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आयोजन

फिल्म इंडस्ट्री में महिला लेखकों की बहुत जरूरत है

भोपाल। अच्छी कहानी एवं पटकथा लिखने के लिए रिसर्च जरूरी है। आज फिल्म इंडस्ट्री में बहुत सारे लेखक लेखन कर रहे हैं, मगर लेखन में रिसर्च की कमी साफ झलक रही है। इसलिए हमें अच्छी कहानियाँ नहीं मिल पा रही हैं। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित कहानी, पटकथा एवं संवाद लेखन कार्यशाला में प्रख्यात कहानी एवं पटकथा लेखक श्री अशोक मिश्रा ने व्यक्त किए।

भोपाल। अच्छी कहानी एवं पटकथा लिखने के लिए रिसर्च जरूरी है। आज फिल्म इंडस्ट्री में बहुत सारे लेखक लेखन कर रहे हैं, मगर लेखन में रिसर्च की कमी साफ झलक रही है। इसलिए हमें अच्छी कहानियाँ नहीं मिल पा रही हैं। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा आयोजित कहानी, पटकथा एवं संवाद लेखन कार्यशाला में प्रख्यात कहानी एवं पटकथा लेखक श्री अशोक मिश्रा ने व्यक्त किए।

उन्होंने कहा कि फिल्म इंडस्ट्री में महिला लेखकों की जरूरत बहुत है। आज पुरुष लेखक महिलाओं के विषयों पर लिख रहे हैं, इसलिए गंभीरता नहीं आती है। उन्होंने बताया कि किस तरह से एक साधारण-सी कहानी को स्क्रीन प्ले के रूप में तैयार किया जा सकता है। उन्होंने बताया कि हम लेखन के दौरान बहुत सारे शब्दों का प्रयोग करते हैं, जिससे हमें बचना चाहिए। सिनेमा चलचित्र का माध्यम है इसलिए शब्दों का महत्व सीमित होता है। स्क्रीन प्ले को अधिकतम 120 पेजों में लिखने का प्रयास करना चाहिए।

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सिनेमा में होने वाले नवीन प्रयोगों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि जो लोग नए प्रयोग करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं वे सफल होते हैं। पटकथा लेखन के सामान्य नियमों को तोड़ते हुए लेखन करने का प्रयोग भी करना चाहिए। आजकल तकनीक का प्रयोग बहुत ज्यादा हो रहा है। इसलिए फिल्में भावनात्मक रूप से कमजोर होती जा रही हैं। उन्होंने विद्यार्थियों से कहा कि अच्छा लिखने के लिए पढ़ना बहुत जरूरी है। इसलिए अधिक से अधिक साहित्य पढ़ना चाहिए। कार्यशाला में विज्ञापन एवं जनसंपर्क पाठ्यक्रम एवं फिल्म प्रोडक्शन पाठ्यक्रम के विद्यार्थी उपस्थित थे। कार्यशाला के दौरान श्री मिश्र द्वारा विद्यार्थियों को कुछ शोर्ट फिल्में भी दिखाई गई।

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वर्तमान समय हिन्दी सिनेमा का स्वर्णकाल

रंगमंच एवं सिनेमा दोनों ही सामूहिक समन्वय के माध्यम हैं। भारत में वर्तमान दौर सिनेमा का स्वर्णकाल कहा जा सकता है। देशी कथानकों के साथ अच्छी फिल्में बन रही हैं। भारत के सिनेमा की पहचान हिन्दी सिनेमा के साथ क्षेत्रीय सिनेमा को समाहित करके ही बन सकती है। हाल ही में एक मराठी भाषा की फिल्म का ऑस्कर में नामांकन इस बात का प्रमाण है कि हिन्दी सिनेमा के साथ क्षेत्रीय सिनेमा भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रहा है। यह विचार आज माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित फिल्म समालोचना कार्यशाला ‘Film Appreciation Workshop’ में बोलते हुए केन्द्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड की सदस्य एवं फिल्म अभिनेत्री वाणी त्रिपाठी ने व्यक्त किए।

