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सियासत

बीजेपी को देश की गलियों तक पहुंचाना चाहता है संघ

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मोदी सरकार के प्रति नहीं बल्कि संघ परिवार के प्रति जवाबदेह होना है। इसी पाठ को पढ़ने के लिये अमित शाह शुक्रवार को नागपुर में सर-संघचालक मोहन भागवत के सामने बैठेगें। और नागपुर के महाल स्थित संघ के मुखिया के निवास पर अमितशाह को यही पाठ पढ़ाया जायेगा कि आरएसएस की राजनीतिक सक्रियता ने नरेन्द्र मोदी को पीएम के पद पर पहुंचा दिया। अब संघ की सक्रियता बीजेपी को सबसे मजबूत संगठन के तौर पर खड़ा करना चाहती है। अमित शाह के लिये संघ जिस नारे को लगाना चाहता है वह दिल्ली से गली तक का नारा है। जनसंघ के दौर में सरसंघचालक गुरु गोलवरकर ने गली से दिल्ली तक का नारा लगा था।

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मोदी सरकार के प्रति नहीं बल्कि संघ परिवार के प्रति जवाबदेह होना है। इसी पाठ को पढ़ने के लिये अमित शाह शुक्रवार को नागपुर में सर-संघचालक मोहन भागवत के सामने बैठेगें। और नागपुर के महाल स्थित संघ के मुखिया के निवास पर अमितशाह को यही पाठ पढ़ाया जायेगा कि आरएसएस की राजनीतिक सक्रियता ने नरेन्द्र मोदी को पीएम के पद पर पहुंचा दिया। अब संघ की सक्रियता बीजेपी को सबसे मजबूत संगठन के तौर पर खड़ा करना चाहती है। अमित शाह के लिये संघ जिस नारे को लगाना चाहता है वह दिल्ली से गली तक का नारा है। जनसंघ के दौर में सरसंघचालक गुरु गोलवरकर ने गली से दिल्ली तक का नारा लगा था।

संघ अब मान रहा है कि दिल्ली की सत्ता तक तो नरेन्द्र मोदी पहुंच गये लेकिन देश की गलियो में अभी बीजेपी नहीं पहुंची है। यानी एक तरफ मोदी का कद प्रांतीय से राष्ट्रीय होते हुये अब अंतर्ष्ट्रीय हो चुका है और मोदी सरकार कद्दावर हो रही है तो फिर पावरफुल सरकार के साथ बीजेपी को भी पावरफुल होना पड़ेगा। और इसके लिये आधार उन्हीं मुद्दों को बनाना पडेगा जिसे कांग्रेस के दौर में विवादास्पद तौर पर प्रचारिक किया गया। यानी कामन सिविल कोड, धारा 370 और हिन्दुत्व। कामन सिविल कोड और धारा 370 को लेकर संघ समाज में चर्चा चाहता है और इसके लिये बीजेपी संगठन को वैचारिक तौर पर मजबूत होना होगा। और यह मजबूती हिन्दुत्व को साप्रदायिकता के दायरे से बाहर निकाले बिना संभव नहीं है।

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असल में संघ का मानना है कि काग्रेस ने हिन्दुत्व शब्द को ही साप्रदायिकता से जोड़ा जबकि दुनिया भर में हिन्दुत्व की पहचान भारत से जुड़ी है। अमेरिका में भी संघ आरएसएस [राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ] नहीं
बल्कि एचएसएस [हिन्दु स्वयंसेवक संघ] के तौर पर जाना जाता है। और चूंकि बतौर भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी संघ के प्रचारक रह चुके हैं तो पहली बार सरकार के हर काम के जरीये हिन्दु इथोस की भावना ही दुनिया भर में जा रही है। जिसकी शुरुआत सार्क देशो यानी संघ के अंखड भारत के साथ हुई तो अब ब्रिक्स देश होते हुये सितंबर तक अमेरिका में भी यही संकेत जायेंगे कि मोदी हिन्दुत्व के प्रतिक है। असल में आरएसएस देश के भीतर अमित शाह के जरीये इसी लकीर को खिंचना चाहता है जिससे हिन्दुत्व शब्द सांप्रदायिकता के कटघरे में खड़ा ना किया जाये। इसके लिये संघ का तीन सूत्रीय पाठ है।

