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साधु का आखिरी संदेश- ‘बिल्ली भूलकर भी मत पालना’

एक प्राचीन कथा है। एक संन्यासी जंगल में रहता है अकेला। भिक्षा मांगने जाता है। भिक्षा लेकर आता है तो घर में कभी थोड़ी देर को रोटी रख देता है; भोजन रख देता है। थोड़ी देर रोटी भोजन रुक जाता है, तो चूहे धीरे-धीरे घर में पैदा हो गये; आने लगे पड़ोस से, जंगल से, खेतों से। तो किसी मित्र ने सलाह दी—एक भक्त ने—कि ऐसा करो, एक बिल्ली पाल लो। बिल्ली चूहों को खा जायेगी।

एक प्राचीन कथा है। एक संन्यासी जंगल में रहता है अकेला। भिक्षा मांगने जाता है। भिक्षा लेकर आता है तो घर में कभी थोड़ी देर को रोटी रख देता है; भोजन रख देता है। थोड़ी देर रोटी भोजन रुक जाता है, तो चूहे धीरे-धीरे घर में पैदा हो गये; आने लगे पड़ोस से, जंगल से, खेतों से। तो किसी मित्र ने सलाह दी—एक भक्त ने—कि ऐसा करो, एक बिल्ली पाल लो। बिल्ली चूहों को खा जायेगी।

संन्यासी को तो जंचा। उसने अगर महावीर का सूत्र पढ़ा होता, तो बिलकुल नहीं जंचती यह बात। क्योंकि बिल्ली पालने से झंझट ही शुरू होने वाली थी। बिल्ली के पीछे पूरा संसार आ सकता है; क्योंकि पालने की वृत्ति, वह गृहस्थ का लक्षण है। लेकिन बिल्ली पालना उसको भी निर्दोष लगा—मामला कोई झंझट का नहीं है। कोई संसार तो है नहीं। बिल्ली से किसी का मोक्ष कभी अटका हो, ऐसा सुना भी नहीं। बिल्ली ने किसी संन्यासी को भ्रष्ट किया हो, इसका कोई इतिहास भी नहीं।

कोई कारण नहीं था। शास्त्रों में कोई उल्लेख नहीं कि बिल्ली मत पालना। शास्त्र भी कितना इंतजाम कर सकते हैं! संसार बड़ा है, शास्त्र बड़े छोटे हैं। तो सूत्र दिये जा सकते हैं, लेकिन डिटेल्स, विस्तार में तो कुछ नहीं कहा जा सकता।

संन्यासी ने बिल्ली पाल ली। बिल्ली तो पाल ली, लेकिन अड़चन शुरू हुई। क्योंकि बिल्ली के लिए अब दूध मांगकर लाना पड़ता। भक्त ने, किसी ने सलाह दी कि क्यों इतना परेशान होते हो, गाय हम भेंट किये देते हैं, तुम एक गाय रख लो।

संन्यासी ने कहा : गाय तो वैसे भी गऊ-माता है। इसमें तो कोई हर्ज है नहीं। गऊ-माता की पूंछ पकड़कर कोई मोक्ष भला पहुंचा हो, बाधा तो किसी को नहीं पड़ी। और वैतरनी पार करनी हो तो गऊ-माता की पूंछ ही पकड़नी पड़ती है। इसमें कुछ अड़चन नहीं है। बिल्ली तो शायद कुछ शैतान से संबंध भी रखती हो, गाय तो एकदम शुद्ध परमात्मा से जुड़ी है।

गाय भी रख ली। गाय रखते ही अड़चन शुरू हुई, क्योंकि घास-पात की जरूरत पड़ने लगी। अब रोज घास खरीद कर लाओ, या मांगकर लाओ किसी भक्त ने!

और भक्त सदा मौजूद हैं, जो सलाह देने को तैयार हैं। और बेचारे नेक सलाह देते हैं। उनकी तरफ से कुछ भूल नहीं है।

भक्त ने कहा : इतनी झंझट क्यों करते हो? थोड़ी-सी खेती-बाड़ी आस पास ही कर लो। तो गाय का भी काम चले, तुम्हारा भी काम चले, बिल्ली का भी काम चले।

अब काफी संसार बड़ा हो गया। बेचारे ने खेती-बाड़ी शुरू कर दी। मजबूरी थी, अब यह गाय मर न जाये। दूध की भी जरूरत थी। फिर उस गाय को चराने भी ले जाना पड़ता। फिर खेती-बाड़ी काटनी भी पड़ती। वक्त पर फसल भी बोनी पड़ती। फिर ये उसे थोड़ा ज्यादा मालूम पड़ने लगा। प्रार्थना-पूजा का समय ही न बचता, ध्यान का कोई उपाय न रहा।

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तो एक परम भक्त ने कहाः ऐसा करो कि तुम विवाह कर लो। एक पत्नी रहेगी, साथी-सहयोगी होगी। वह सब देखभाल कर लेगी, तुम अपना ध्यान करना। अब तुम्हें ध्यान का बिलकुल समय ही नहीं बचा।

साधु को भी बात तो समझ में आयी। क्योंकि इतना उपद्रव फैल गया कि उसको कौन संभाले।

अगर आपने घर बसा लिया तो घरवाली ज्यादा देर दूर नहीं रह सकती। वह आयेगी। उसके बिना घर बस भी नहीं सकता। अड़चन होगी।

उसने शादी भी कर ली। लेकिन शादी से किसी को ध्यान करने का समय मिला है! जो थोड़ा-बहुत मिलता था, गाय-बिल्ली से बचता था, वह भी खो गया।

फिर जब वह साधु मर रहा था तो उसके शिष्यों ने उससे पूछा कि तुम्हारा कोई आखिरी संदेश? तो उसने मरते वक्त कहा कि बिल्ली भूलकर मत पालना! बिल्ली संसार है!

महावीर कहते हैं : संयम के पथ पर बहुत सचेत होने की जरूरत है कि कौन-सी चीज बाधा बन जायेगी। आज चाहे दिखाई भी न पड़ती हो। क्योंकि चीजें जब शुरू होती हैं, बड़ी सूक्ष्‍म होती हैं। धीरे-धीरे उनका स्थूल रूप निर्मित होना शुरू होता है।

(महावीर वाणी, भाग-२, प्रवचन#४९, ओशो)

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