भोपाल : “आज अगर सहकारी संस्थाएँ बुरी हालत में हैं तो सिर्फ़ राजनैतिक हस्तक्षेप के कारण हैं। इसका एक बहुत उधारण गन्ना उत्पादकों की सहकारी संस्थाएँ हैं।,” नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री मेधा पाटकर ने भोपाल में कहा। मेधा, गांधी भवन न्यास में “सरकारी बैंकों का निजीकरण: किसका फ़ायदा किसका नुक़सान” नामक जनसभा में बोल रही थी। अपने उदबोधन में उन्होंने उदाहरणों के साथ बैंकों के ऋण के द्वारा हुए लोगों एवं प्रकृति को हुए नुक़सानों पर प्रकाश डालते हुए तंत्र को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया। “बैंकों के अंदर और बाहर इस बात पर संघर्ष होना चाहिए ऋण के कारण मानवाधिकारों का हनन व प्राकृतिक दोहन ना हो।,” उन्होंने कहा।
शिक्षाविद अनिल सदगोपाल ने बैंकिंग क्षेत्र के वर्तमान संकट को 1946 को वित्तीय पूँजी और बैंकिंग क्षेत्र के वर्तमान संकट से जोड़ते हुए उन्होंने कहा की वर्तमान सरकारों द्वारा मज़दूरों के अधिकारों का हनन करके, 20 साल की टैक्स छूट और कौड़ियों के भाव में ज़मीन देकर आमंत्रित करने की प्रक्रिया इसी बॉम्बे प्लान का हिस्सा है।
जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, जन पहल, एवं हम सब के द्वारा आयोजित इस जन सभा में मेधा पाटकर एवं अनिल सदगोपाल के अलावा सीपीआई-एम एवं किसान महासभा से जुड़े हुए बादल सरोज, एवं आल इंडिया बैंक एम्प्लॉईज़ असोसीएशन के वी के शर्मा ने भी सम्बोधित किया।
सभा में बोलते हुए बादल सरोज ने कहा की भारतीय रिज़र्व बैंक ने सुधारों को बरक़रार रखने और मुनाफ़े को बढ़ाने के लिए अपने उत्तरदायित्व में कटौती की है। अब वह प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्रों को उधारी (प्रायऑरिटी सेक्टर लेंडिंग) में भी कमी की है जिससे ऋण के वितरण में भारी असमानता आयी है। अपने तर्क को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा की इन सब के परिणाम स्वरूप बड़े बैंकों ने ग्रामीण क्षेत्रों में अपनी शाखाएँ बंद कर दी हैं जिससे इन क्षेत्रों के निवासियों को सूदख़ोरों से ऊँची दरों पर ऋण लेना पड़ा। सरोज ने इस बात पर ज़ोर दिया की किसानों की आत्मा हत्या के पीछे का एक बड़ा कारण यह भी है।
आल इंडिया बैंक एम्प्लॉईज़ असोसीएशन के वी के शर्मा ने 1969 के बैंकों के राष्ट्रियकरण के पीछे के कारणों की चर्चा करते हुए कहा कहा कि राष्ट्रीयकरण के पहले बैंक सिर्फ़ मुनाफ़ा के लिए काम करते थे मगर राष्ट्रीयकरण के बाद सरकारी बैंकों ने समाज के आर्थिक विकास में अमूल्य योगदान दिया है। बैंकिंग सेक्टर के समक्ष स्थित वर्तमान चुनौतियों को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा की राष्ट्रीय कम्पनी लॉ ट्रायब्यूनल के द्वारा दिवालिया घोषित की गयी कम्पनियों के पास ही 2.53 लाख करोड़ का क़र्ज़ है। उन्होंने जानबूझ कर ऋण ना चुकाने वालों पर कड़ी क़ानूनी कारवाही और बड़े क़र्ज़दारों का नाम सार्वजनिक करने की माँग की।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार व समाजसेवी राकेश दीवान और विषय प्रवेश जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से जुड़े मधुरेश कुमार ने किया।