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रजत शर्मा प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा बन गए हैं!

कुछ दिन पहले की बात है. सब्जी लेने गया था.

कोरोना पर बात छिड़ी तो फटी कमीज पहने सब्जी बेच रहे बीस-बाइस साल के युवक ने कहा- ‘सब्जी बेच रहा हूं, अगर खाली होता तो मुल्लों को गोली मार रहा होता. गंद मचा दी है इन जमातियों ने.’

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मैंने मुस्कुराते हुए कहा भैया दो किलो आलू तोलो.

और वो बात वहीं ख़त्म हो गई. मुझे उस सब्ज़ी बेचने वाले पर ज़रा भी ग़ुस्सा नहीं आया.

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बल्कि तरस आया. अच्छा खांसा खाते-कमाते आदमी के मन में हिंसक विचार चल रहे हैं. 


ख़ैर.. मन में प्रश्न भी उठा कि मेहनत करके किसी तरह परिवार का पेट पाल रहे व्यक्ति के मन में ये हिंसक विचार क्यों आ रहे हैं?

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इसका जवाब स्पष्ट है. भारतीय मीडिया ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ एक कैंपने सा चलाया हुआ है.

कोई गली छाप पत्रकार हो तो बात अलग है. लेकिन यहां तो शीर्ष पर बैठे संपादक खुले आम पत्रकारिता के मूल सिद्धांतों का मखौल उड़ा रहे हैं.

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उन्हें कोई डर नहीं है. कोई परवाह नहीं है. कोई फ़िक्र नहीं है.

अब रजत शर्मा को ही ले लीजिए, ये भारत के शीर्ष संपादकों में शामिल हैं. देश का बड़ा मीडिया समूह चलाते हैं.

और इनके पास तमाम रिसोर्सेज़ हैं, ये तथ्यों की जांच कर सकते हैं.

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लेकिन कल किए उनके इस ट्वीट से लगता है कि वो प्रोपेगेंडा मशीनरी का हिस्सा बन गए हैं.


मुंबई पुलिस ने अफवाह फैलाने के आरोप में एबीपी मांझा के पत्रकार राहुल कुलकर्णी को गिरफ्तार किया है। कल एबीपी पर उनकी रिपोर्ट छपी थी कि बांद्रा स्टेशन से आज ट्रेन चलेंगी। इसके बाद हज़ारों लोग स्टेशन के पास जमा हो गए थे। राहुल कुलकर्णी का कहना है कि उनकी रिपोर्ट का आधार दक्षिण मध्य रेलवे की तरफ से जारी एक पत्र है जिसमें ट्रेन चलने का ज़िक्र किया गया है। बहरहाल, अगर लेटर सच्चा है तो मुकद्दमा रेलवे के अधिकारियों और रेल मंत्री पर होना चाहिए। एक मामूली रिपोर्टर की गिरफ्तारी से फेक न्यूज़ नहीं रोकी जा सकती। सही मायने में गिरफ्तारी रजत शर्मा और रुबिका जैसे लोगों की होनी चाहिए जो न सिर्फ अफवाह, बल्कि धार्मिक नफरत भी फैला रहे हैं।

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पहले जो भीड़ मस्जिद की थी वो मज़दूर हुई और फिर वो मुल्लों के समझाने पर ही लौटी। कुल मिलाकर सारे मज़दूर मुल्ले थे। बहरहाल रजत शर्मा जी महान हैं। उनके मित्र अरुण जेटली भी महान थे मगर अब महान आत्मा हैं। ये भी सफल जीवन के अंतिम दशक में गोते लगा रहे हैं और किसी दिन महान आत्मा बन जाएंगे। लेकिन बताइए देश, दुनिया और समाज को ये क्या देकर जाएंगे? अन्धविश्वास, सांप सपेरे, स्वर्ग की सीढ़ी और धार्मिक नफरतें? ये किसी रोज़ चले जाएंगे मगर ज़हर ज़मीन पर रह जाएगा, बचे लोगों को डसने के लिए।

