सोशल मीडिया के अस्तित्व में आने के बाद इसका दुरूपयोग करने वाले भी पैदा हो गए हैं। बावजूद इसके सोशल मीडिया ने दुनिया का दायरा सीमित करने का काम किया है। हम कही भी जाये फेसबुक को बताना नहीं भूलते की कहां पहुचे हैं और क्या कर रहे हैं। आप सोच रहे होंगे पूर्वोत्तर यात्रा के बीच ये फेसबुकवा कहाँ से आ गया। यहां हम फेसबुक की चर्चा इस लिए कर रहे क्योंकि इसकी वजह से हमारी मुलाकात एक मिलनसार, ईमानदार और लोगों के जीवन में बदलाव लाने वाले एक आईएएस अफसर से हो सकी। गुवाहाटी पहुचते ही मैंने अपने इस यात्रा की जानकारी फ़ोटो सहित फेसबुक पर अपलोड कर दी थी।
शिलांग में मेघालय के विकास आयुक्त राममोहन मिश्रा जी से बातचीत करते मुम्बई से गए पत्रकार।
गुवाहाटी एअरपोर्ट से बस में सवार हो कर शिलांग के लिए निकले थे, तभी मोबाइल फ़ोन की घंटी बजी। देखा उत्तर प्रदेश मान्यताप्राप्त पत्रकार संघ के अध्यक्ष वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी जी का कॉल था। फेसबुक ने उन्हें बता दिया था कि मैं पत्रकार साथियो के साथ पूर्वोत्तर की यात्रा पर हुं। उन्होंने कहा, शिलांग जा रहे हो तो मेघालय के विकास आयुक्त राममोहन मिश्र जी से मिलना। उन्होंने मिश्रा जी का मोबाइल नम्बर भी मैसेज कर दिया। कुछ समय बाद बगल में बैठे मेरे साथी सुरेंद्र मिश्रा जी ने राममोहन जी को फोन लगाया, उनसे बात हुई तो पता चला अभी वे दिल्ली में हैं। 24 नवम्बर 2015 की सुबह शिलांग से जोवाई के लिए रवाना होना था। जोवाई मेघालय का एक कस्बाई शहर है। हम सब बस में सवार हो चुके थे। तभी सुरेंद्र मिश्रा जी ने एक बार फिर राममोहन जी से मोबाइल पर संपर्क किया। पता चला वे दिल्ली से शिलांग पहुँच चुके हैं। उन्होंने हमें मिलने के लिए शहर के एक होटल में बुलाया।
आधे घंटे में हम उस हेरिटेज होटल में पहुच चुके थे। राममोहन जी वहाँ हमारा इंतज़ार कर रहे थे। परिचय की औपचारिकता के बाद राममोहन मिश्र जी से बातचीत की शुरुआत हुई। मेघालय को लेकर उनकी उपलब्धियों की चर्चा शुरू हुई तो राममोहन जी ने कहा हमने कुछ खास नहीं किया है, बस लोगों को सपने दिखाये हैं कि आप भी अपनी गरीबी दूर कर सकते है। सरकारी नौकरी नहीं मिली तो क्या हुआ, खुद का रोजगार खड़ा करने से आप को कोई नहीं रोक सकता। अब तक एक लाख से अधिक लोगों को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर चुके मिश्रा जी व उनकी टीम प्रकृति से स्वरोजगार के सिद्धांत पर कार्य कर रही है।
मूलरूप से उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले के रहने वाले 1987 बैच के आईएएस अधिकारी मिश्र ने दो साल पहले मेघालय के ग्रामीण इलाको में जलकुण्ड योजना शुरू की थी। उनकी वजह से इस दौरान 46 हजार मछली पालन के लिए छोटे तालाब बनाये गए। इस कार्यक्रम के लिए मिश्र जी ने युवाओ की एक टीम तैयार की है। वहां उनकी टीम के कुछ युवा मौजूद भी थे। पता चला कि राज्य के बाहर नौकरी कर रहे मेघालय के युवा अपनी नौकरी छोड़ कर इस कार्यक्रम से जुड़े हैं। अपने काम के तरीको के बारे में मिश्र जी कहते हैं, इस योजना से जुड़ने वालो से हमने कहा की धैर्य का साथ नहीं छोड़ना। इस काम में सफलता मिलने में समय लग सकता है। पर निराश नहीं होना पड़ेगा।
