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सीबी सिंह, विनोद रतूडी, रणविजय, राजेश सिंह मिलकर भी नहीं तोड़ पाए नोएडा के सहाराकर्मियों की एकता, अखबार बंद

आखिरकार सहाराकर्मियों का धैर्य टूट ही गया। नोएडा कैंपस के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया। कर्मचारियों ने कहा कि जब तक सैलरी नहीं तब तक कोई काम नहीं। कर्मचारियों को समझाने के लिए सीबी सिंह, विनोद रतूडी रणविजय सिंह जैसे दिग्गज लग गए। लेकिन कर्मचारियों ने साफ काम करने से मना कर दिया। फिर मीडिया हेड राजेश सिंह को बुलाया गया। शाम करीब साढ़े सात बजे राजेश सिंह कैंपस पहुंचे। उन्होंने दिलासा दिलाया कि सोमवार को सैलरी जरुर आएगी। आप हमारी बात समझिए, हम मजबूर हैं। कर्मचारियों ने कहा कि हम आपकी ताकत खूब जानते हैं। आप जो चाहे कर सकते हैं। अभी चाहे अभी सैलरी दे सकते हैं। इसके बाद कर्मचारियों ने उनकी बात को अनसुना करते हुए काम बंद दिया। दिलचस्प है कि पूरे आंदोलन में पूरा एडिटोरियल टीम, सर्कुलेशन और मशीन वाले सभी एकजुट है। पहले मैनेजमेंट उन्हें तोड़-फोड़ कर काम करवाता था।

आखिरकार सहाराकर्मियों का धैर्य टूट ही गया। नोएडा कैंपस के कर्मचारियों ने काम बंद कर दिया। कर्मचारियों ने कहा कि जब तक सैलरी नहीं तब तक कोई काम नहीं। कर्मचारियों को समझाने के लिए सीबी सिंह, विनोद रतूडी रणविजय सिंह जैसे दिग्गज लग गए। लेकिन कर्मचारियों ने साफ काम करने से मना कर दिया। फिर मीडिया हेड राजेश सिंह को बुलाया गया। शाम करीब साढ़े सात बजे राजेश सिंह कैंपस पहुंचे। उन्होंने दिलासा दिलाया कि सोमवार को सैलरी जरुर आएगी। आप हमारी बात समझिए, हम मजबूर हैं। कर्मचारियों ने कहा कि हम आपकी ताकत खूब जानते हैं। आप जो चाहे कर सकते हैं। अभी चाहे अभी सैलरी दे सकते हैं। इसके बाद कर्मचारियों ने उनकी बात को अनसुना करते हुए काम बंद दिया। दिलचस्प है कि पूरे आंदोलन में पूरा एडिटोरियल टीम, सर्कुलेशन और मशीन वाले सभी एकजुट है। पहले मैनेजमेंट उन्हें तोड़-फोड़ कर काम करवाता था।

 

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कर्मचारियों के इस आंदोलन का विकल्प सहारा के मैनेजमेंट के पास कुछ नहीं था। लिहाजा अखबार के दो-तीन संपादकों ने मिलकर कानपुर एडिशन की पूरी कापी दिल्ली का बनाया। लेकिन वो भी सहारा के प्रिंटिंग मशीन में नहीं छप सका। मैनेजमेंट उसे अमर उजाला के प्रिंटिंग प्रेस से जाकर छपवाया। यानि आज की राष्ट्रीय सहारा की जो आपको कापी मिलेगी उसमें अधिकतर कानपुर और उसके एडिशन से जुड़ी खबरें ही मिलेंगी। अखबार के इस आंदोलन का असर टीवी पर भी पड़ा। दस जुलाई की शाम से ही सारे चैनल टेप पर चल रहे हैं। आधे से ज्यादा कर्मचारियों ने काम ही नहीं किया। शाम होते होते सभी कर्मचारियों ने हाथ खड़े कर दिए।

आपको बता दें कि पिछले करीब डेढ़ साल से सहारा मीडिया का प्रबंधन मीडियाकर्मियों को सैलरी टाइम से नहीं दे रहा है। पिछले साल दीवाली के बाद से तो इंतहा ही हो गई। दो दो महीने पर दो किश्तों  में एक महीने की सैलरी मिलने लगी। कर्मचारी पत्रकारों के सामने भूखमरी की नौबत आ गई। लेकिन प्रबंधन ने ऊपर से और पलीता लगाने का काम किया। अप्रैल माह से आधी सैलरी देने लगे। इस डील को करवाने में मैनेजर टाइप के लोगों की भूमिका रही जिनकी सैलरी लाख रुपये के ऊपर है। यानि उनकी दाल रोटी में घी पड़ती रहे लेकिन जिनकी सैलरी 15 से 30 हजार रुपये के बीच है वो भला कैसे गुजारा करें। उसमें भी आधी सैलरी मिलने की कोई निश्चित तिथि नहीं होती थी।