2 Comments

2 Comments

  1. अशोक कुमार शर्मा

    April 15, 2020 at 8:43 pm

    दिलनवाज़ पाशा भी अपनी पत्रकारिता के शुरुआती दौर में बहुत निष्पक्ष और असली सेक्युलर होते थे। उन्हें गलत आदमी गलत, गुनहगार आदमी गुनाहगार नज़र आता था। अब वे भी खास किस्म के सलाफ़ी सहाफी बन चुके हैं। बेगुनाह बाकी लोग भी नहीं। भारतीय पत्रकारिता अब मुस्लिम और हिन्दू खेमों में बंट चुकी है। मोदी का पक्ष लोगे तो गलत। वरना तुम सही। जबकि ना तो मोदी खुदा हैं और ना कोई अपराधी। उनका आकलन इतिहास को करने दीजिए। आप खबर दीजिये। अपनी राय मत दीजिये।

    लेकिन ग्राउंड रिएलिटी इसके प्रतिकूल है। तथ्य यह है कि हरेक सहाफ़ी का अपना एजेंडा है। उसे एकपक्षीय नज़रिये की लत लग चुकी है। इसी लत पर ज़ी टीवी चलता है और इसी का शिकार एनडीटीवी है।

    आज की पत्रकारिता एक कॉरपोरेट है। आज चंदे पर चलनेवाले केवल भड़ास को छोड़ कर हर जर्नलिस्टिक मिशन रेवेन्यू बेस्ड है। चाहे वह पर्सनल रेवेन्यू जुटाने का हो, राज्यसभा में जाने का हो।

    सोचिये अगर ऐसा नहीं तो कल तक तीन फिगर का मामूली मासिक वेतन पानेवाले आज कई हज़ार करोड़ रुपये के मालिक कैसे बन गए? बिहार के मामूली से कस्बे के संघर्षशील पत्रकार बीस-तीस साल में सैकड़ों करोड़ की हस्ती वाले कैसे बन गए? बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी।

    रजत शर्मा को गुनहगार कहने का हक इन लोगों को किसने दिया? जनता ने? नहीं, जनता तो इनकी तुलना में रजत के साथ कई हज़ार गुना अधिक होगी, वरना उनकी ये टीआरपी ना होती। वैसे रजत का सॉफ्ट कॉर्नर मोदी के प्रति है, यह एक चर्चा का मुद्दा है, क्योंकि उन्होंने एनडीटीवी की तरह दूसरे पक्ष की आवाज़ कभी नही दबाई।

    आज की पत्रकारिता को सिर्फ इसी शेर से समझा जा सकता है :

    ये दौरे सहाफ़त है, जाँ तलब सबको दौलत की
    ये शहरे सहाफ़त, जाँ सभी मुंसिफ़ रहजन हैं

  2. D S Malik

    April 15, 2020 at 9:45 pm

    यही हमारे देश का दुर्भाग्य है कि जो लोग कानून को ठेंगा दिखा कर देश और दुनियां पर आई मुसीबत को बढाने में शामिल हों , देश के डॉकटर , चिकित्सा कर्मचारी और पुलिस के साथ मारपीट कर और थूककर अपमान करते हैं उन महापुरूषो की ऐसी करतूतों को उजागर करना , उपरोक्त लेख के लेखक को प्रोपोगैंडा नजर आता है तो फिर आप भी तो रजत जी के विरूद्ध लिखकर क्या प्रोपोगैंडा नहीं फैला रहें हैं ? “एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं ” वाली कहावत के साथ एक वाक्य और जुड़ गया है हमारे साथ “अपनी नालायकि को छिपाने के लिये दूसरे पर लांछन लगाना”
    मर्यादा तो सब समझें और अपनाऐं । तब निष्पक्ष हो सकते हैं , यूं तो सबको अपनी बात रखने का हक है और रखनी भी चाहिये। मगर ! अच्छा सोचिये ! अच्छा कीजिए ! सब अच्छा ही होगा ! सोचिये !!

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