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कार्यशाला के उद्घाटन सत्र में उन्होंने कहा कि भोपाल शहर फिल्म एवं कला जगत की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह शहर संस्कृति के सारे तत्वों को समाहित करता है। कार्यशाला में अभिनय एवं निर्देशन सत्र में बोलते हुए उन्होंने कहा कि रंगमंच और सिनेमा में मुख्य अंतर यह है कि सिनेमा में स्टेज, लाईट, साउण्ड, पात्र आदि का व्यापक दायरा होता है। रंगमंच एक एक्टर का माध्यम हो सकता है, परंतु सिनेमा निर्देशक का माध्यम होता है। निर्देशक अपनी कल्पना शक्ति से कहानी को बढ़ाता है और गीत-संगीत उस कहानी में समग्र प्रभाव पैदा करते हैं। इसलिए सिनेमा को एक ऐसी विधा माना गया है जिसमें बहुत सारे पक्ष साथ-साथ चलते हैं जिससे सभी का अपना महत्व होता है। सिनेमा कौशल विकास की विधा है, जिसमें टेक्निकल स्किल्स को जानना-समझना बहुत जरूरी है। सार्थक और व्यावसायिक सिनेमा के विषय में बोलते हुए उन्होंने कहा कि हमें इस बहस से बाहर आना चाहिए कि सार्थक सिनेमा अच्छा है या व्यावसायिक सिनेमा। फिल्में अच्छी या बुरी होती है सार्थक या व्यावसायिक नहीं। सिनेमा को सामाजिक परिवर्तन का माध्यम माना जाता है और यह तभी संभव होगा जब इसे बनाने वाले अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों को समझें। भारतीय सिनेमा एक ऐसी व्यंजन की थाली है जिसमें सभी तरह के रस हमें मिलते हैं।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने कहा कि फिल्म एक कला का माध्यम है और हमें फिल्मों को एक कलाकृति की तरह ही देखना चाहिए। प्रकृति एक बड़ी कलाकृति है और प्रकृति ने मनुष्य को इसलिए बनाया कि वह उस कृति का विस्तार कर सके। इस तरह फिल्म भी एक कलाकृति है और हमें उसका आनंद लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि हमें इस बहस में नहीं पड़ना चाहिए कि फिल्म ने कितना व्यवसाय किया या वह कितनी सफल रही। एक फिल्मकार फिल्म निर्माण के माध्यम से अपनी बात कहना चाहता है, हमें उसका आनंद लेते हुए उसकी प्रशंसा करना चाहिए। कार्यशाला के कहानी, पटकथा एवं संवाद लेखन सत्र के मुख्य वक्ता प्रख्यात पत्रकार लेखक श्री अशोक मिश्रा ने कहा कि कहानी किसी भी फिल्म की आत्मा होती है। फिल्म की सफलता फिल्म की कहानी पर ही निर्भर करती है। फिल्मों के लिए कहानियाँ हमें समाज से, आम जिंदगी से एवं किताबों से मिलती है। आज अच्छी कहानियों का अभाव इसलिए है क्योंकि हम अपने साहित्य की ओर देख नहीं रहे हैं। विदेशों में बनी फिल्मों को देखकर हम कहानियाँ गढ़ना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि जब मैं कुछ नया नहीं सोच पाता हूँ तो मैं मीर और ग़ालिब की शायरियों की किताबें पढ़ना शुरू कर देता हूँ और उनसे मुझे हमेशा कुछ नया विचार मिलता है। सोशल मीडिया पर कटाक्ष करते हुए उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया आम व्यक्ति का क्रिएटिव टाइम ले रहा है और व्यक्ति को पुस्तकों से दूर कर रहा है। सामाजिक गतिविधियों के बीच रहकर शोध करते हुए आप अच्छे विषय और अच्छी कहानियाँ निकाल सकते हैं।

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छायांकन और सम्पादन सत्र में बोलते हुए श्री सुरेश दीक्षित ने कहा कि सिनेमा समय को चित्रों में उतारने की कला है। डिजिटल टेक्नालाजी ने सिनेमेटोग्राफी के सारे आयामों को बदल दिया है इसलिए हमें डिजिटल टेक्नालाजी की बारिकियों को सीखने की आवश्यकता है। फिल्मकार श्री रवि विलियम्स से कहा कि सिनेमा कहानी कहने का माध्यम है। भारतीय सिनेमा की कहानी हमेशा रामायण और महाभारत के आसपास रही है जिसमें अच्छाई की जीत और बुराई के अंत को विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया जाता रहा है। संगीत एवं कला निर्देशन विषयक सत्र में बोलते हुए संगीतकार मौरिस लाजरस ने कहा कि संगीत एक ऐसा पक्ष है जो फिल्मों का समग्र प्रभाव पैदा करता है। संगीत के बिना फिल्मों की कल्पना नहीं की जा सकती। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत की पहचान आज फिल्म संगीत के रूप में होती है। फिल्म संगीत का इतना बड़ा महत्व दुनिया के किसी और देश में नहीं है। कला निर्देशन के विभिन्न पक्षों के सम्बन्ध में श्री अनूप जोशी ने अपने विचार प्रतिभागियों के समक्ष रखे।

इस कार्यशाला में विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों के अतिरिक्त जागरण लेक सिटी विश्वविद्यालय, एस.वी. पालिटेक्निक, पीपुल्स इंस्टीट्यूट समेत अन्य संस्थाओं के प्रतिभागियों ने प्रतिभागिता की। कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र में चित्र भारती की ओर से श्री महेश तिवारी ने इंदौर में 26&28 फरवरी 2016 को  आयोजित हो रहे चित्र भारती फिल्म महोत्सव के सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी दी और प्रतिभागियों से फिल्म महोत्सव में शामिल होने का अनुरोध किया। कार्यशाला के संयोजक श्री दीपक शर्मा ने उद्घाटन सत्र में कार्यशाला की पृष्ठभूमि से प्रतिभागियों को अवगत कराते हुए अतिथियों का आभार प्रदर्शन किया। कार्यशाला में प्रबंधन विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अविनाश वाजपेयी एवं जनसंचार विभाग के विभागाध्यक्ष श्री संजय द्विवेदी भी उपस्थित थे। कार्यशाला के सत्रों के संचालक विज्ञापन एवं जनसंपर्क विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. पवित्र श्रीवास्तव ने किया।

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प्रेस विज्ञप्ति

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