शिलांग में राजस्थानी समाज द्वारा 1959 में बनाया गया राजस्थान विश्राम भवन।
जिंदगी यादों का कारवाँ है। हम भी अपने इस यादों के कारवे में आप सब को शामिल करने जा रहे है। देश के पूर्वी हिस्से जिसे नार्थ ईस्ट यानि पूर्वोत्तर के नाम से जानते हैं। भारत का यह इलाका देश के बाकी हिस्से से लगभग कटा हुआ है। हालाँकि हाल के वर्षों में लोगों की दिलचस्पी पूर्वोत्तर में बढ़ी है। काफी दिनों से पूर्वोत्तर यात्रा के बारे में सोच रहा था। इसी साल सितम्बर की एक दोपहर मंत्रालय में खबरों की तलाश के दौरान एशियन एज के विशेष संवाददाता मेरे मित्र विवेक भावसार ने बताया की हम कुछ पत्रकार मित्र पूर्वोत्तर यात्रा की योजना बना रहे हैं। पूछा क्या आप भी चलना चाहेंगे ? मैं तो पूर्वोत्तर देखने के लिए कब से लालायित था। इस लिए हा कहने में जरा भी देर नहीं की। धीरे धीरे पूर्वोत्तर जाने वाले पत्रकार साथियों की संख्या बढ़ते बढ़ते 18 तक पहुच गई। आख़िरकार पूर्वोत्तर यात्रा की तिथि भी तय हो गई। एयर टिकट सस्ते मिले इस लिए एक माह पहले ही टिकटों की बुकिंग कराई गई।
इस यात्रा की योजना बनाने ने व्हाट्सएप ने बड़ी मदद की। इसके लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप तैयार किया गया। इसी व्हाट्सएप ग्रुप पर सूचना मिली की 22 नवम्बर 2015 की सुबह 9 बजे की उड़ान से गुवाहाटी जाना है। यात्रा का वह दिन भी आ गया। सभी साथियो को कहा गया था कि सुबह 7 बजे सभी को सांताक्रुज हवाई अड्डे पहुचना है। मैं हवाई अड्डे के पास रहता हु। इस लिए समय से हवाई अड्डे पहुचने को लेकर निश्चिंत था। हमारी टीम के कुछ साथी जो लेट लतीफी के लिए कुख्यात रहे हैं, उनसे खास तौर पर कहा गया कि वे समय पर एअरपोर्ट पहुँच जाये। लेट लतीफी के लिए मशहूर हमारे कुछ साथियों ने अपनी यह विशेषता बरक़रार रखी और 7 बजे की बजाय सुबह 8 बजे तक एअरपोर्ट पर पहुँच गए।
किरण तारे ( न्यू इंडियन एक्सप्रेस), विवेक भावसार ( एशियन एज), सिद्धेश्वर (सकाल), सुरेन्द्र मिश्र ( अमर उजाला), राजकुमार सिंह ( नवभारत टाइम्स), विनोद यादव ( दैनिक भास्कर), विपुल वैद्य ( मुम्बई समाचार), अभिजीत मुले ( फ्री प्रेस जनरल), चंद्रकांत शिंदे ( दिव्य मराठी), गौरीशंकर घाले ( लोकमत), राजेश प्रभु ( तरुण भारत), स्वतंत्र प्रेस फोटोग्राफर दीपक साल्वी और वरिष्ठ प्रेस फोटोग्राफर मोहन बने और हमारे विशेष आग्रह पर इस यात्रा में हमारे सहयात्री बने महाराष्ट्र भाजपा के सह मीडिया प्रभारी ओम प्रकाश चौहान उर्फ़ ओपी, एअरपोर्ट पहुच चुके थे। बने काका इंडियन एक्सप्रेस के वही मशहूर फोटोग्राफर हैं, जिन्होंने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का गुम्बद तोड़ने की ऐतिहासिक तस्वीर अपने कैमरे में कैद की थी। उनकी यह तस्वीर तब से आजतक हजारो पत्र पत्रिकाओं में छप चुकी है। उनको जाँच आयोग के सामने गवाही के लिए भी बुलाया गया था।
एअरपोर्ट पर सुरक्षा जाँच का काम पूरा कर हम सब इंडिगो के उस विमान की तरफ बढे, जो हमें कोलकाता एअरपोर्ट की सैर कराते हुए गुवाहाटी पहुचाने वाला था। पुरे 11 दिनों का कार्यक्रम अभिजीत जी ने पहले ही तैयार कर हमारे व्हाट्सएप ग्रुप पर पोस्ट कर दिया था। सुबह 9 बजे हमारे विमान ने उड़ान भरी। कोलकाता होते हुए दोपहर 2 बजे हम गुवाहाटी एअरपोर्ट पर पहुच गए। विमान से उतरते ही एअरपोर्ट पर गैंडे की आदमकद प्रतिमा ने हमारा स्वागत किया। गैंडा आसाम का राज्य पशु है। इस लिए इस जंगली जानवर की तस्वीर यहाँ हर तरफ दिख जाती है। एअरपोर्ट से बाहर निकले तो रणजीत डेका हमारा इंतज़ार कर रहे थे। डेका यहाँ माय होम इंडिया के कोआर्डिनेटर हैं। माय होम इंडिया पूर्वोत्तर और शेष भारत के बीच सेतु का कार्य करने वाली एक संस्था है। इसके अध्यक्ष सुनील देवधर मुम्बई में रहते है और हम पत्रकारो के अच्छे मित्रो में से हैं।
