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जागरण के आजादी वाले कार्यक्रम में विनीत कुमार क्या जागरणकर्मियों के शोषण की बात रख पाएंगे?

Yashwant Singh : आज मंच जागरण का, परीक्षा विनीत कुमार की… ‘मीडिया मंडी’ किताब के लेखक विनीत कुमार मीडिया विमर्श में उभरते नाम हैं। विनीत बेबाक राय के लिए जाने जाते हैं। मीडिया संस्थानों के दोहरे मानदंडों को बेनकाब करने में विनीत कोई उदारता नहीं बरतते। सामाजिक मुद्दों पर भी विनीत की लेखनी ईमानदार और धारदार रही है। विनीत 4 अप्रैल यानि आज रोहतक में जागरण समूह की ओर से आयोजित किए जा रहे संवाद कार्यक्रम को मॉडरेट करने जा रहे हैं। कार्यक्रम ‘नारी से जुड़े आज़ादी और दायरा’ विषय पर है। इसका आयोजन रोहतक के झज्जर रोड पर स्थिति वैश्य महिला महाविद्यालय पर सुबह 11.30 बजे से है। कार्यक्रम की वक्ता शतरंज चैंपियन और लेखिका अनुराधा बेनिवाल हैं। विनीत ने अपने फेसबुक वॉल पर इस कार्यक्रम की बाकायदा पोस्टर के साथ जानकारी दी है।

विनीत ने अपनी इस पोस्ट के साथ लिखा-

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“हम आपसे बातचीत करने रोहतक, हरियाणा आ रहे हैं। पिछले कुछ महीने में आजादी के इतने अलग-अलग मायने पैदा कर दिए गए हैं कि वे गुलामी के पर्याय बनकर हमारे सामने है। जमीनी स्तर पर जिस आजादी को हासिल करने की कोशिश की जा रही है, उसे परंपरा, राष्ट्रहित और संस्कार के नाम पर उन तहखानों में कैद करने के धत्तकर्म किए जा रहे हैं कि हमारे जेहन में बस एक ही सवाल बाकी रह जाता है। आजाद हुए तो क्या और गुलाम बने रहे तो क्या नुकसान? और इन सबके बीच सालों से इज़्ज़त की ख़ातिर, खोल में छिपी दास्ताँ तो है ही। इधर आजादी रोजमर्रा की जिंदगी और आसपास की दुनिया में बची हो चाहे नहीं, एक के बाद एक विज्ञापनों में चेंपने का काम जोरों पर है। पानी बिल से आजादी (दिल्ली जलबोर्ड), एयरपोर्ट पर लाइन लगने से आजादी (यात्रा डॉट कॉम), गीलेपन से आजादी (सेनेटरी नैपकिन के लगभग सारे विज्ञापन)…जमीनी स्तर पर आाजादी की आवाज बुलंद करनेवाले आंदोलनों से आइडिया चुराकर ये सारे विज्ञापनों ने अपनी कॉपी भर ली है। लेकिन आजादी की मार्केटिंग और मैनेजमेंट की जाने की कवायदों के बीच हमारी-आपकी दुनिया कितनी आजाद है, हम इन सारे बेसिक मुद्दों पर बात करेंगे। वैसे तो बातचीत का सिरा होगा अनुराधा बेनीवाल की किताब ‘आजादी मेरा ब्रांड’ लेकिन हम इसे विमर्श का जनाना डब्बा बनाने के बजाय, दूसरे उन कई मसलों पर बातचीत करेंगे जिनमे आपकी दिलचस्पी होगी। हम तो बस मौजूद होंगे, विमर्श के वजूद में तो आखिर तक आप ही बने रहेंगे। तो मिलते हैं कल।“

विनीत ने इसी पोस्ट के 4 घंटे बाद अपने फेसबुक वॉल पर एक और पोस्ट डाली। इस पोस्ट में विनीत कुछ कुछ सफ़ाई देने वाले अंदाज़ में दिखे। विनीत को आखिर क्यों खुद को जस्टीफाई करने की ज़रूरत पड़ी। क्या ये ‘अपराधबोध’ था कि उन्होंने जागरण ग्रुप के कार्यक्रम का मॉडरेटर बनना स्वीकार किया। क्या उन्हें डर था कि कल को इस बात को लेकर उन पर सवाल उठाए जा सकते हैं। बहरहाल विनीत ने पहले ही डिफेंस मुद्रा में आना बेहतर समझा।

