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मजीठिया वेतन बोर्ड : सरकार को भी बनाओ पार्टी

भड़ास द्वारा मजीठिया वेतन बोर्ड मुहिम की खबर पढ़ते ही मुझे विश्वास नहीं हुए कि इतनी बड़ी मुहिम छिड़ेगी। जिस मामले को लेकर सरकार कुछ नहीं कर पाई, मोदी सरकार सबकुछ जानते हुए भी खामोश है, श्रम अधिकारी प्रेस का नाम सुनते ही कांपने लगते है, हजारों विरोध के बाद भी जाने-माने हिन्दी समाचार पत्र के मालिक टस से मस नहीं हो रहे है, ऐसे में इन्हें कोर्ट की राह दिखाना चुनौती भरा काम है। यदि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो पत्रकारों को न्याय मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

<p>भड़ास द्वारा मजीठिया वेतन बोर्ड मुहिम की खबर पढ़ते ही मुझे विश्वास नहीं हुए कि इतनी बड़ी मुहिम छिड़ेगी। जिस मामले को लेकर सरकार कुछ नहीं कर पाई, मोदी सरकार सबकुछ जानते हुए भी खामोश है, श्रम अधिकारी प्रेस का नाम सुनते ही कांपने लगते है, हजारों विरोध के बाद भी जाने-माने हिन्दी समाचार पत्र के मालिक टस से मस नहीं हो रहे है, ऐसे में इन्हें कोर्ट की राह दिखाना चुनौती भरा काम है। यदि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो पत्रकारों को न्याय मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।</p>

भड़ास द्वारा मजीठिया वेतन बोर्ड मुहिम की खबर पढ़ते ही मुझे विश्वास नहीं हुए कि इतनी बड़ी मुहिम छिड़ेगी। जिस मामले को लेकर सरकार कुछ नहीं कर पाई, मोदी सरकार सबकुछ जानते हुए भी खामोश है, श्रम अधिकारी प्रेस का नाम सुनते ही कांपने लगते है, हजारों विरोध के बाद भी जाने-माने हिन्दी समाचार पत्र के मालिक टस से मस नहीं हो रहे है, ऐसे में इन्हें कोर्ट की राह दिखाना चुनौती भरा काम है। यदि सबकुछ ठीक-ठाक रहा तो पत्रकारों को न्याय मिलने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा।

इन सबके बीच मैं यशवंत जी से यहीं कहना चाहूंगा कि सुप्रीम कोर्ट में भारत सरकार और संबंधित राज्य सरकार को भी पार्टी बनाए क्योंकि कोर्ट के आदेश का पालन कराने में सरकार विफल रही अभी तक आदेश का पालन ना करने वाले संस्थाओं के खिलाफ कोई ठोस कार्यवाही नहीं की ना ही किसी पत्र पर कार्यवाही की। सबसे खास बात यह है कि पेपर वालों की मुख्य कमजोरी है सरकारी विज्ञापन। मजीठिया वेतनमान ना देने वाले पत्र संस्थान का सरकारी विज्ञापन रोका जाए, इसकी मांग करनी चाहिए। 

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कुछ भ्रम
सुप्रीम कोर्ट में केस लगाने को पत्रकारों में कुछ भ्रम है।

सवाल – यदि कोर्ट में केस लगाए तो नौकरी गंवानी पड़ सकती है।
जवाब- जनाब सुप्रीम कोर्ट है कोई स्थानीय कोर्ट नहीं। केस के दौरान यदि किसी कर्मचारी पर कार्यवाही हुई तो इसे दमनात्मक कार्यवाही माना जाएगा। वैसे भी जर्नलिस्ट एक्ट की धारा 15 में यह साफ है कि वेतनमान के कारण संस्थान किसी को नौकरी से नहीं निकाल सकती। और यदि निकालती भी है तो कंपनसेशन एक्ट 1923 के तहत राहत मिल जाती है। जिसमें कोर्ट सामान्यतः केस अवधि तक नौकरी करते रहने का अंतरिम आदेश देती है या गुजारा भत्ता दिलाती है।

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सवाल- कानूनी बातें है यदि फिर भी निकाल दिया तो। कैरियर बर्बाद हो जाएगा।
जवाब- सामान्यतः ऐसा नहीं होता फिर भी यदि हम माने की सब भ्रष्ट है, तो मजीठिया के क्लेम में यदि आप एक साल भी नौकरी कर चुके है तो 10 साल वेतन के बराबर राशि मिलेगी। चूंकि यह अवमानना का मामला है इसलिए फैसला एक-दो माह में हो सकता है। और ज्यादा देर लगा तो 6 माह लगेगा। हाईकोर्ट जाने के बाद गुजरात के भास्कर कर्मियों का उदाहरण सामने है।

सवाल- यदि किंतु परंतु हटा दिया जाए तो क्या हो सकता है।
जवाब- कोर्ट के फैसले के बाद उक्त कर्मचारी की नौकरी पक्की हो जाएगी और वह रेगुलर कर्मचारी हो जाएगा। नियमानुसार सभी सुविधाएं और वरियता का लाभ मिलने लगेगा। 

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महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार

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0 Comments

  1. Kashinath Matale

    January 29, 2015 at 7:25 pm

    Dear Maheshwari Prasad Mishr,

    Congratulation, for this type suggestion.

    It time for to made a party to the Government. It is a moral responsibility of Government to give just to the people.

    Honorable Shri J R Majithia Chairman of the Majithia Wage Board for Journalists and Non-journalists for news paper and news agencies made the revised pay scale are not proper. Basic wanted to be more. Majority of the old employees are going beyond the New revised maximum pay/basic. Their existing emoluments (Basic+VDA + IR @30%) are more than the New revised maximum pay/basic.

    Government also did not change/alter/modified upward than the recommended by Justice Majithia. Employers are taking the benefit of this impairment (Losses/damage).

    Employers considering the misinterpretation of Supreme Court Judgement and paying the less DA average taking the Month Nove., 2010 to Oct., 2011 = 189) instead of 167 as recommended by Justice Majithia and accepted and notified by Govt. Of India on 11-11 2011. Due to this we getting DA less as Rs 2000. to 4000 as variation due to the variation of pay scale.

    Employers refusing to pay the annual increment as using the clause (i) No employee shall get more than the maximum of the revised pay scale. Due to this old employees are more disappointing.

    Thanks and regards.

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