रांची : ई कोय जाए के टाइम हलु सतीश भइया…जइसे तू चल गेलीं वइसे कउन जा हऊ है जी…???
काश, इस उलाहना पर सतीश जी हमेशा की तरह पलटकर मुस्कुराते हुए आज भी जवाब देते! ऐसा कभी नहीं हुआ कि वह हमलोगों की किसी नोंकझोंक, झिड़की, उलाहना पर निरुत्तर रहे हों। जानता हूं कि हमेशा के लिए गहरी नींद में सो गये सतीश वर्मा जी की ओर से कोई जवाब नहीं आयेगा, लेकिन मन रत्ती भर यह मानने को तैयार नहीं।
सतीश वर्मा ‘हैं’ नही, ‘थे ‘- यह सच स्वीकार कर पाना बेहद मुश्किल है।
दैनिक भास्कर के पॉलिटिकल एडिटर सतीश जी उम्र में भले सात- आठ साल बड़े रहे हों, लेकिन दोस्ताना ऐसा कि दिल की हर बात हम लोग शेयर कर लेते। अगर उन्हें पता चल जाता कि हमलोगों के ग्रुप ने उन्हें छोड़कर कभी किसी होटल-ढाबे में पार्टी कर ली तो वे हम सब को कहीं का नहीं छोड़ते। पेनाल्टी लगाना उनका अधिकार था। काश, आज वह पेनाल्टी लेने के ही बहाने लौट आते।
गुजरे लोकसभा चुनाव के दौरान एक रोज दोपहर अमित के पास उनका फोन आया- केन्ने हीं रे भाई! … पाटी-साटी कुछ होतु ??
-आव ना जी…कहिया पीछे हटले हिऊ! कहां हीं? आ जो आकशवाणी के पास… शम्भुआ भी साथे हऊ। अमित ने यह जवाब दिया और थोड़ी देर बाद हमलोग एक साथ रेस्टोरेंट में थे। सतीश जी के साथ रवि गुरु भी आये। लंबे वक्त के बाद यह संयोग बना था। हिन्दुस्तान में जब एक साथ थे हम सब, तो यह सिलसिला महीने-दो महीने पर चलता ही रहता था। अब किसी बैठकी में सतीश जी नहीं होंगे, यह स्वीकार कर पाना मुश्किल है।
हिन्दुस्तान में लगभग आठ साल साथ काम करते हुए कभी ऐसा नहीं देखा कि उन्होंने कोई असाइनमेंट पूरा ना किया हो। पता नहीं, आज कौन सा असाइनमेंट पूरा करने की हड़बड़ी में वो निकल गये।
आखिरी बार कुछेक रोज पहले रिम्स में बिस्तर पर अशक्त पड़े सतीश जी से मिला, तब भी वह हिम्मत नहीं हारे थे। तब कहा था उन्होंने- ठीक होने दो जल्दी…बैठते हैं एक साथ।
कैंसर ने उनकी जान जरूर ले ली, लेकिन उन्होंने शायद आखिरी सांस तक हार नहीं मानी। सतीश जी का जिस्म कैंसर से जंग में भले हार गया, लेकिन उनकी जिजीविषा के स्वर, उनके ठहाके, उनके उलाहने, उनकी झिड़कियां, उनकी संतुलित रिपोर्टिंग, उनकी यारबाशी, उनकी अनगिन यादें जिंदा रहेंगी।
अंतिम प्रणाम सतीश भइया!
रांची में हिन्दुस्तान, अमर उजाला, रांची एक्सप्रेस, inext, खबरमंत्र अखबारों में विभिन्न पदों पर काम कर चुके और रांची प्रेस क्लब के पहले निर्वाचित महासचिव रहे वरिष्ठ पत्रकार शंभू नाथ चौधरी की एफबी वॉल से.
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