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प्रबंधन ये भी लोगों के बीच भ्रम फैला रहा है कि कंपनी की हालत खराब है। मालिक जेल में हैं। कैसे काम होगा। लेकिन सवाल है कि जिन दो कंपनियों के मामले में मालिक जेल में है उन कंपनियों से सहारा के मीडियाकर्मियों का क्या लेना-देना। वे तो सहारा इंडिया मीडिया और सहारा इंडिया टीवी के कर्मचारी हैं। ऐसे में प्रबंधन ये कैसे कह सकता है कि उस कंपनी की हालत बिगड़ने से उन्हें सैलरी नहीं मिल रही है। जब इनकम टैक्स का छापा पड़ता है तो 137 करोड़ रुपये मिलते हैं और कर्मचारियों को देने के लिए पैसे नहीं है ये भला कैसे हजम होगा। ओ पी श्रीवास्तव की बेटी की शादी में 65 करोड़ खर्च हों और कर्मचारियों को पैसे नहीं मिले भला ये कर्मचारियों को कैसे हजम हो। लेकिन अब कर्मचारियों ने बगावत करने की ठान ली है। और वो किसी भी हद तक जा सकते हैं।

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0 Comments

  1. sahara kartviyayogi

    July 11, 2015 at 5:41 am

    karamchariyu ke saath dhokha karenge to yahi haal hoga.

  2. सहारा कर्मी

    July 11, 2015 at 7:41 am

    वैसे तो हड़ताल किसी समस्या का विक्लप नहीं होता है पर कर्मचारी भी करे तो क्या करे जिनके घर मै चूल्हा तक नहीं जल रहा हो वो आखिर मै क्या कर सकता है.. और सहारा मैनेजमेंट भी ये नहीं कह सकता है कि कर्मचारियों ने सहारा श्री का साथ नहीं दिया है.. इतने महीने बिना सैलरी कि गुजारा करना क्या ये कम है. और कर्मचारी करे भी तो क्या करे एक और मैनेजमेंट पैसे का रोना रो रही है और दूसरी और देहरादून जैसी यूनिट मै दो दो गाड़िया चल रही है ..बड़े बड़े अधिकारी अपने खर्चे तो कम करने को तो राजी नहीं है और छोटे छोटे कर्मचारियों को आधे महीने की सैलरी भी नहीं दे रहे हैं.

  3. Bharatmata

    July 11, 2015 at 8:20 am

    Salary sankat kewal media ke saath kyon hai. Parabanking wale toh aaj bhi samay par puri salary paa rahe hain. Manageent ka yeh dohra charitra kyon.

  4. raj

    July 11, 2015 at 4:12 pm

    सहारा के असली चोर नॉएडा ऑफिस मेंही हैं यसवंत जी जो ऐड और टीवी न्यूज़ और प्रिंट के आते हैं उसका पैसा भी ये लोग खा जाते हैं इसी लिए ये सैलरी नहीं देने देते कृपया इनका नाम मजीठिआ बोर्ड के लोगों तक पहुँचाये —-सब हेड और हर डेस्क में एक दलाल भैठा है आप ज़ी न्यूज़ ,अब्प न्यूज़ में इनका नाम भेजो ये चोर वैसे बहुत कमा चुके हैं

  5. Akash dixit

    July 13, 2015 at 8:43 am

    सहारा को बेसहरा करने में सबसे बड़ा हाथ समूह संपादक रणविजय सिंह नाम के जीव का है, न्यूज पेपर की साख इस व्यक्ति ने खराब कर दी है..जो काबिल लोग हैं उन्हे हमेशा साइडलाइन करके नाकारों लोगों को कमान देता रहा है, कुछ पत्रकार इस आशा में थे कि सैलरी आएगी लेकिन रणविजय सिंह व इनके जैसे नाकारा लोगों के रहते सहारा की हालात कभी नहीं सुधरने वाली..मुझे लगता है अगर सहारा के ग्रुप एडिटर को नौकरी से निकाल दिया जाए तो ये व्यकित अपना न्यूज पेपर खोलेगा क्योकिं इस सैलरी पैकेज पर तो इस व्यक्ति को जॉब नहीं मिलेगी…मोटी सैलरी पर सहारा में टॉप लेवल में लोग एेश करते रहे हैं, मैनेजमेंट अंधा हो चुका है इसलिए सबसे बड़े निकम्मों को नही निकाला है, महाचोर स्वतंत्र मिश्रा पहले ही जा चुका है..उपेन्द्र राय भी गए ये रणविजय सिंह और इसके तमाम चेले बैठें है…घर में नौकर आफिस की गाड़ी मंहगे खर्चे इन पर भी कंट्रोल होना चाहिए कर्मचारियों की सैलरी आसानी से मिल जाएगी।

    ..

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