पहला, बीजेपी को मुस्लिम विरोधी दिखायी नहीं देना है। दूसरा, बीजेपी के सहयोगियो को साथ लेकर चलना है। और तीसरा, झगड़ा किसी से नहीं करना है चाहे वह ममता हो या मुलायम। दरअसल आरएसएस का मानना है कि पहली बार बीजेपी के पास एक ऐसा मौका आया है जहा बीजेपी अपने कैनवास को इतना फैला सकती है कि देश के हर तबके के भीतर एक राष्ट्रीय राष्ट्वादी पार्टी के तौर बीजेपी को पहचान मिल जाये। यानी आजादी से पहले जो पहचान कांग्रेस की थी वही पहचान मौजूदा दौर में बीजेपी को अपनी बनानी होगी। और इसके लिये महात्मा गांधी से लेकर सरदार पटेल की सोच को बीजेपी के साथ जोड़ना होगा। यानी कामन सिविल कोड और धारा 370 सरीखे मुद्दो को उठाया जरुर जायेगा लेकिन इसके जरीये समाज में सहमति बनाने का काम होगा। यानी विरोध होता है तो होने दें। सिर्फ सहमति पर ध्यान दें।

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क्योंकि कांग्रेस बिना सहमति अपनी राजनीतिक जरुरतो के मद्देनजर मुस्लिम तुष्टिकरण की दिशा में बढ़ी। इसकी काट के लिये बीजेपी को मुस्लिमो से जुड़े मुद्दों को बहस के दायरे में लाना होगा। लेकिन सबसे दिलचस्प है आरएसएस के आधुनिकीकरण में पारंपरिक आरएसएस को टटोलना। क्योकि एक तरफ संघ बीजेपी को विस्तार देने के लिये जिले स्तर पर प्रचारको की अगुवाई में स्वयंसेवको की टीम को उतारने जा रहा है। आरएसएस से जुड़े संगठन भारतीय मजदूर संघ, वनवासी कल्याण आश्रण और विघाभारती से जुडे लाखो स्वयंसेवक बीजेपी के लिये सामाजिक लामबंदी करेंगे। फिर दस दिन पहले ही आरएसएस से बीजेपी में आये राम माधव के जरीये बीजेपी संगठन को हाईटेक बनाने की दिशा में ले जाने की भी सोच रहा है लेकिन खुद को हेडगेवार की राष्ट्रवादी सोच के दायरे में रखकर बीजेपी को भी आजादी से पहले वाले कांग्रेस की तर्ज पर मान्यता दिलाने की दिशा में बढ़ रही है।

दरअसल संघ के भीतर बीजेपी को लेकर लगातार यही मंथन हो रहा है कि आजादी से पहले काग्रेस को जितनी मान्यता देश में थी उसी तरह आज की तारिख में बीजेपी को वैसी मान्यता क्यो नहीं मिल सकती है। और अगर मिल सकती है तो इसके लिये क्या क्या करना होगा। माना यही जा रहा है कि अमित शाह को संघ का सबसे महत्वपूर्ण पाठ काग्रेस को मुस्लिम लीग की तर्ज राजनीतिक दायरे में स्थापित करवा देने की चुनौती रखी जा रही है। क्योंकि संघ का मानना है कि अगर मुस्लिम लीग की तरह कांग्रेस को स्थापित कर दिया जाये तो बीजेपी का कैनवास राष्ट्रीय पार्टी के तौर पर व्यापक हो जायेगा।

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असर इसी का है कल सुबह नागपुर पहुंचते ही सबसे पहले अमित शाह बाबा साहेब आंबेडकर के धम्म परिवर्तन स्थल पर जायेंगे। उसके बाद ही रेशमबाग के हेडगेवार भवन जाकर हेडगेवार और गुरु गोलवरकर की प्रतिमा को नमन करेंगे। फिर दोपहर में करीब तीन घंटे तक सरसंघचालक मोहन भागवत से चिंतन-मनन के बाद रात तक वापस दिल्ली लौट आयेगें। उसी के बाद पहली बार बतौर बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह मीडिया के सामने कुछ बोलेगें। जो अध्यक्ष बनने के बाद से लगातार खामोश है।

जाने माने पत्रकार पु्ण्य प्रसून बाजपेयी के ब्लॉग से साभार।

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0 Comments

  1. ajaypatrakar

    July 22, 2014 at 3:44 pm

    aap ka article top class ka hai , iagree your argument

  2. ajaypatrakar

    July 22, 2014 at 3:50 pm

    good comments

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