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आगरा पहुंचे यशवंत ने गाया- ना सोना साथ जाएगा ना चांदी जाएगी… (देखें-सुनें वीडियो)

Yashwant Singh : आगरा गया था. जमाने बाद. ताज लिट्रेचर क्लब की संस्थापिका Bhawna के न्योते पर. भावना जी आई-नेक्स्ट, कानपुर की लांचिंग के जमाने में ब्रांड और सरकुलेशन के हेड रहे मित्र Vardan की पत्नी हैं. वो घरेलू महिला होते हुए भी घरेलू महिलाओं से अलग हैं. बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. साहित्य से लेकर अध्यात्म तक और संपादकीय से लेकर टूरिज्म तक पर गहरा पकड़ रखती हैं. उनके पतिदेव और अपने मित्र वरदान जी इन दिनों वेडिंग प्लानिंग का काम देख रहे हैं. उनकी तीन कंपनियां हैं. जाहिर है, भावना इन सबमें उनका हाथ बंटाती हैं. इससे इतर ताज लिट्रेचर क्लब भावना के अपने दिमाग की उपज है.

Yashwant Singh : आगरा गया था. जमाने बाद. ताज लिट्रेचर क्लब की संस्थापिका Bhawna के न्योते पर. भावना जी आई-नेक्स्ट, कानपुर की लांचिंग के जमाने में ब्रांड और सरकुलेशन के हेड रहे मित्र Vardan की पत्नी हैं. वो घरेलू महिला होते हुए भी घरेलू महिलाओं से अलग हैं. बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं. साहित्य से लेकर अध्यात्म तक और संपादकीय से लेकर टूरिज्म तक पर गहरा पकड़ रखती हैं. उनके पतिदेव और अपने मित्र वरदान जी इन दिनों वेडिंग प्लानिंग का काम देख रहे हैं. उनकी तीन कंपनियां हैं. जाहिर है, भावना इन सबमें उनका हाथ बंटाती हैं. इससे इतर ताज लिट्रेचर क्लब भावना के अपने दिमाग की उपज है.

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वे लोग जो दिल से जीते हैं, कविताएं लिखते हैं, डायरियां लिखते हैं. सुबह या शाम के वक्त एक दफे कविताएं गुनगुनाते जीते हैं, उनके लिए कोई मिलने जुलने बैठने शेयरिंग का एक अड्डा मंच चौपाल होना चाहिए. इसी आइडिया को लेकर भावना ने ताज लिट्रेचर क्लब यानि टीएलसी बनाया. इस टीएलसी ने बीते शनिवार साल भर पूरा किए. फर्स्ट एनीवर्सरी पर मुझे आगरा बुलवाया गया.

कैसे-कैसे आगरा पहुंचा हूं, इस पर आगे लिखूंगा. रोडवेज बस परी चौक पर खराब हुई तो हम लोग कितने मुश्किल से रिफंड ले पाए और हम तीन सह यात्री मिलकर ओला बुक किए. खैर… आगरा पहुंच ही गए. अगले रोज ताज क्लब में कार्यक्रम शुरू हुआ. अचानक मंच से मुझे चीफ गेस्ट का तमगा देते हुए मंच की तरफ बढ़ने और वहां लगी कुर्सी पर बैठने के लिए आदेशित किया गया. मैं भौचक. मामला अपने परिजनों सरीखे साथियों से जुड़े कार्यक्रम का था, सो चुपचाप आदेश मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.

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भावना और वरदान, दोनों के आदेश को मानना ही पड़ा, हालांकि बार बार इनसे कह चुका था कि मुझे चीफ गेस्ट टाइप का तमगा न दें, चुपचाप आउंगा और बैठ जाऊंगा. लेकिन इन लोगों ने जैसा मेरा महिमामंडन किया, उससे मैं देर तक असहज रहा. जो आदमी खुद को सड़क छाप मानता हो और सड़क छाप जिंदगी जीना पसंद करता हो उसे अगर कहीं भी थोड़ा सा स्पेशल ट्रीटमेंट मिलने लगे तो वह असहज हो जाता है. लेकिन कार्यक्रम भावना का था और बैकडोर से वरदान भाई कार्यक्रम की व्यवस्थागत कमान संभाले हुए थे तो उनके हर आदेश को मानना मजबूरी थी.