एक जलकुण्ड बनाने के लिए सरकार की तरफ से 60 हजार की आर्थिक सहायता दी जाती है। मिश्रजी दिनभर शराब के नशे में धुत्त रहने वाले एक व्यक्ति की कहानी हमें सुनाते हैं, जलकुण्ड निर्माण के बाद इस व्यक्ति ने इसमें मछली और सूअर पालन कर अब तक 2 लाख रुपये तक कमाए हैं। वे बताते हैं, हम सिर्फ यह विश्वास दिलाने में सफल हुए कि आप चाहे तो अपनी गरीबी दूर कर सकते हैं। लोगो को प्रोत्साहित करने के लिए एक वीडियो फिल्म भी बनाई गई है। इस फिल्म को गांव गांव जाकर योजना से जुड़ने के इच्छुक लोगों को दिखाया जाता है। अब तक मधुमख्खी पालन के लिए इस छोटे से राज्य में 50 हजार यूनिट लग चुके हैं। मिश्र जी बताते है कि हमारी योजना मेघालय को हनी कैपिटल बनाने की है। बड़ी संख्या में निर्यातक हमारे पास आ रहे हैं। यहां के शहद की काफी मांग है। मेघालय में रोजगार के अवसर पैदा करने के लिए कुल 9 क्षेत्रो की पहचान की गई है। प्रकृति से ही स्वरोजगार के सिद्धान्त पर हम काम कर रहे है। ग्रीन वालेंटियर तैयार किये जा रहे हैं। अब तक 2 हजार लोगों ने इसके लिए अपना पंजीकरण कराया है। हम लोगो को समझा- सीखा रहे हैं कि प्रकृति ही स्वरोजगार का सबसे बड़ा साधन है। केंद्र सरकार कि नीति आयोग ने भी मेघालय सरकार की इन योजनाओं की तारीफ की है।
वही हमारी मुलाकात जेएनयू से पीएचडी की पढाई कर रही नफीस से होती है। मिश्र जी के नेतृत्व में चल रही सरकार की इस योजना से जुडी हैं। नफीसा बताती हैं, गांवो में जाकर अलग तरह का अनुभव हुआ। लोगो में आगे बढ़ने की ललक देख अच्छा लगा। सरकारी अधिकारी ईमानदारी से चाहे तो किस कदर तस्वीर बदल सकती है, इसका उदाहरण है शिलांग से 150 किलोमीटर दूर सिमसंग नदी पर नरेगा के तहत बनाया गया पुल। 1 करोड़ 10 लाख की लागत वाली इस परियोजना के लिए ग्रामीणों ने 80 लाख रुपये खुद खर्च किये। मिश्रा जी से बातचीत में 2 घंटे कब बीत गए पता ही नहीं चला। उनके आग्रह पर हमसब ने वही होटल में खाना खाया और निकल पड़े अपनी अगली मंजिल जोवाई के लिए। बातचीत के दौरान मिश्रा जी ने कहा कि मैंने कोई अनोखा काम नहीं किया है, सिर्फ लोगों को सपने दिखाए कि आप भी सफल हो सकते हो। हमने कहा सर सपने दिखाना कम महत्वपूर्ण नहीं है। बहुत बड़ा काम है। इसी साथ ही हमने फिर मिलने के वादे के साथ मिश्रा जी से विदा लिया।
जब नौ परिवारों के हवाले हो गए हम 18 लोग
