद रखें कि बीएल संतोष दो दिन पहले ही भोपाल होकर गए हैं। वे पार्टी और सरकार के बीच समन्वय, संवाद की कमी से खासे नाखुश दिखाई दिए थे।
जहां कांग्रेस ज़मीन पर मजबूती से खड़ी है, पार्टी की कमान योग्य हाथों में है, वहां बीजेपी पर हमेशा दबाव रहा है।
अगस्त में कांग्रेस ने गुजरात में बीजेपी सरकार के खिलाफ़ 9 दिन का अभियान चलाया था।
और इस माह कांग्रेस की 7 दिवसीय कोविड न्याय यात्रा ने विजय रुपाणी सरकार को पूरी तरह से बेनकाब कर दिया है।
आज रुपाणी के इस्तीफे को आप इस रूप में भी परिभाषित कर सकते हैं। यह मोदी-शाह के राज्य में कांग्रेस की पहली जीत है।
अब बीजेपी चाहकर भी बिगड़े को सुधार नहीं सकती।
एमपी में कमलनाथ और दिग्विजय सिंह को इससे सबक सीखना चाहिए।
कृष्ण कांत-
इस्तीफे के बाद विजय रूपाणी की प्रेस कॉन्फ्रेंस सुनकर ये पुख्ता हुआ कि वे गुजरात के नहीं, नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री थे. करीब 500 शब्द के छोटे से भाषण में कम से कम छह बार प्रधानमंत्री का नाम आया. “मोदी जी के विशेष मार्गदर्शन में”, “प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में”, “प्रधानमंत्री जी का आभार प्रगट करता हूं”, “प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व एवं मार्गदर्शन में काम करूँगा”, “प्रधानमंत्री जी के नेतृत्व में गुजरात को आगे लेकर जाएंगे”…वगैरह.
उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस से साफ है कि किसी वजह से इस्तीफा लिया गया है, लेकिन क्यों लिया गया है ये कोई नहीं जानता.
पूरी पार्टी, पूरा देश सिर्फ डेढ़ लोग मिलकर चला रहे हैं. प्रदेश की जनता तो जाने दीजिए, पार्टी के नेता और कार्यकर्ता भी किसी फैसले में कहीं नहीं होते. फिर भी कुछ लोग गाना गाते हैं कि बीजेपी में बहुत तगड़ा लोकतंत्र है.
अनिल जैन-
गुजरात में शाह और शहंशाह की पोली होती जमीन पर डबल इंजन वाली गाड़ी फिर पटरी से उतरी।
बिकाऊ मीडिया के बेखबरी दल्ले कांग्रेस की बदहाली के गीत गाते रहे और इस्तीफा विजय रुपाणी का हो गया।
सात साल में चौथा मुख्यमंत्री मिलेगा गुजरात को।
रंगनाथ सिंह-
“गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपानी और उनके पूरे मंत्रिमण्डल ने इस्तीफा दे दिया है। भाजपा का अंदरूनी आकलन है कि इन लोगों को रहते पार्टी दिसम्बर 2022 में होने वाला गुजरात विधानसभा चुनाव नहीं जीत पाएगी।”
सत्येंद्र पीएस-
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने इस्तीफा दे दिया। उन्होंने करीब 5 साल गुजरात का विनाश किया।
राज्य में लघु एवं कुटीर उद्योगों की बैंड बज गई है और पूरे देश में यही हुआ है। खेती और किसानों की हालत देख ही रहे हैं। इन्हीं दो फील्ड पर गुजरात के पटेलों का राज था।
कांग्रेस ने पटेलों को साइडलाइन किया तो पटेलों ने भाजपा पकड़ी थी। भाजपा ने शुरुआत में पटेलों को फ्री हैंड दिया, लेकिन जैसे ही उनके ऊपर हिंदुत्व का नशा चढ़ा, आरएसएस ने कुर्सी खींच ली और नरेंद्र मोदी को पटेलों के ऊपर थोप दिया। तबसे पटेलों का शासन प्रशासन, मॉन सम्मान, धंधा पानी, खेती किसानी हिंदुत्व के नीचे घिसट रहा है।
अब चुनाव के पहले भाजपा डैमेज कंट्रोल करना चाह रही है जिससे विजय रुपाणी की नालायकी के खिलाफ आक्रोश (एन्टी इनकंबेंसी) कम किया जा सके। संभव है कि मनसुख मंदाविया, पुरुषोत्तम रुपाला या नितिन पटेल जैसे किसी पटेल नेता को सीएम बना दिया जाए। इस समय कांग्रेस ने गुजरात में हार्दिक पटेल को फ्री हैंड दे रखा है।
अब मेरे लिये यह समझना थोड़ा कठिन हो रहा है कि ये कुर्मी पटेल मराठा वगैरा क्या सचमुच सूतिये होते हैं जो चुनाव पूर्व पंकज चौधरी, अनुप्रिया पटेल, मनसुख मंदाविया, ज्योतिरादित्य सिंधिया, नीतीश कुमार, आरसीपी सिंह को झुनझुना थमा देने से खुश हो जाते हैं या कांग्रेस व अन्य दलों के कर्म ही ऐसे नहीं हैं कि ये उचित सम्मान/प्रतिनिधित्व देकर वोट खींच पाएं। वैसे गुजरात में जिस शांति से इस्तीफा हुआ, वह प्रशंसनीय है।