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दुख-सुख

जैनी आज उन्हीं पापों की गठरी ढो रहे जिनसे विरत रहने के लिए महावीर स्वामी ने कहा था

Mukesh Kumar : जैनियों ने महावीर स्वामी के साथ ज़बर्दस्त विश्वासघात किया है। जैसा कि इतिहास सिद्ध है, वे नास्तिक थे और शुरू में जैन धर्म भी नास्तिक ही था। अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, अचौर्य जैसे सिद्धांतों पर उनका ज़ोर था। चलिए मान लिया कि उनकी तरह दिगम्बर होकर कठिन साधना करना सबके लिए मुश्किल काम है, मगर जैन और भी तो बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन वे उसी तरह पाखंडी है गए जैसे दूसरे धर्मों के अनुयायी। वे आज उन्हीं पापों की गठरी ढो रहे हैं जिनसे विरत रहने के लिए महावीर ने कहा था।

<p>Mukesh Kumar : जैनियों ने महावीर स्वामी के साथ ज़बर्दस्त विश्वासघात किया है। जैसा कि इतिहास सिद्ध है, वे नास्तिक थे और शुरू में जैन धर्म भी नास्तिक ही था। अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, अचौर्य जैसे सिद्धांतों पर उनका ज़ोर था। चलिए मान लिया कि उनकी तरह दिगम्बर होकर कठिन साधना करना सबके लिए मुश्किल काम है, मगर जैन और भी तो बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन वे उसी तरह पाखंडी है गए जैसे दूसरे धर्मों के अनुयायी। वे आज उन्हीं पापों की गठरी ढो रहे हैं जिनसे विरत रहने के लिए महावीर ने कहा था।</p>

Mukesh Kumar : जैनियों ने महावीर स्वामी के साथ ज़बर्दस्त विश्वासघात किया है। जैसा कि इतिहास सिद्ध है, वे नास्तिक थे और शुरू में जैन धर्म भी नास्तिक ही था। अहिंसा, अस्तेय, अपरिग्रह, अचौर्य जैसे सिद्धांतों पर उनका ज़ोर था। चलिए मान लिया कि उनकी तरह दिगम्बर होकर कठिन साधना करना सबके लिए मुश्किल काम है, मगर जैन और भी तो बहुत कुछ कर सकते थे लेकिन वे उसी तरह पाखंडी है गए जैसे दूसरे धर्मों के अनुयायी। वे आज उन्हीं पापों की गठरी ढो रहे हैं जिनसे विरत रहने के लिए महावीर ने कहा था।

वे उनके तमाम सिद्धांतों और विचारों की तिलांजलि देकर परिग्रह, हिंसा, असत्य और चोरी जैसे धतकर्मों के दलदल में फँसे हुए हैं। यहाँ तक कि पूजा-पाठ और कर्मकांड भी बढ़ता जा रहा है। न वे आत्मकल्याण में लगे हैं न जन कल्याण में। केवल और केवल स्वार्थों से ग्रस्त हैं। उन्हें सोचना चाहिए कि क्या वे सचमुच में महावीर की जयंती मनाने के अधिकारी हैं? कहीं वे केवल जन्मना ही तो जैन नहीं हैं?

वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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