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गिरते प्रसार से दुखी जागरण प्रबंधन ने संवाद सूत्रों को मोर्चे पर उतारा!

दैनिक जागरण में संवाद सूत्रों की स्थिति वही समझिए जो पुलिस विभाग में होमगार्डों की होती है।

दैनिक जागरण के मुंहफट अधिकारी तो संवाद सूत्रों को ‘मल मूत्र’ कहने से भी गुरेज नहीं करते। पर मुश्किल दिनों में यही संवाद सूत्र ही प्रबन्धन को याद आए हैं।

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घटती प्रसार संख्या से दुखी दैनिक जागरण वाले अब संवादसूत्रों को फील्ड में उतारकर युद्ध फतह करना चाहते हैं।

इस बाबत सभी संवाद सूत्रों को एक पत्र भेजा गया है, जो इस प्रकार है-

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आवश्यक एवं महत्वपूर्ण

प्रिय साथियों,

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आप लोगों को पता है तीन महीने पूर्व अखबार का रेट बढ़ने के बाद ज़िलों के प्रसार में चिंताजनक गिरावट आई है और हम लगातार चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।

इसके पहले भी अखबारी कागज के मूल्य में वृद्धि के कारण अखबार के रेट बढ़ते रहे हैं और जब प्रसार संख्या में कमी आती थी तो 2-3 महीने में हम लोगों ने कमी को पूरा करते हुए संभावित से अधिक प्रसार संख्या हासिल की है। अखबार का आधार ही प्रसार है और अगर प्रसार बेहतर रहेगा तो हम लगातार हर क्षेत्र में बेहतर करते जाएंगे ।

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लखनऊ टीम अपने आप में शुरू से ही एक आदर्श टीम रही है जो लगातार हर क्षेत्र में अग्रणी रहकर अपने आपको साबित करती रही है। मित्रों, अब फिर समय आ गया है कि पुनः मजबूती को बढ़ाये, इस अभियान में आप सभी अपने सभी संवाद सूत्रों के माध्यम से उनके क्षेत्र में कम से कम 50 नए पाठक बनाने के लिए प्रेरित करेंगे और हमारे संवाद सूत्र/सहयोगी उसे अपने प्रसार क्षेत्र के अभिकर्ता से मिलकर उतनी प्रतियों के प्रसार को बढ़ाने के लिए पत्र लेंगे और उनको 50 लोगों की लिस्ट देंगे कि यहाँ पर अख़बार पहुंचाना है। इस काम में प्रसार के प्रतिनिधि जो भी जिले पर हैं उनको सम्मिलित करिए और इसे अभियान स्वरूप प्रारंभ कर दीजिए।

20 फरवरी तक हर संवाद सूत्र 50 नए पाठको के नाम ,पते और फ़ोन नंबर की लिस्ट लेकर अपने ज़िले के प्रसार प्रतिनिधि को दे दें।। हमें विश्वास है पुनः अपने प्रसार की बढ़ोतरी के लिए पूर्व की भांति आप अपने क्षेत्र में प्रसार बढ़त हासिल करेंगे और जागरण का परचम लहरायेंगे।

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0 Comments

  1. सत्येंद्र

    February 7, 2020 at 10:58 pm

    फ़र्ज़ी पेड और एकतरफा खबरे बंद करने के बारे में भी कुछ सोच लेते तो प्रसार अपने आप बढ़ जाता । सिर्फ अधिकारियो पुलिस वालों और सरकार जो बताती है वही छापोगे तो इससे भी बुरा हाल होगा ।याद रखो की पत्रकारिता की जरूरत उन्हें है जो गरीब पीड़ित और कमजोर है ।सक्षम लोग तो न्याय अपने लिए जैसे तैसे हासिल कर ही लेते है

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