डेका हमें 25 सीटो वाली उस टेम्पो ट्रेवलर के पास ले गए। अगले 12 दिनों तक यही वाहन हमारे साथ रहने वाला था। इस मिनी बस की छत पर हमने अपने भारी भरकम बैग लादे और चल पड़े अपनी अगली मंजिल शिलांग के लिए। शिलांग-आसाम के पडोसी राज्य मेघालय की राजधानी। कभी पूर्वोत्तर के सातो राज्य आसाम के हिस्से थे। बस एक राज्य था आसाम पर बाद में यहाँ सात राज्यो का गठन किया गया। जिसे अब सेवन सिस्टर के नाम से जाना जाता है। भूख भी लग गई थी। इस लिए शहर से बाहर निकल कर एक ढाबे पर भोजन के बाद गुवाहाटी से शिलांग की 100 किलोमीटर कि यात्रा शुरू हुई। गुवाहाटी एअरपोर्ट से थोडा आगे निकलने पर हमारी बाई तरफ एक भव्य स्मारक दिखाई दिया।
डेका ने बताया, यह महान गायक संगीतकार भूपेन हजारिका का स्मारक है। आसाम का बच्चा बच्चा इस नाम से परिचित है। भूपेन दा 5 नवम्बर 2011 को यह दुनिया छोड़ गए थे। उनकी शव यात्रा में जैसा मानवी महासागर उमड़ा, वह इस राज्य के इतिहास में दर्ज हो चुका है। बताते हैं कि आसाम में इसके पहले किसी नेता- अभिनेता के लिए इतने लोग नहीं जूटे। आठ सितंबर 1926 को असम के सादिया में जन्मे भूपेन दा ने बचपन में ही अपना पहला गीत लिखा और उसे गाया भी, तब उनकी उम्र महज दस साल थी। असमिया फिल्मों से उनका नाता बचपन में ही जु़ड गया था।
भूपेन दा को दक्षिण एशिया के श्रेष्ठतम जीवित सांस्कृतिक दूतों में से एक माना जाता था। उन्होंने कविता लेखन, पत्रकारिता, गायकी, फिल्म निर्माण आदि अनेक क्षेत्रों में काम किया है। भूपेन दा ने हिन्दी सिनेमा में कई फिल्मों में गीत गाए। फ़िल्म रूदाली का गाना ‘दिल हुम हुम करे’ आज भी लोग गुनगुनाते हैं। भूपेन दा ने न केवल असम व बंगाल के लोक संगीत को फिल्मों में इस्तेमाल किया बल्कि राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश सहित कई राज्यों की लोकधुनों को भी अपनाया। उनके दिल में असम के वनवासियों के लिए काम करने की सदैव उत्कट इच्छा रहती थी। भूपेन दा ने मुंबई के कोकिलाबेन अस्पताल में अंतिम सांस ली थी।
गुवाहाटी- शिलांग हाइवे पर हमारा वाहन आगे बढ़ा तो हमारे स्थानीय साथी डेका ने दिलचस्प बात बताई। उन्होंने बताया कि हमारी दाई तरफ सड़क के किनारे का इलाका मेघालय का हिस्सा है, जबकि जिस सड़क पर हमारी बस दौड़ रही थी, वह आसाम में है। यानि हम आसाम और मेघालय में एक साथ यात्रा कर रहे थे। तय कार्यक्रम के अनुसार शाम 5 बजे तक हमें शिलांग पहुचना था। पर समय तो मुट्ठी में रेत की भांति फिसलता रहता है। आख़िरकार रात 8 बजे हम अपनी मंजिल पर पहुँच गए। वहा डारमेट्री में हमारे रहने की व्यवस्था थी। सभी साथियो ने अपने अपने सामान के साथ बिस्तर पकड़ लिया।
पर कुछ साथी रात्रि विश्राम के लिए इससे अच्छी जगह कि व्यवस्था में जुट गए थे। इधर उधर फोन करने के बाद पास में स्थित राजस्थान भवन में रात्रि विश्राम कि व्यवस्था हो गई। अब हम राजस्थान भवन की तीन मंजिला ईमारत में पहुँच चुके थे। देश के दूर दराज के इस इलाके में भी राजस्थानी समाज की मजबूत उपस्थिति देख कर अच्छा लगा। व्यापार के क्षेत्र में इस समाज का कोई सानी नहीं साथ ही राजस्थानी समाज चाहे जहा रहे, समाजसेवा करना नहीं भूलता। यही हमारी मुलाकात कमल झुनझुनवाला से हुई। झुनझुनवाला मेघालय प्लानिंग बोर्ड के सदस्य रह चुके है। उनको राज्यमंत्री का दर्जा मिला हुआ था। उनका परिवार तीन पीढ़ियों से शिलांग में रह रहा है। मृदुभाषी कमल जी रात का खाना खिलाने हम सबको पास के एक होटल में ले गए।
पेट पूजा के बाद अब निद्रासन की बारी थी। रात को ही हमारे टीम लीडर किरण तारे जी ने बता दिया था की सुबह जल्द उठाना है। हमें चेरापूंजी के लिये निकलना था। प्राथमिक कक्षाओ में भूगोल की किताब में चेरापूँजी के बारे में पढ़ा था कि यहाँ दुनिया में सबसे अधिक बारिश होती है। स्कुल की किताबो में पढ़ा था कि चेरापूँजी में हर रोज दिन में एक बार बरसात जरूर होती है। चेरापूँजी को लेकर बचपन में जानी इन बातो की चर्चा साथी पत्रकारो से करते- करते कब नीद आ गई पता ही नहीं चला। (जारी)
लेखक विजय सिंह ‘कौशिक’ दैनिक भास्कर (मुंबई) के प्रमुख संवाददाता हैं.