राममोहन मिश्रा जी से मिलकर दोपहर 3 बजे हम शिलांग से से 60 किलोमीटर दूर जोवाई के लिए निकले। वहाँ पहुचते पहुचते रात हो चुकी थी। हमें प्रोफ़ेसर ओ.आर.शालाम के घर जाना था। प्रोफ़ेसर साहब के घर का पता पूछते आख़िरकार हम उनके घर पर पहुँच ही गए। प्रोफ़ेसर शालाम साहब मेघालय की प्रमुख जनजाति जयंतिया समुदाय के नेता हैं। उनके घर में कई और लोग हमारा इंतज़ार कर रहे थे। दरअसल ये लोग माय होम इंडिया से जुड़े लोग हैं। यह संस्था पूर्वोत्तर के लोगों को मुंबई सहित कई शहरों में स्थानीय परिवारो के साथ रहने के अवसर प्रदान करती है। इसी तरह देश के अन्य हिस्सों के लोग पूर्वोत्तर आ कर यहाँ के परिवारो के साथ रहते हैं। उद्देश्य यह है, कि पूर्वोत्तर भारत के लोग खुद को देश के दूसरे हिस्सों से तनहा न समझे। हम 18 पत्रकार भी आज की रात यहाँ नौ अलग अलग परिवारों के साथ रहने आये थे। हमें लेने के लिए कुछ परिवार आ चुके थे, कुछ के आने का इंतज़ार था। एक-एक परिवार के साथ दो दो लोगों को जाना था।
प्रोफ़ेसर शालाम अपने वार जेंतिया समुदाय को अल्पसंख्यक का दर्जा दिलाने के लिए सालों से लड़ाई लड़ रहे है। मेघालय में इस समुदाय की जनसँख्या करीब 7 फीसदी है, जबकि यहाँ ईसाई समुदाय के लोग 90 प्रतिशत के करीब हैं। इसके बावजूद बहुसंख्यक ईसाई आबादी को अल्पसंख्यक का दर्जा मिला हुआ है जबकी वास्तव में अल्पसंख्यक जेंतिया समुदाय अल्पसंख्यक दर्जा हासिल करने लिए लड़ाई लड़ रही। प्रोफ़ेसर शालाम को मीडिया से बड़ी उम्मीद है। उन्हें उम्मीद है कि पत्रकार चाहेंगे तो उनकी आवाज दिल्ली के हुक्मरानों तक जरूर पहुचेगी। बातचीत करते काफी समय बीत चुका था। जैसे जैसे रात गहरा रही थी, ठंढ भी बढ़ रही थी। इस लंबी बातचीत में हिंदी के शब्द नहीं सुनाई दिए थे। वहाँ हमें लेने जो परिवार आये थे, उन्हें भी हिंदी नहीं आती थी। मैं सोच रहा था जिस परिवार के साथ जाना होगा उनसे सिर्फ कामचलाऊ संवाद हो पायेगा, क्योंकि अंग्रेजी में अपन के हाथ थोड़े तंग हैं। तभी कमरे में ‘नमस्कार, कैसे हम है आप लोग’ का स्वर सुनाई दिया। ये थे 40 वर्षीय फिजियो पाले।
पाले को देखते ही मैंने तय कर लिया की मुझे इन्ही के साथ जाना है। मैंने अपने टीम लीडर किरण तारे जी से आग्रह किया कि मुझे पाले जी के साथ भेजिए। इसके बाद मैं और विनोद यादव पाले जी के साथ जाने के लिए उनकी कार में सवार हो गए। जोवाई से 8 किलोमीटर दूर था पाले जी का गांव एलोंग। रास्ते में बातचीत का दौर शुरू हुआ। पाले पीडब्लूडी में इंजिनियर हैं। सिविल इंजीनियर की डिग्री उन्होंने पुणे से हासिल की है। पाले बताते हैं, पुणे में पढाई के दौरान हिंदी सीखी। पाले ने बताया कि आसपास के गांवो में माय होम इंडिया के अध्यक्ष सुनील देवधर को लोग अच्छी तरह जानते हैं। यहाँ उनके काम की लोग तारीफ करते हैं। आधे घंटे में हम पाले जी के गांव पहुँच गए। अत्याधुनिक सुख सुविधाओं से संपन्न खूबसूरत घर बनाया है उन्होंने। अविवाहित पाले अपनी मौसी के साथ रहते हैं। हमने कपडे बदले। यहाँ ठंढ काफी थी। रात 10 बजे खाना खाने के बाद। हम दोनों के बीच फिर से बातचीत का दौर चला।