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पढ़िए विनीत ने अपनी इस दूसरी पोस्ट में क्या लिखा-

“कल को मुझे पाञ्चजन्य, सामना, रामसंदेश, संदेश कमल जैसी पत्रिकाएं, अखबार और सुदर्शन जैसे चैनल भी अपनी बात रखने के लिए बुलाते हैं और मेरे पास समय होगा, मेरी सुविधा के हिसाब से इंतजाम होगा तब मैं बोलने जरूर जाऊंगा। इन सुविधाओं में घर से लाना-वापस छोड़ना, रास्तेभर पानी, फ्रूट्स, वॉशरूम का इंतजाम, राह खर्च और प्रोत्साहन राशि शामिल है। मैं मीडिया और साहित्य का छात्र हूं। मेरा एक ही धर्म है संवादधर्मिता। हम हर हाल में अपनी बात रखना चाहते हैं और कोई भी मंच मुझे अपने तरीके से बोलने देगा, सुरक्षित ले जाएगा और वापस घर छोड़ देगा तो मैं इस धर्म के साथ हूं। रही बात प्रतिबद्धता की तो वो मेरे भीतर गहरे रूप में मौजूद है, रहेगी। हमने इस मंच पर जाना है, उस मंच पर नहीं जाना। ये डिब्बाबंदी मुझे प्रतिबद्ध कम, मानसिक रोगी ज्यादा बना देगा। ये एक स्वस्थ समाज के लिए खतरनाक और नए किस्म की छुआछूत की बीमारी है और मुझे मेरे शुभचिंतकों ने कम से कम लोड लेकर जीने की सलाह दी है। मैं ऐसी बीमारी से दूर रहना चाहता हूं। हम कोई बुद्धिजीवी नहीं है, किसी पार्टी के कार्यकर्ता नहीं हैं। हम नॉलेज प्रोड्यसूर हैं और प्रोड्यूस करने के साधन जहां मिलेंगे, वहां करूंगा। मैंने अपने इस छोटे से जीवन में पार्टी, संस्थान, व्यक्ति के प्रति प्रतिबद्धता की होर्डिंग लगाकर, विचार और मौके पर फैसले के स्तर पर एक से एक धुरंधर लोगों को मैनेज होते, जनतंत्र विरोधी होते देखा है। ऐसे में मुझे बदनाम होकर, शक किए जाने पर भी अपने से अलग, विपरीत और असहमत लोगों, मंचों के बीच बोलना पसंद है।“

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विनीत, आपने ये दोनों पोस्ट वैसी ही अच्छी और धाराप्रवाह लिखीं जैसे कि आप हमेशा लिखते रहे हैं। नहीं कह सकते कि आपने दूसरी पोस्ट सफ़ाई वाले अंदाज़ में क्यों लिखी। लेकिन इसमें आपने लिखा कि आप इस कार्यक्रम में हमारी-आपकी दुनिया कितनी आजाद है, उन सारे मुद्दों पर बातचीत करेंगे। आपने ये भी अच्छा कहा कि आप इस विमर्श का जनाना डब्बा बनाने के बजाय, दूसरे उन कई मसलों पर बातचीत करेंगे जिनमे आपकी दिलचस्पी होगी। विनीत ने दूसरी पोस्ट में ये भी कहा कि विपरीत और असहमत लोगों, मंचों के बीच बोलना पसंद है।

