Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

पत्रकारों की उम्र 55 साल होने पर सरकारें इन्हें सत्ता में एडजस्ट करें!

वर्तमान में पत्रकारिता की जो दशा है, उस हिसाब से सरकार को एक उम्र के बाद हर पत्रकार को शासन में एडजस्ट करना चाहिए। दरअसल, आज पत्रकारिता की राह में अनेक बाधाएं आ चुकी हैं। काम का बोझ, तनाव, समस्याएं, अपर्याप्त वेतन तो है ही इसके ऊपर हर वक्त सिर पर नौकरी जाने का खतरा मंडराता रहता है। मुख्य धारा का एक पत्रकार अपने जीवन में इतना परिश्रम और तनाव झेल जाता है कि 50-55 की उम्र के बाद वह किसी काम का नहीं रह जाता है। शायद यही कारण है कि इस उम्र के बाद आज अनेक पत्रकार अपनी लाइन बदलने का असफल प्रयास करते हैं।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script> <script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- bhadasi style responsive ad unit --> <ins class="adsbygoogle" style="display:block" data-ad-client="ca-pub-7095147807319647" data-ad-slot="8609198217" data-ad-format="auto"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script><p>वर्तमान में पत्रकारिता की जो दशा है, उस हिसाब से सरकार को एक उम्र के बाद हर पत्रकार को शासन में एडजस्ट करना चाहिए। दरअसल, आज पत्रकारिता की राह में अनेक बाधाएं आ चुकी हैं। काम का बोझ, तनाव, समस्याएं, अपर्याप्त वेतन तो है ही इसके ऊपर हर वक्त सिर पर नौकरी जाने का खतरा मंडराता रहता है। मुख्य धारा का एक पत्रकार अपने जीवन में इतना परिश्रम और तनाव झेल जाता है कि 50-55 की उम्र के बाद वह किसी काम का नहीं रह जाता है। शायद यही कारण है कि इस उम्र के बाद आज अनेक पत्रकार अपनी लाइन बदलने का असफल प्रयास करते हैं।</p>

वर्तमान में पत्रकारिता की जो दशा है, उस हिसाब से सरकार को एक उम्र के बाद हर पत्रकार को शासन में एडजस्ट करना चाहिए। दरअसल, आज पत्रकारिता की राह में अनेक बाधाएं आ चुकी हैं। काम का बोझ, तनाव, समस्याएं, अपर्याप्त वेतन तो है ही इसके ऊपर हर वक्त सिर पर नौकरी जाने का खतरा मंडराता रहता है। मुख्य धारा का एक पत्रकार अपने जीवन में इतना परिश्रम और तनाव झेल जाता है कि 50-55 की उम्र के बाद वह किसी काम का नहीं रह जाता है। शायद यही कारण है कि इस उम्र के बाद आज अनेक पत्रकार अपनी लाइन बदलने का असफल प्रयास करते हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने एक सराहनीय फैसला लेकर वरिष्ठ पत्रकार दर्शन सिंह रावत को मीडिया को-आर्डिनेटर बनाया है। इस फैसले का विरोध नहीं हुआ। इसका अर्थ है कि श्री रावत इस पद के लिए बिल्कुल योग्य हैं और उनकी छवि साफ-सुथरी रही है। श्री रावत सीधे-सरल हैं। वे न राजनीति जानते हैं और न ही इसमें रुचि रखते हैं। हां, यह बात दीगर है कि कई बार ऐसा सीधा आदमी राजनीति का मोहरा बन जाता है। जितनी मेरी उम्र है, लगभग उतने वर्ष उन्हें पत्रकारिता में हो चुके होंगे। मैं जब अमर उजाला चंडीगढ़ में ट्रेनी और जूनियर सब एडीटर था, वे तब शिमला में अमर उजाला मंे सीनियर काॅरोस्पोंडेंट थे। अब तक उन्हें कहीं समूह संपादक बन जाना चाहिए था, लेकिन इसलिए नहीं बन पाए कि वे राजनीतिक लल्लो-चप्पोबाजी और चरणवंदना से बहुत दूर रहते हैं। मुझे खुशी है कि उन्हें सरकार ने उनके योग्य पद दिया, लेकिन सुखद आश्चर्य इस बात का भी है कि दर्शन सिंह रावत जैसा सीधा-सरल व्यक्ति इस पद तक कैसे पहुंचा! क्योंकि ऐसे पद प्रायः राजनीतिक सिद्धहस्त लोगों को ही मिलते हैं। अगर श्री रावत जैसे लोगों को यह मिले तो इसे सरकार की ईमानदार नीति का हिस्सा माना जाना चाहिए।

खैर, उत्तराखंड में ही पत्रकारों को सत्ता में एडजस्ट करने की परंपरा नहीं है। मैं यह हरियाणा में भी देख चुका हूं। दैनिक भास्कर में वरिष्ठ पत्रकार रहे बलवंत तक्षक को 14-15 साल पहले ओमप्रकाश चैटाला सरकार में एडजस्ट किया गया था। लबोलुआब यह कि अगर पत्रकार योग्य, ईमानदार है तो उसके अनुभव का लाभ सरकार द्वारा लिया जाना चाहिए। जो काम सरकार की मोटी तनख्वाह वाले सूचना विभाग के अधिकारी नहीं कर पाते हैं, वह काम एक वरिष्ठ पत्रकार आसानी से कर सकता है। वैसे भी उत्तराखंड का सूचना विभाग पत्रकारों और अखबारों में भेदभाव को लेकर अक्सर चर्चाओं में रहता है। पत्रकारों को मान्यता देने को लेकर यहां क्या खेल चलता है, यह पत्रकारों से छिपा नहीं है। छोटे अखबारों और अखबारों को विज्ञापन देने की तो बात ही छोड़ दीजिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मेरा सुझाव यह है कि पत्रकारों की उम्र 55 साल होने के बाद सरकार इन्हें योग्यता और क्षमतानुसार सत्ता में एडजस्ट जरूर करे। शर्त यह कि सरकार पत्रकार को एडजस्ट करते समय गुटीय भावना, पार्टी भावना से ग्रस्त न हो। आज कोई यह कहता है कि फलां पत्रकार फलां मुख्यमंत्री का चहेता रहा तो यह बात सरासर गलत है खासकर बड़े अखबारों के मामले में। क्योंकि बड़े अखबारों में सत्ता से संबंध पत्रकार का नहीं, सीधे प्रबंधन और मालिकों का होता है। आज कोई योग्य पत्रकार सत्ता का अंग बनता है तो पत्रकारों को ईर्ष्या के बजाय खुश होना चाहिए। जब आठवीं फेल कोई आदमी अपनी पार्टी की सत्ता आने पर राज्यमंत्री बन सकता है तो एक पत्रकार क्यों न शासन का अंग बने!  जीवनभर लोकतंत्र के चैथे स्तंभ की भूमिका निभाने के बाद अंततः उसे भी सुविधासंपन्न नागरिक का जीवन जीने का हक होना चाहिए। खासकर उसके परिवार को।

डॉ. वीरेंद्र बर्त्वाल
देहरादून
[email protected]

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. om raturi

    July 17, 2017 at 11:37 am

    right

    सरकार को एक उम्र के बाद हर पत्रकार को शासन में एडजस्ट करना चाहिए

Leave a Reply

Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement