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स्क्रीन पर स्त्री : जो खल चरित्र होंगी वो प्रगतिशील, पढ़ी-लिखी, कामकाजी, खुद की पहचान के लिए जद्दोजद करती नजर आएंगी

 

दिल्ली। टेलीविजन अपने चरित्रों को पहले लोकप्रिय बनाता है और फिर हमारे वास्तविक जीवन में उसकी दखल होती है। हम जो वास्तविक जिंदगी मे हैं वो व्यक्तित्व टेलीविजन बाहर निकालकर लाता है| उक्त विचार सुपरिचित मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने हिन्दू कालेज की वीमेंस डेवलपमेंट सेल के वार्षिक उत्सव समारोह मे ”स्क्रीन पर स्त्री ”विषय  संगोष्ठी में व्यक्त किए।

 

दिल्ली। टेलीविजन अपने चरित्रों को पहले लोकप्रिय बनाता है और फिर हमारे वास्तविक जीवन में उसकी दखल होती है। हम जो वास्तविक जिंदगी मे हैं वो व्यक्तित्व टेलीविजन बाहर निकालकर लाता है| उक्त विचार सुपरिचित मीडिया विश्लेषक विनीत कुमार ने हिन्दू कालेज की वीमेंस डेवलपमेंट सेल के वार्षिक उत्सव समारोह मे ”स्क्रीन पर स्त्री ”विषय  संगोष्ठी में व्यक्त किए।

विषय के टेलीविजन से जुड़े पक्ष पर विनीत कुमार ने कहा कि इस दिल्ली शहर में दर्जनों ऐसी शॉप, शोरूम हैं जहां बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है- यहां टीवी सीरियलों की डिजाईन की जूलरी मिलती है। आप चले जाईए कटरा अशर्फी और सिरे से खारिज कीजिए साडियों की डिजाईन, लंहगे की स्टाईल और रंगों को..दूकानदार आपको सीधा जवाब देगा कि आप जिसे नापसंद कर रही हैं, उसे अक्षरा, काकुली, पार्वती, प्रिया भाभी पहनती हैं। कई बार दर्शक खुद ग्राहक की शक्ल में इनकी मांग करते हैं।

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उन्होंने कहा कि दूसरी तरफ टीवी स्क्रीन का पर्दा अपने तमाम स्त्री चरित्रों को अच्छे-बुरे में विभाजित करता है। कोहेन ने सोप ओपेरा पर गंभीर अध्ययन करते हुए विस्तार से बताया है कि जो अच्छी चरित्र के खाते में होंगी वो परंपरा, परिवार, मूल्य, संस्कार आदि (भले ही वो कई स्तरों पर जड़ ही क्यों न हों) बचाने में सक्रिय होंगी जबकि जो खल चरित्र होंगी वो प्रगतिशील, पढ़ी-लिखी, कामकाजी, खुद की पहचान के लिए जद्दोजद करती नजर आएंगी. अकादमिक-साहित्यिक दुनिया से ये बिल्कुल उलट छवि हैं।

संगोष्ठी में पक्ष सिनेमा पर बात करते हुए युवा फिल्म आलोचक मिहिर पंड्या  ने बताया  कि हिन्दी सिनेमा हमेशा नायक प्रधान होता है जिसमे नायिका का काम नायक को उत्कर्ष तक पहुँचाना होता है। स्त्री को केन्द्र मे रखकर सिनेमा इतिहास पर बात करते हुए ”मदर इंडिया ” से इधर की ‘क्वीन’  और ‘मसान’  जैसी समसामयिक फिल्मों की चर्चा की।  मदर इंडिया के क्लाइमेक्स पर बात करते हुए ”राधा माँ” को भारत माँ का सुपर इंपोज़ होते हुए बताया जिसका सीधा संबंध आज़ाद भारत मे प्रेम के मानक को गढ़ना था। 1995 मे आई सुपर हिट फिल्म ‘दिलवाले दुल्हनिया ले जाएगे’ को उदारीकरण,भूमंडलीकरण से जोड़कर देखते हुए थम्स अप जैसे उत्पादों को सिनेमा द्वारा संकेतिक रूप से स्वीकारने की बात कही।

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संगोष्ठी में मौजूद बड़ी संख्या में विद्यार्थियों ने दोनों वक्ताओं से अपने सवाल पूछे। संगोष्ठी के प्रारम्भ में दोनों वक्ताओं का परिचय देते हुए हिंदी विभाग के अध्यापक डॉ पल्लव ने कहा कि सिनेमा और टीवी की आलोचना को अकादमिक बहसों की गंभीरता के स्तर पर चिंतन योग्य बनाने में विनीत और मिहिर के लेखन की बड़ी भूमिका है। दोनों अतिथियों, सेल की छात्राओं और डॉ नीलम सिंह ने दीप प्रज्ज्वलन कर आयोजन का शुभारम्भ किया। संगोष्ठी में हिन्दू कालेज के अतिरिक्त बाहर के कालेजों से भी अध्यापक और विद्यार्थी उपस्थित थे। इससे पहले फूलों से अतिथियों का स्वागत किया। अंत में वीमेंस डेवलपमेंट सेल की प्रभारी डॉ रचना सिंह ने सभी का आभार माना।

अनुपमा रे

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अध्यक्षा, वीमेंस डेवलपमेंट सेल

हिन्दू कालेज, दिल्ली

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