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मुंबई प्रेस क्लब में तब प्रणय राय ने कहा था- ”तीन साल के अंदर भारतीय मीडिया की कोई साख नहीं रह जायेगी”

Arun Maheshwari : इस बात को सिर्फ़ साढ़े नौ महीने हुए हैं। मुंबई प्रेस क्लब द्वारा लाईफ़ टाईम पुरस्कार से नवाजे जाने के समय एनडीटीवी के प्रणय राय ने वहाँ मौजूद दर्शकों को यह कहते हुए हैरत में डाल दिया था कि एक हिंदी चैनल पर उन्होंने बालों को झटकते हुए एक महिला एंकर को यह कहते सुना था कि – ‘ब्रेक के बाद आप को एक रेप दिखायेंगे’।

<p>Arun Maheshwari : इस बात को सिर्फ़ साढ़े नौ महीने हुए हैं। मुंबई प्रेस क्लब द्वारा लाईफ़ टाईम पुरस्कार से नवाजे जाने के समय एनडीटीवी के प्रणय राय ने वहाँ मौजूद दर्शकों को यह कहते हुए हैरत में डाल दिया था कि एक हिंदी चैनल पर उन्होंने बालों को झटकते हुए एक महिला एंकर को यह कहते सुना था कि - 'ब्रेक के बाद आप को एक रेप दिखायेंगे'।</p>

Arun Maheshwari : इस बात को सिर्फ़ साढ़े नौ महीने हुए हैं। मुंबई प्रेस क्लब द्वारा लाईफ़ टाईम पुरस्कार से नवाजे जाने के समय एनडीटीवी के प्रणय राय ने वहाँ मौजूद दर्शकों को यह कहते हुए हैरत में डाल दिया था कि एक हिंदी चैनल पर उन्होंने बालों को झटकते हुए एक महिला एंकर को यह कहते सुना था कि – ‘ब्रेक के बाद आप को एक रेप दिखायेंगे’।

उन्होंने भारतीय मीडिया में इस तरह की सनसनीख़ेज़ पत्रकारिता की जघन्य सुनामी की चर्चा करते हुए कहा था कि यदि गुणवत्ता में गिरावट का यही सिलसिला जारी रहा तो अब से तीन साल के अंदर भारतीय मीडिया की कोई साख नहीं रह जायेगी। वहाँ बैठे शिव सेना के नेता सुरेश प्रभु की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा था- ”इस बात का मायने क्या होता है, एक राजनीतिज्ञ के नाते आप जानते हैं”।

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तीन साल तो बहुत दूर की बात, मीडिया की साख अभी से गहरे संदेह के घेरे में आ चुकी है। कल प्राइम टाइम पर रविश कुमार इसी गहरी खाई के अंधकार को दिखा रहे थे। प्रणय राय ने जब चेतावनी दी थी, तभी सरला माहेश्वरी ने यह कविता लिखी थी। आज फिर हम उसे मित्रों के साथ साझा कर रहे हैं।

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मीडिया का आत्मालाप

-सरला माहेश्वरी-

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मैं
लोकतंत्र का चौथा खम्भा
खोखला और जर्जर होकर भी
अब तक खड़ा हूँ
जैसे कोई अचम्भा

जानता हूँ मैं
उखड़ रही है सांसे मेरी
पर मरने से पहले आख़िरी बार ही
कहना चाहता हूँ
कुछ बातें सच्ची

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मैं
जिसे होना था
सत्य और न्याय का प्रवक्ता
वंचित और उत्पीड़ित का वक़्ता
बन गया अपनी ही
मनमानियों का अधिवक्ता

मैं
हाथ में था जिसके अंकुश
वो ही बन गया निरंकुश
स्वेच्छाचारी मदमस्त हाथी की तरह
जिसे चाहा,जैसा चाहा
उठाया और गिराया
कभी नहीं मैं घबराया

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और यूँ
बदलते, बदलते
इतना बदल गया था मैं
कुछ भी नहीं बचा था मुझ में मेरे जैसा
सिवाय अपने नाम के
पूरी तरह लुट चुका था मैं
जिंदा भी था मैं
या जीने का भरम भर था ?

और
अब खोकर अपना सारा संसार
सारा राजपाट
अंधे धृतराष्ट्र की तरह
कोस रहा हूँ
हे ! विदुर
किया नहीं क्यों ख़बरदार !

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जानता हूँ
विदुर ने तो किया था बार -बार होशियार
पर सत्ता और अँहकार
बन जाते जिनके हथियार
कहाँ बचते हैं पास उनके
कोई पहरेदार

इसलिये
आख़िरी बार ही उठाना चाहता हूँ
विवेक की आवाज
खोकर
सत्य और न्याय की मणि
अपने ही बनाये छल और कपट के जंजाल में
गर नहीं जीना चाहते
अभिशप्त अश्वत्थामा बनकर
तो बेहतर है
अभिमन्यु की तरह
वीर योद्धा बन कर मरो

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क्या होगा
ऐसे जीकर
प्रणय राय के दिये तीन साल भी।

साहित्यकार अरुण माहेश्वरी के फेसबुक वॉल से.

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