Connect with us

Hi, what are you looking for?

प्रिंट

सन्मार्ग के कर्मियों ने वेतन लेने से किया इनकार, प्रबंधन ने दी तबादले की धमकी

रांची : कोलकाता के हिंदी दैनिक सन्मार्ग के रांची संस्करण के कर्मी दो माह से वेतन नहीं ले रहे हैं। वे वेतन बढ़ोत्तरी पीएफ, ईएसआई बैंक खाते में भुगतान और भत्तों की मांग को लेकर पिछले दो वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच वे चार बार मांगपत्र दे चुके हैं। दो बार वार्ता भी हो चुकी है। लेकिन उन्हें कोरा आश्वासन ही मिलता रहा है। सरकार के सख्त निर्देश के बाद भी उन्हें बाउचर पेमेंट दिया जाता रहा है। उसकी भी कोई तय समय सीमा नहीं है।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>रांची : कोलकाता के हिंदी दैनिक सन्मार्ग के रांची संस्करण के कर्मी दो माह से वेतन नहीं ले रहे हैं। वे वेतन बढ़ोत्तरी पीएफ, ईएसआई बैंक खाते में भुगतान और भत्तों की मांग को लेकर पिछले दो वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच वे चार बार मांगपत्र दे चुके हैं। दो बार वार्ता भी हो चुकी है। लेकिन उन्हें कोरा आश्वासन ही मिलता रहा है। सरकार के सख्त निर्देश के बाद भी उन्हें बाउचर पेमेंट दिया जाता रहा है। उसकी भी कोई तय समय सीमा नहीं है।</p>

रांची : कोलकाता के हिंदी दैनिक सन्मार्ग के रांची संस्करण के कर्मी दो माह से वेतन नहीं ले रहे हैं। वे वेतन बढ़ोत्तरी पीएफ, ईएसआई बैंक खाते में भुगतान और भत्तों की मांग को लेकर पिछले दो वर्षों से संघर्ष कर रहे हैं। इस बीच वे चार बार मांगपत्र दे चुके हैं। दो बार वार्ता भी हो चुकी है। लेकिन उन्हें कोरा आश्वासन ही मिलता रहा है। सरकार के सख्त निर्देश के बाद भी उन्हें बाउचर पेमेंट दिया जाता रहा है। उसकी भी कोई तय समय सीमा नहीं है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

अब जब वे आंदोलित हो रहे हैं, प्रबंधन उनका पटना तबादला कर देने की धमकी दे रहा है। दोनों संस्करणों की फ्रेंचाइजी प्रेम नामक एक व्यक्ति के पास है। सन्मार्ग के रांची संस्करण का प्रकाशन वर्ष 2009 से हो रहा है। इसके बाद प्रेम जी ने उर्दू दैनिक अवामी न्यूज और अंग्रेजी दैनिक मार्निंग इंडिया का भी प्रकाशन शुरू किया। आज तीनों अखबार और प्रेस को मिलाकर 100 से भी अधिक लोग कार्यरत हैं लेकिन सभी को बाउचर के जरिए नकद भुगतान मिलता है। वह भी अनियमित रूप से।

मजीठिया तो दूर, भविष्य निधि तक का लाभ नहीं मिलता। भविष्य निधि कार्यालय के अधिकारी आते हैं तो मैनेज हो जाते हैं। सुनील सिंह नामक संपादकीय विभाग के एक वरीय कर्मी ने श्रम न्यायालय में नियमों की अवहेलना को लेकर एक मामला दर्ज कर रखा है। इसकी सुनवाई चल रही है। नवंबर 2016 में नोटबंदी की घोषणा के बाद जब 1000 और 500 के नोट रद कर दिए गए तो उनके जमा करने की अंतिम तिथि तक यानी दिसंबर 2016 तक पुरानी करेंसी में कर्मियों को नकद भुगतान किया गया। प्रधानमंत्री जी के कैशलेस भुगतान प्रणाली अपनाने के आह्वान का इस संस्थान पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। अब कर्मी कलमबंद हड़ताल के साथ श्रम न्यायालय का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. Insaf

    July 14, 2017 at 3:57 am

    Sanmarg ke maare hue ek sampadak Rashtriya Sahara Patna pahunch gaye hain. Ek taraf sahara ko vetan dene ki killat hai aur dusri taraf bahar se sampadak la raha hai. Patna me naye sampadak ek khash rajnitik dal ke paksh me danadan story plant karwa rahe hain. sampadak jo kahega reporter ko manana hi padega.Rjd ko support mil gaya hai.

  2. Sanjay

    July 18, 2017 at 9:39 am

    सभी आरोप गलत है, भड़ास पर पोस्ट नवल सिंह के द्वारा किया गया लगता है जिसे संपादक ने गैर जिम्मेदाराना कार्य करने के लिए बार चेतावनी दी, नवल सिंह मुख्यमंत्री का प्रोग्राम छोड़ वैसे जगह जाते थे जहाँ गिफ्ट मिलता था, सन्मार्ग में काम करते हुए तीन तीन अख़बारों में समाचार भेजते थे, साथ ही ये कांग्रेस के एक बड़े नेता का समाचार बनाते और सभी अखबारों में भेजते हैं जिसके लिए उनसे मासिक वेतन भी लेते हैं,
    संपादक के बार बार चेतावनी के बाद नही सुधरे तो प्रबंधन ने पटना ट्रांसफर किया हैं जब सम्पादक ने कह दिया कि मैं इनसे काम नहीं ले सकता हूँ। ये प्रबंधन को ब्लैकमेल करने की कोशिश कर रहे हैं बार बार हड़ताल कराने लोगों को भड़काने की करते रहते हैं। P R Agency का समाचार छपवाते हैं, इनका काम सिर्फ दलाली करना है, सरकारी विभागों में लोगों का पैरवी करना हैं।
    नोट बंदी के दौरान कोई भी पुराने नोट नहीं ( इनवैलिड नोट ) से भुगतान नहीं किया है, अगर कोई लेने का दावा करता वो खुद ही जिम्मेदार है। छोटा संस्थान होने से भुगतान देर सवेर होता है। पीएफ इत्यादि भी देर सवेर जमा हो जाता है, इसके बजह से भारी ब्याज भरना पड़ता है। संस्थान चल रहा है यही बहुत है कभी भी बंद हो सकता है सिर्फ सन्मार्ग बंद किया जा सकता है

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement