अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक आय कर निपटान आयोग ने आयकर विभाग को मिली विवादित डायरी को सबूत मानने से इनकार करते हुए कानूनी कार्रवाई करने और जुर्माना लगाने से इंकार कर दिया है। सहारा इंडिया ने आय कर निपटान आयोग में याचिका दायर कर इस डायरी को सबूत न मानने के लिए याचिका दायर की थी। यह अपने आपमे प्रश्न है की पहले इस याचिका को खारिज कर दिया था। और फिर से स्वीकार कर बहुत जल्द फैसला सुना दिया गया।
आयोग ने तर्क दिया है कि सहारा ने दलील दी कि कंपनी से कुछ असंतुष्ट कर्मचारियों ने जान-बूझकर इस तरह के फर्जी कागजात बना दिए। जब भी कोई सुनवाई मानी जाती है तो सुबूत का अहम रोल होता है। इस डायरी मामले में प्रधानमंत्री पर रिश्वत लेने के आरोप लगने पर सुप्रीम कोर्ट ने वकील प्रशांत भूषण को मजबूत सुबूत लाने को कहा है। इधर आयकर निपटान आयोग ने सहारा के मौखिक तर्क को मान लिया कि असंतुष्ट कर्मचारियों ने इस तरह के दस्तावेज बना दिए।
कितना हास्यास्पद है सहारा का यह तर्क और फैसला भी संदेह व्यक्त कर रहा है। होना यह चाहिए था कि इस डायरी पर जांच बैठानी चाहिए थी। यदि किसी कर्मचारी ने यह हरकत की है तो उसे सजा मिलनी चाहिए और यदि यह डायरी सहारा प्रबंधन ने तैयार की है तो सहारा के खिलाफ कार्रवाई हो। मामला इसलिए गंभीर है क्योंकि इस डायरी में 99 प्रभावशाली लोगों समेत गुजरात के मुख़्यमंत्री रहते प्रधानमंत्री पर पैसे लेने के आरोप लगे हैं। मामला इतने हल्के तर्क और इतनी जल्दी निपटना अपने आप में सवाल है।
मामला संदेह इसलिए जता रहा है क्योंकि केन्द्र सरकार समय समय पर अपने अधीन रहने वाले तंत्रों का इस्तेमाल करती रही है और सहारा और नेताओं के संबंधों के आधार पर बड़े से बड़े मामले निपटना आम बात रही है। एक और चिटफंड कंपनी मामले में टीएमसी सांसद सुदीप बंधोपाध्य गिरफ्तार कर लिया गया वहीँ दूसरी ओर सहारा जैसी बदनाम कंपनी का कुछ नहीं बिगड़ रहा है। तो यह माना जाए कि केन्द्र सरकार सहारा के बचाव में खड़ी हो गई है। यदि नहीं तो सहारा में बड़े स्तर पर कर्मचारियों का शोषण और उत्पीड़न हो रहा है। क्या केन्द्र सरकार को इसकी जानकारी नहीं है क्या?
सहारा प्रबंधन ख़राब हालत का हवाला देकर 10-16 महीने का बकाया वेतन दबाए बैठा है। बिना बकाया वेतन दिए कर्मचारियों का स्थानांतरण कर दे रहा है। वह भी कहीं दूर दराज। सहारा की मनमानी के खिलाफ यदि कुछ कर्मचारियों ने हिम्मत दिखाई तो इस संस्था ने आवाज उठाने वाले 22 कर्मचारियों को बर्खाश्त कर दिया। यह सब जानकारी पीएमओ तक पहुंचाई गई पर कुछ नहीं हुआ। तो क्या माना जाए ? छोटी-छोटी बातों पर बोलने वाले प्रधानमंत्री सहारा डायरी के बारे में कुछ नहीं बोल रहे हैं। यदि वह भ्र्ष्टाचार मिटाने की बात कर रहे हैं तो 100 प्रभावशाली लोगों पर रिश्वत के आरोप समेटे इस डायरी की उच्चस्तरीय जांच क्यों नहीं कराते ?
सभी जानते हैं कि 2013 और 2014 में बिड़ला और सहारा इंडिया के दफ्तरों पर आयकर विभाग ने छापा मारा था। इन छापों में आयकर विभाग ने विवादित डायरी समेत कई महत्वपूर्ण दस्तावेज बरामद किए थे। यह मामला वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने उठाकर सुप्रीम कोर्ट से इन फाइलों की जांच की मांग की है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी इस डायरी का उल्लेख करते हुए नरेन्द्र मोदी पर सहारा से पैसे लेने का आरोप लगाया है। यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी दायर हुआ है, जिसने आयकर विभाग की छापेमारी में बरामद की गई डायरियों को लेकर किसी भी तरह की जांच का आदेश अब तक नहीं दिया है।
डायरी मामले में प्रधानमंत्री इसलिए भी संदेह के घेरे में आ रहे हैं क्योंकि अभी हाल ही में भ्रष्टाचार के मामले में लिप्त पाए गए दिल्ली मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पूर्व प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार ने वॉलंटरी रिटायरमेंट मांगते हुए सीबीआई को कटघरे में खड़ा किया है। राजेंद्र कुमार ने एक खत लिखते हुए सीबीआई पर केजरीवाल के खिलाफ बयान देने का दबाव डालने का आरोप लगाते हुए लिखा है, ‘सीबीआई ने उन पर लगातार दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ बयान देने के लिए दबाव डाल रही थी। ऐसा करने पर उन्हें छोड़ने की बात कही गई थी।
राजेंद्र ने सीबीआइ पर आरोप लगाते हुए यह दावा भी किया है कि उनसे जबरन मेल का एक्सेस हासिल किया गया और धमकी भी दी गई। मामले में इसलिए भी दम लग रहा है क्योंकि अरविन्द केजरीवाल लगातार प्रधानमंत्री पर निशाना साध रहे हैं और सीबीआई को केंद्र सरकार अपना हथियार बनाती रही है। यदि केजरीवाल से निपटने के लिए सीबीआई का इस्तेमाल हो सकता है तो सहारा डायरी में प्रधानमंत्री का नाम आने पर आईटीएससी जा भी इस्तेमाल भी हो सकता है।
चरण सिंह राजपूत
Insaf
January 8, 2017 at 5:00 pm
Being a loyal to Sahara , IT IS HUMBLE REQUEST THAT SAHARA SHOULD CLEAR ALL THE BACKLOG TO HIS WORKERS. THEY HAVE TAKEN MONEY ON INTEREST WHILE SAHARA WAS NOT GIVING THE SALARY. SAHARA WORKERS HAVE SEEN THE WORST DAYS IN THE COMPANY WHEN THE WERE WORKING WITHOUT MONEY. ALMOST ONE YEAR DUES ARE LEFT. WHAT SOEVER COMPANY SHOULD GIVE THE BACKLOG AS SOON AS POSSIBLE.