पाले ने पुणे में अपनी पढाई के दिन याद किये। मुंबई की लोकल ट्रेन में गलती से फर्स्ट क्लास के डिब्बे में चढ़ने और हिंदी न आने की वजह से टीसी को अपनी सफाई न दे पाने की पीड़ा का भी इजहार किया। पाले जी ने बताया कि उस दिन मुझे लगा कि हिंदी आना कितना जरुरी है। अपने दिनचर्या की चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि सोने से पहले टाइम्स नाव न्यूज़ चैनल के अलावा इंडिया टीवी और एनडीटीवी इंडिया जरूर देखते हैं। बातचीत का दौर रात 12 बजे तक चला। सुबह 8 बजे जोवाई में प्रोफ़ेसर शालाम के घर सबको मिलना था। इस लिए पाले जी को गुड नाईट बोल कर मैं विनोद जी के साथ सोने चला गया। सुबह हम स्नान आदि कर तैयार हुए ही थे की उस गांव के हेडमैन (अपने महाराष्ट्र में जिसे सरपंच और यूपी में प्रधान कहते हैं) अपनी कार लेकर हमें अपना गांव दिखाने आ चुके थे।
मैं अपने साथी विनोद यादव जी और अपने मेजवान पाले जी के साथ हेडमैन के साथ उनकी कार में सवार हो गए। हमारी मंजिल थी गांव के बाहर स्थित नेचर पार्क। पहाड़ी पर बनाये गए इस पार्क में गांव के लोगों को मार्निग वाक के लिए ट्रैक बनाये गए है। पहाड़ी पर स्थित इस नेचर पार्क से आसपास का नज़ारा बेहद खूबसूरत दिखता है। सामने ही इको टुरिज़म सेंटर बना है। यहाँ बनाये गए काटेज में रहने के लिए देश विदेश के पर्यटक आते हैं। मेघालय में स्थानीय स्वराज संस्थाओं के पास काफी अधिकार मिले हुए हैं। गांव में जो कुछ है वह ग्राम समाज का है। इस एको सेंटर से होने वाली आय ग्राम समाज को मिलती है। तब तक सुबह के 8 बज चुके थे। मेरे मोबाइल पर हमारे साथी पत्रकार विवेक भावसार का कॉल आया। उन्होंने जल्दी से जोवाई पहुचाने के लिए कहा। हम तय समय से लेट हो गए थे पर हमारे मेजवान हमें छोड़ने के लिए तैयार नहीं थे। आख़िरकार हम पाले जी के घर पर नास्ते के बाद उनसे बिदा लिया। इस वादे के साथ की हम फिर मिलेंगे। हमने एक दूसरे के मोबाइल नम्बर और ईमेल आईडी लिए। पाले जी को ड्यूटी पर जाना था इस लिए अपने कार चालक के साथ हमें रवाना किया। हम जोवाई जा रहे थे, तभी रास्ते में एक छोटे से बांध के पास हमे हमारे साथी पत्रकार मिल गए। हमारी अगली मंजिल-गुवाहाटी स्थित राजभवन।
लेखक विजय सिंह कौशिक दैनिक भास्कर (मुंबई) के प्रमुख़ संवाददाता हैं। इनसे ईमेल आईडी [email protected] पर संपर्क किया जा सकता है.
इसके पहले और बाद के पार्ट पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें>
पूर्वोत्तर यात्रा-1 : शिलांग में पश्चिम का राजस्थान
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पूर्वोत्तर यात्रा-2 : चौदह पेज का अखबार आठ रुपए में
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पूर्वोत्तर यात्रा-4 : मेघालय में लड़की शादी के बाद लड़के को अपने घर लाती है