‘भड़ास वाला पगला गया है…’ यह शब्द मेरे नहीं बल्कि एक न्यूज़ चैनल में काम करने वाले एक मेरे मित्र के हैं। मैंने जैसे ही उनको यह बताया कि भड़ास4 मीडिया वालों ने एक अखबार के घटिया पत्रकारिता की पीड़ित महिला के समर्थन में आकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक आयोजन किया है, यह शब्द उनके मुख से निकल पड़े। खैर, भड़ास वालों के अंदर हिम्मत तो है, इसमें कोई श़क नहीं है। एक अखबार की घटिया पत्रकारिता के कारण कैसे एक महिला के आत्मसम्मान को तार-तार कर दिया गया और जब उस महिला ने इस घटिया पत्रकारिता के खिलाफ शिकायत की तो उन्हें इंसाफ और माफी के जगह लगातार एक तरफ़ा रिपोर्टिंग का शिकार होना पड़ा। उस महिला के पक्ष में खड़े होकर भड़ास ने पत्रकारिता के रुतबे को गिरने से रोका भी और प्रेस क्लब में प्रेस के खिलाफ आयोजन कर एक नया उदाहरण भी पेश कर दिया।
मौजूदा दौर की पत्रकारिता का स्तर जितनी तेजी से गिर रहा है उसे लेकर वरिष्ठ पत्रकारों से ज्यादा नये युवा पत्रकारों को चिंतित होना चाहिए क्योंकि उनका पूरा भविष्य दांव पर लगा है। भड़ास वालों ने इस आयोजन में मुख्य अतिथि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायधीश और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष रह चुके मार्कंडेय काटजू को बनाया था। सबने पत्रकारिता पर अपनी राय रखी जिसके बाद काटजू जी अपनी बात रखने मंच पर आये। काटजू को सुनना बेहद सुखद पल था क्योकि वह जिस बेबाकी से अपनी राय रखते हैं, आपको शायद ही कोई इतना चर्चित शख्स मिले जो समाज, राजनीति, न्यायपालिका के बारे में अपनी मुखर राय रखता हो।
काटजू ने पत्रकारिता पर अपनी राय रखते हुए कहा कि कुछ पत्रकारों, मीडिया मालिकों और नेताओं के गठजोड़ ने पूरी पत्रकारिता को बदनाम कर दिया है। पत्रकारों को अपना घर भी चलाना है और अपनी साख भी बचानी है। ऐसे में उसकी मजबूरी हो जाती है कि वह अपने मालिक की जी हूजुरी करें। वहीं काटजू ने स्ट्रिंगर्स के हालत पर भी चिंता जताई। काटजू ने गिरते स्तर की पत्रकारिता के दुष्परिणामों से लेकर भारत में बदलाव की प्रक्रिया के तहत होने वाले भयानक संघर्ष तक की बात कही। उन्होनें गरीबों के जीवन स्तर को सुधारने पर जोर देते हुए कहा कि जब तक देश के गरीबों का जीवन स्तर नहीं बदलेगा तब तक किसी भी प्रकार की प्रगति बेमानी है।
उन्होंने एक टीवी चैनल पर कही गई अपनी बात को दोहरते हुए देश के ज्यादातर नेताओं को धूर्त कहा और इन्हें तत्काल फांसी पर लटकाने लायक बताया। काटजू अपने बातों के पक्ष में कई तर्क भी देते हुए दिखे। जब पत्रकारिता की बात खत्म हुई तो काटजू ने गांधी और सुभाष चंद्र बोस को ब्रिटिश व जापानी एजेंट कहने को लेकर अपने तर्क दिए। उन्होंने क्रांति आने की बात तो बार- बार कही लेकिन उसकी रूपरेखा नहीं बताया। हालांकि उन्होंने गोरिल्ला वार का जिक्र जरूर किया। न्यायपालिका को लेकर भी काटजू की राय कुछ अच्छी नहीं है। वो सुस्त न्याय व्यवस्था को लेकर बेहद दुखी और निराश नजर आये। जब मांस को लेकर बात शुरू हुई तो उन्होंने कई किस्से भी बताये और साथ ही जिन्ना तक को पोर्क खाना वाला कह दिया।
प्रश्नकाल के वक्त कई लोगों ने काटजू से सवाल पूछा। शुरू में कुछ लोगों ने उनसे ताकतवार लोगों के खिलाफ न्याय की लड़ाई लड़ने को लेकर जब राय मांगी तो उन्होंने कहा कि एक मामूली आदमी शेर से लड़ेगा तो शेर उसे चीर देगा। मुझे यह बात एक रूप में अच्छी लगी कि वो कड़वी घूटी लोगों को दे रहे हैं लेकिन एक पूर्व जज द्वारा कही गयी ये बात मुझे सिस्टम के प्रति बेहद ही उदासीन बनाने वाली लगी। वही दूसरे प्रश्न पर कुछ लोगों ने उनसे क्रांति कैसे आएगी इसको लेकर सवाल किया तो उनका जवाब था कि क्रांति तो आएगी लेकिन कब व कैसे, यह तय नहीं है। मुझे इस सवाल को सुनने के बाद ऐसा लगा कि हम लोगों के अंदर एक बुरी आदत यह भी है कि यदि हमें कोई अंधेरे में रोशनी दिखाता है तो हम सब कुछ उस रोशनी दिखाने वाले से उम्मीद करने लगते हैं और अपने लिए नये रास्ते बनाने के जगह उसके पीछे चलना चाहते हैं, जो बेहद खेदजनक है।
इन सब के बावजुद एक सिस्टम के अंदर काम करते रहने के बाद भी अपने क्षेत्र के काम की आलोचना करने वाले पत्रकारों ने इस आयोजन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया और ऐसे लोगों को एक धागे में बांधने के लिए भड़ास4 मीडिया के संस्थापक यशवंत सिंह जिसे आप मीडिया के सरदार खान के रूप में भी देख सकते हैं, उनकी प्रशंसा तो करनी ही चाहिए।
लेखक ऋषि राज युवा पत्रकार हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.
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