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कार्यक्रम जोरदार हुआ. सबसे खास ये रहा कि टीएलसी में ढेर सारे डाक्टर सदस्य हैं और इनकी कविताएं खूब गहरी संवेदनाएं लिए थीं. ऐसे दौर में जब कोई डाक्टर जिंदा बच्चों को लिफाफा में पैक कर मरा घोषित करते हए घरवालों को दे देता हो, ऐसे डाक्टरों को देखना अदभुत लगा जो जीवन और सरोकार के छोटे-से मामूली किस्म के हृदयकेंद्रित बिंब सरोकार को पकड़ कर उसे अपनी रचना का हिस्सा बना देते हों….

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आगरा में ताज लिट्रेचर क्लब का कार्यक्रम शाम तक निपटाने के बाद रात्रिभोज के लिए भाई Anand Sharma जी के फार्म हाउस की ओर कूच कर गया. जानने वाले जानते हैं कि आनंद शर्मा और Ajit Singh की फेसबुक पर ऐसी युगल जोड़ी है जिनके लिखे की फालोइंग हजारों-लाखों में है. हां, उनसे ढेर सारे मुद्दों पर असहमत रहने वालों की संख्या भी अच्छी-खासी है, जिनमें से एक मैं भी हूं. लेकिन विचारधाराएं मनुष्यता से बड़ी नहीं होतीं. हर कोई अपने संस्कार, परिवेश, संघर्ष, अनुभव आदि से अपनी तर्क पद्धति गढ़ता है. इसीलिए मैं अपने रिश्तों में कभी विचारधारा को आड़े नहीं आने देता. लेफ्ट हो या राइट, मनुष्य शानदार है तो रिश्ता रहेगा ब्राइट. ठाकुर अजीत सिंह तो अपने गाजीपुर के ही हैं. एक बार उनके गांव जाकर उनके द्वारा पकाई जाने वाली स्पेशल डिश हांड़ी मटन का आनंद ले चुका हूं. साथ ही उनके द्वारा गरीब बच्चों के लिए संचालित उदयन स्कूल की कार्यपद्धति देख कर लिखा था, वीडियो भी अपलोड किए थे.

आनंद-अजीत की युगल जोड़ी के अजीत से मिलने के बरसों बाद पंडित आनंद शर्मा से मिल पाना अब हुआ. पता चला कि पंडित आनंद शर्मा जी न सिर्फ लिक्खाड़ हैं बल्कि तबीयत से मस्तमौला किस्म के आदमी हैं. जीवन और संघर्ष के बेहद जमीनी अनुभव इनके पास हैं. तभी तो आज ये सनराइज मसाले की कई कंपनियां के स्वामी हैं. लेकिन स्वभाव बिलकुल औघड़ों जैसा. एकदम आम आदमी की तरह रहते जीते बतियाते हैं. अपने सैकड़ों कर्मियों से रिश्ता मालिक-नौकर का नहीं बल्कि दिल से दिल वाला डेवलप कर रखा है. सिस्टम ऐसा बना रखा है जिससे उन पर कोई भी सरकारी-प्राइवेट आदमी किसी किस्म का आरोप न लगा सके. एकदम ट्रांसपैरेंट, माडर्न, प्रोफेशनल और नो टेंशन वाला सिस्टम.

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बात आनंद भाई द्वारा दिए गए रात्रिभोज की हो रही थी. मेनू में हांड़ी चिकन था. गाने में ढेर सारे गीत. आगाज़ अपन ने किया. ”ना सोना साथ जाएगा ना चांदी जाएगी” वाला पंडित छन्नूलाल मिश्रा का गाया अपन का फेवरिट गीत गुनगुनाने लगा. चार चांद लगा दिए उस नए नवेले हाई-फाई माइक ने, जिसमें स्पीकर भी अटैच था. भाई आनंद जी ने मेरे गाने के दौरान कब वीडियो बना लिया, मुझे पता ही नहीं चला. वीडियो में थोड़ा-सा कलाकारी किया हूं. देखिए, सुनिए और बताइए कि आप कब रात्रि भोज दे रहे हैं, अपन फ्री में गाने-खाने आ जावेंगे… 🙂 गाने के वीडियो का लिंक ये रहा :

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तस्वीर में सबसे दाएं आनंद जी हैं. मेरे बाएं Vardan भाई हैं. एक तस्वीर सुबह की उस राख के ठीक सामने की है जिस पर हांड़ी चिकन पका था. क्या लाजवाब पका था. जैजै

भड़ास के एडिटर यशवंत की एफबी वॉल से.

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