“अरे सब सामान ले लिया क्या? बस में किसी का कुछ रह तो नहीं गया?
“जी सर, सब ले लिया।” स्कूल ट्रिप से वापिस आये सब बच्चे एक साथ चिल्लाये और बस से उतरकर घर की तरफ दौड़ गए।
“सर, फिर भी बस में देख लेना।”
हेडमास्टर जी का हुकुम होते ही सर वापिस बस में गए। बस में नजर घुमाते ही पता चला बहुत कुछ रह गया है पीछे। वेफर्स, चॉकलेट के रैपर्स और कोल्ड ड्रिंक पानी की खाली बोतले पड़ी थी। जब तक ये भरे थे, तब तक ये अपने थे। खाली होते ही ये अपने नहीं रहे। जितना हो सके, सर ने कैरी बैग में भर दिया और बस से उतरने लगे।
“कुछ रह तो नहीं गया?” हेडमास्टर के फिर से सवाल पूछने पर सर ने हँस के नहीं का इशारा किया।
पर अब सर का मन “कुछ रह तो नहीं गया” सवाल के इर्द गिर्द घूमने लगा। जिंदगी के हर मोड़पर अलग अलग रूप में यही सवाल परेशान करता है। इस सवाल की व्यापकता इतनी बड़ी होगी, ये सर को अभी पता चला …
बचपन गुजरते गुजरते कुछ खेल खेलना रह तो नहीं गया? जवानी में किसी को चाहा पर जताने की हिम्मत नहीं हुई… कुछ रह तो नहीं गया? जिंदगी के सफ़र में चलते चलते हर मुकाम पर यही सवाल परेशान करता रहा…. कुछ रह तो नहीं गया?
3 महीने के बच्चे को दाई के पास रखकर जॉब पर जानेवाली माँ को दाई ने पूछा… कुछ रह तो नहीं गया? पर्स, चाबी सब ले लिया ना? अब वो कैसे हाँ कहे? पैसे के पीछे भागते भागते… सब कुछ पाने की ख्वाईश में वो जिसके लिये सब कुछ कर रही है, वह ही रह गया है…..
शादी में दुल्हन को बिदा करते ही शादी का हॉल खाली करते हुए दुल्हन की बुआ ने पूछा…”भैया, कुछ रह तो नहीं गया ना? चेक करो ठीकसे ।.. बाप चेक करने गया तो दुल्हन के रूम में कुछ फूल सूखे पड़े थे। सब कुछ तो पीछे रह गया… 25 साल जो नाम लेकर जिसको आवाज देता था लाड से… वो नाम पीछे रह गया और उस नाम के आगे गर्व से जो नाम लगाता था वो नाम भी पीछे रह गया अब … “भैया, देखा? कुछ पीछे तो नहीं रह गया?” बुआ के इस सवाल पर आँखों में आये आंसू छुपाते बाप जुबाँ से तो नहीं बोला…. पर दिल में एक ही आवाज थी… सब कुछ तो यहीं रह गया…
बडी तमन्नाओ के साथ बेटे को पढ़ाई के लिए विदेश भेजा था और वह पढ़कर वही सैटल हो गया, पौत्र जन्म पर बमुश्किल 3 माह का वीजा मिला था और चलते वक्त बेटे ने प्रश्न किया सब कुछ चेक कर लिया कुछ रह तो नही गया? क्या जवाब देते कि अब छूटने को बचा ही क्या है….
60 वर्ष पूर्ण कर सेवानिवृत्ति की शाम पीए ने याद दिलाया- चेक कर लें सर, कुछ रह तो नहीं गया; थोडा रुका और सोचा- पूरी जिन्दगी तो यही आने-जाने मे बीत गई, अब और क्या रह गया होगा।
“कुछ रह तो नहीं गया?” शमशान से लौटते वक्त किसी ने पूछा। नहीं, कहते हुए वो आगे बढ़ा… पर नजर फेर ली एक बार पीछे देखने के लिए…. पिता की चिता की सुलगती आग देखकर मन भर आया। भागते हुए गया, पिता के चेहरे की झलक तलाशने की असफल कोशिश की और वापिस लौट आया। दोस्त ने पूछा… कुछ रह गया था क्या? भरी आँखों से बोला… नहीं कुछ भी नहीं रहा अब…और जो कुछ भी रह गया है वह सदा मेरे साथ रहेगा।
एक बार समय निकाल कर सोचें, शायद पुराना समय याद आ जाए, आंखें भर आएं और आज को जी भर जीने का मकसद मिल जाए।
(सोशल मीडिया से)