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पृथ्वीराज कपूर ने हिंदी रंगमंच का निर्माण किया तो जगदीश चंद्र माथुर ने हिंदी को पहली बार अपने मिजाज के नाटक दिए

जगदीश चंद्र माथुर की जन्म शताब्दी पर समारोह…  दिल्ली। नाटक द्विआयामी विधा है। वह साहित्य और कला एक साथ है। यह एकांगी कला नहीं विशिष्ट कला है जो लिखे जाने पर साहित्य और फिर खेले जाने पर कला बनता है। जगदीश चंद्र माथुर के नाटक इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि वे श्रेष्ठ साहित्य होने के साथ रंगमंच की दृष्टि से भी खरे हैं। सुप्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा ने स्वतंत्रता के बाद हिंदी के पहले बड़े नाटककार जगदीश चंद्र माथुर की जन्म शताब्दी पर साहित्य अकादेमी के सहयोग से हिन्दू कालेज में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि माथुर अग्रगामी नाटककार थे।

जगदीश चंद्र माथुर की जन्म शताब्दी पर समारोह…  दिल्ली। नाटक द्विआयामी विधा है। वह साहित्य और कला एक साथ है। यह एकांगी कला नहीं विशिष्ट कला है जो लिखे जाने पर साहित्य और फिर खेले जाने पर कला बनता है। जगदीश चंद्र माथुर के नाटक इस अर्थ में विशिष्ट हैं कि वे श्रेष्ठ साहित्य होने के साथ रंगमंच की दृष्टि से भी खरे हैं। सुप्रसिद्ध नाटककार दया प्रकाश सिन्हा ने स्वतंत्रता के बाद हिंदी के पहले बड़े नाटककार जगदीश चंद्र माथुर की जन्म शताब्दी पर साहित्य अकादेमी के सहयोग से हिन्दू कालेज में आयोजित संगोष्ठी में कहा कि माथुर अग्रगामी नाटककार थे।

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स्वतंत्रता के बाद बन रहे परिदृश्य को याद करते हुए सिन्हा ने कहा कि जहाँ पृथ्वीराज कपूर हिंदी रंगमंच का निर्माण कर रहे थे वहीँ माथुर ने हिंदी को पहली बार अपने मिजाज के नाटक दिए।  इससे पहले हिन्दू कालेज की प्राचार्या डॉ अंजू श्रीवास्तव ने अतिथियों का स्वागत किया। अकादेमी के तरफ से सम्पादक अनुपम तिवारी ने अतिथियों का परिचय दिया। संगोष्ठी का बीज वक्तव्य दे रहे प्रसिद्ध नाटककार डॉ नरेंद्र मोहन ने कहा कि स्वतंत्र भारत के पहले बड़े नाटककार ही नहीं पहले रंगकर्मी भी थे जिन्होंने हिंदी नाटक के लिए समर्थ नाटक लिखे। उन्होंने माथुर के प्रसिद्ध नाटक ‘कोणार्क’ की भूमिका का उल्लेख करते हुए कहा कि रंगमंच की दृष्टि से उनका अवदान अविस्मरणीय है।

डॉ मोहन ने साहित्य अकादेमी को माथुर की जन्म शतवार्षिकी का प्रारम्भ करने पर बधाई देते हुए कहा कि ‘अभिरंग’ के साथ मिलकर यह आयोजन करना स्वागतयोग्य है क्योंकि बंद कमरों की अपेक्षा युवा पीढ़ी के साथ संवाद करने से साहित्य निश्चय ही आगे बढ़ेगा। संगोष्ठी में लेखक- नाटककार प्रताप सहगल ने पत्र वाचन में कहा कि ग्रीक और भारतीय नाट्य परम्पराओं के साथ जगदीश चंद्र माथुर ने भारत की लोक नाट्य परम्पराओं से प्रभाव ग्रहण कर अपने नाटक लिखे। उन्होंने माथुर के प्रसिद्ध नाटक ‘शारदीया’ का उल्लेख कर कहा कि वहां आए गीत और बिम्ब वस्तुत: लोक से आए हैं जिसके गहरी समझ माथुर ने अर्जित की थी। सहगल ने उनकी संस्मरणात्मक कृति ‘दस तस्वीरें’ का भी उल्लेख किया।

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आयोजन में माथुर के पुत्र ललित माथुर ने कहा कि जगदीश चंद्र माथुर ने हिन्दू कालेज के अध्यापक रहे रंग विद्वान दशरथ ओझा के साथ  मिलकर ‘प्राचीन भाषा नाटक’ नामक ग्रन्थ लिखा था जो इस विषय का मानक ग्रन्थ माना जाता है। आयोजन की अध्यक्षता कर रहे प्रसिद्ध लेखक और राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से सम्मानिक शरद दत्त ने माथुर के साथ अपने विभिन्न संस्मरण सुनाए। उन्होंने आकशवाणी के कुशल प्रशासक के रूप में माथुर के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि वे जितने बड़े लेखक थे उतने ही बड़े मनुष्य भी थे।

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संयोजन कर रहे अभिरंग के परामर्शदाता डॉ पल्लव ने सभी का आभार व्यक्त किया। आयोजन स्थल पर साहित्य अकादेमी द्वारा लगाईं गई पुस्तक प्रदर्शनी को पाठकों ने सराहा। आयोजन में हिन्दू कालेज के अध्यापक डॉ रामेश्वर राय, डॉ अभय रंजन, डॉ हरींद्र कुमार, डॉ रचना सिंह, सी एस डी एस से डॉ रविकांत, रामलाल आनंद कालेज के अटल तिवारी, रामजस कालेज से नीलम सिंह सहित अनेक शोध छात्र, विद्यार्थी तथा पाठक उपस्थित थे। 

पियूष पुष्पम
संयोजक
अभिरंग
हिन्दू कालेज

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