विनीत के मुताबिक जिन मसलों पर सबकी दिलचस्पी होगी, उन सभी पर विमर्श करेंगे। विनीत मेरी दिलचस्पी इस कार्यक्रम के आयोजक ‘जागरण ग्रुप’ से जुड़े कुछ मसलों पर हैं। और ये मसले ‘आजादी’ से ही जुड़े हैं। लेकिन इन मसलों पर आऊं, इससे पहले एक बात बताना चाहता हूं। पत्रकारिता के पुरोधा दिवंगत प्रभाष जोशी जी ने एक बार अरविंद केजरीवाल से अपनी नाराज़गी जताई थी। दरअसल प्रभाष जोशी ने आरटीआई यानी सूचना के अधिकार संबंधी घोषित पुरस्कार की जूरी में इसी ग्रुप के संपादक-मालिक के होने पर ऐतराज़ जताया था। यही ग्रुप रोहतक में भी संवाद कार्यक्रम करने जा रहा है। विनीत आपने अपनी पोस्ट में लिखा है कि आप किसी भी मंच पर जाकर बोलेंगे बशर्ते कि आपको अपने तरीके से बोलने दिया जाए। विनीत इस कार्यक्रम के मॉडरेटर हैं, इसमें कोई आपत्ति नहीं है। दिलचस्पी इस बात पर है कि विनीत इस कार्यक्रम में क्या बोलते हैं। क्या वे अपने मेज़बान आयोजक की विसंगतियों और खामियों पर सवाल उठा सकेंगे।

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क्या विनीत कह सकेंगे कि आजादी पर विमर्श तभी सार्थक होगा जब जागरण ग्रुप अपने कर्मचारियों को भी ईमानदारी से उनके हक़ देगा। क्या उनके साथ गुलामों जैसा व्यवहार बंद कर सम्मान के साथ कार्य करने का अधिकार दिया जाएगा। क्या उचित मेहनताने के लिए आवाज़ उठाने वाले कर्मचारियों पर उत्पीड़न की कार्रवाई बंद की जाएगी। आईबीएन-सीएनएन से करीब 320 कर्मचारियों की छंटनी के ख़िलाफ़ जिस तरह आवाज़ उठाई गई थी, क्या जागरण के संवाद मंच से ही उसके कर्मचारियों के हक़ में आवाज़ उठाई जा सकेगी। विनीत इस पर क्या रुख अपनाते हैं, ये देखना दिलचस्प होगा।

विनीत आपने कहा कि ये कार्यक्रम मूलत: जनाना डिब्बे से जुड़े मसलों पर है। विषय भी है नारी से जुड़ा आज़ादी और दायरा। यहां भी जागरण ग्रुप से जुड़े दो मसले विचार के लिए आपकी पेश-ए-नज़र हैं। विनीत इस कार्यक्रम में विमर्श से पहले आगरा की समाज सेविका प्रतिमा भार्गव की कहानी ज़रूर जान जाइएगा। जागरण ग्रुप के ही अखबार आई-नेक्स्ट के दुर्व्यवहार, मानहानि, प्रताड़ना की कहानी सुनाते सुनाते प्रतिमा दिल्ली प्रेस क्लब में प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हुए रो पड़ीं थीं। मसालेदार खबर परोसने के चक्कर में इस समाजसेविका के चाल चलन चरित्र पर ऐसी फर्जी मनगढ़ंत खबर छाप दी कि इनका जीना मुश्किल हो गया। घर परिवार समाज में इनकी इज्जत दाव पर लग गई।

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इसी ग्रुप से जुड़ा दूसरा किस्सा तो हाल ही का है। बुलंदशहर में महिला आईएएस बी. चंद्रकला के खिलाफ लगातार कुत्सित अभियान चलाने वाले दैनिक जागरण से नाराज होकर लोगों ने अखबार और इसके पदाधिकारियों का पुतला भी फूंका था। जागरण की इस मुहिम के शुरू होने का कारण जागरण के द्वारा उस आरोपी के साथ खड़े होकर उसकी पैरवी करना था जिसने डीएम के आफिस में घुसकर उनकी जबरन सेल्फी ली थी। डीएम तो छोड़िए क्या कोई किसी आम महिला के साथ भी बिना उसकी इजाज़त लिए सेल्फी लेने गुस्ताख़ी कर सकता है। क्या ये किसी महिला की आज़ादी में अतिक्रमण नहीं था। फिर ऐसे शख्स की पैरवी किस आज़ादी के अधिकार से। हो सकें तो विनीत इन मुद्दों पर आज के कार्यक्रम में ज़रूर बोलना। आपने खुद ही कहा है कि आपको अपने हिसाब से बोलने दिया जाए तो आप किसी भी मंच पर जाकर बोल सकते हैं। अब मंच जागरण का है…और बोलना आपको है…आप क्या बोलते हैं और जागरण क्या छापता है, इसी पर हम सब की नज़रें हैं।

भड़ास के एडिटर यशवंत सिंह के फेसबुक वॉल से.

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