Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

हमारे मुस्कुरा कर “चमार” कहने से फट क्यों रही है तुम्हारी?

Ashok Das

जब तुम संविधान जलाते हुए ‘चमार’ मुर्दाबाद के नारे लगा रहे थे, मुझे गुस्सा बिल्कुल नहीं आया। मुझे लगा कि 5 हजार साल पीछे से दौड़ शुरू कर सिर्फ 70 साल में ही अपनी मेहनत के बूते खुद को सबल बनाने की हमारी कोशिश सही चल रही है। अभी तो सिर्फ कुछ लोग ही आगे निकले हैं और तुम्हें इतनी मिर्ची लग रही है? अब समझ में आता है कि तुमने हमें इतना “हीन” बनाने की साजिश क्यों रची। वो इसलिए क्योंकि तुम डरपोक हो।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तुमने हमें चमार कहा, हमने उसी पहचान के साथ खुद को मजबूत किया। हमने खुद को “ग्रेट चमार” कहना शुरू कर दिया। तब भी तुम्हें दिक्कत हो रही है। तुमने सोचा था कि “चमार-चमार” कह कर तुम हमें इतना हीन महसूस करवाओगे की हम भागते फिरेंगे, मुंह छुपाएंगे। तुम्हारा सोचना सही था। हमारी दो पीढ़ियों ने हीनता में जीवन बिता दिया। जब तुम मुस्कुरा कर उनसे जाति पूछते और बताते हुए लाज से जमीन में गड़ जाते तब तुम्हें खूब खुशी होती थी।

लेकिन दो पीढ़ी बाद ही जब तुम मुस्कुरा कर जाति पूछते हो और हम भी पलट कर बिना मुंह छुपाए मुस्कुरा कर यह कहने लगे हैं कि हम “चमार” हैं, तब भी तुमसे हजम नहीं हो रहा है। क्यों आखिर? हैं हम चमार। जैसे तुम पंडित हो, राजपूत हो, बनिया हो, यादव हो, जाट हो, गुर्जर हो… वैसे ही हम चमार हैं। हमारे मुस्कुरा कर “चमार” कहने से फट क्यों रही है तुम्हारी। तुम्हे हमारी मुस्कुराहट से डर लगता है। डरपोक हो तुम।

Advertisement. Scroll to continue reading.

तुम्हारे हर छल, हर कपट, हर बदतमीजी, हर गुंडई का मुकाबला करेंगे हम। हंस कर। हम यूं ही आगे बढ़ते रहेंगे। हर बाधा को चीर कर। तुम लगाते रहो “चमार मुर्दाबाद” के नारे। और बताते रहो कि हम सही चल रहे हैं। सही बढ़ रहे हैं और तुम डर रहे हो।।

अशोक दास

Advertisement. Scroll to continue reading.

संस्थापक और संपादक

‘दलित दस्तक’ पत्रिका

Advertisement. Scroll to continue reading.

[email protected]

इन्हें भी पढ़ें…

Advertisement. Scroll to continue reading.

दलित-मुस्लिम मीडियाकर्मियों के उत्पीड़न की एक सच्ची कहानी…सुनेंगे तो रोंगेट खड़े हो जाएंगे…

xxx

अश्लील वीडियो बना वायरल करने से आहत दलित लड़की ने दी जान, देखें वीडियो


Advertisement. Scroll to continue reading.
3 Comments

3 Comments

  1. dp singh

    August 13, 2018 at 11:47 am

    मुस्कुरा कर कह रहे हो इसका मतलब कि अपने आप ही खुद को तुच्छ समझ रहे हो.
    सामान्य रहकर गर्व के साथ अपनी जाति बता पाओ तब तो कोई बात है.
    ये हमारे देश का दुर्भाग्य है कि राजनितिक रोटियां सेकने के लिए हमारे नेताओं के कृत्यों के कारण आपके जैसे महानुभावों को हम झेल रहे हैं.
    नहीं तो शायद आरक्षण न होने पर आप जैसे लोग ग्रेजुएट भी न बन पाते, और हमारी छाती पर ऐसे मूंग न दल पाते.
    आरक्षण छोड़ने के लिए अपने समाज को प्रेरित कीजिये, फिर देखिये कैसे आपको नैचुरली सम्मान मिलता है.
    नहीं तो, जो है सो हइये है.

  2. सिंह

    August 13, 2018 at 6:27 pm

    आप यह तो मानेंगे की 70 साल मोका देने पर भी भूक मिटी नहीं , बिना कुछ किये अगर इतना मिलता है तो मेहनत कोन करे? लेकिन एक बात याद रखो घोड़े और गधे के रेस में अगर घोडा आगे रहता है तो तुम उसके पैरो में आरक्षण की जंज़ीर बाँध कर पीछे नहीं कर सकते क्योंकि आगे रहना घोड़े की फितरत है। आरक्षण आर्थिक पिछड़े लोगो को मिलना चाइये न की पीएचडी किये हुए आमिर चमार को।

  3. sandeep singh

    August 15, 2018 at 10:19 am

    मित्र, जो हमारे बाप दादाओं ने तुम्हारे समुदाय के साथ किया, उसके लिए हम उत्तरदायी नहीं हैं और जो तुम्हारे बाप दादाओं ने झेला उसके लिए तुम कसूरवार नहीं हो। वो एक युग था, एक सामाजिक व्यवस्था थी, जातियों के वर्चस्व का युग था वो, जिसमें जो ताकतवर था, वही सही था, उसका जुल्म भी इंसाफ था। अब वक्त बदल चुका है। समाज में तुम लोगों को आगे बढ़ने का मौका, बोलने का मौका और ये दलित दस्तक जैसी पत्रिका चलाने का साहस ये बदलते वक्त की देन है। तुम आगे बढ़ो, तरक्की करो, अमीर बनो, शिक्षित बनो, बराबरी के दर्जे पर आओ..किसने रोका है तुम्हें, लेकिन तुम जैसे लोग जैसे ही आगे बढ़ते हैं, थोड़ा पढ़ लिख जाते हैं, थोड़े पैसे आने शुरू हो जाते हैं..तो तुम लोगों का दिमाग खराब हो जाता है। तुम लोग बदला लेने की सोचने लगते हो, टकराव के मूड में आ जाते हो..ये ठीक वैसे ही है जैसे पहले सवर्ण तुम लोगों के साथ किया करते थे…यानी कि ये तुम ही तस्दीक कर रहे हो कि अगर तुम्हारे हाथों में भी ताकत आएगी तो तुम भी वही करोगे जो हजारों सालों पहले सवर्णों ने किया था। तो फिर तब के सवर्णों और अब के तुम जैसे दलितों में फर्क क्या है।
    इसलिए मित्र, सवर्णों को चिटकाने, टक्कर लेने और बदला निकालने का ख्याल दिमाग से निकालकर अपने समुदाय के बच्चों को अपने जैसा पढ़ा लिखा और सक्षम बनाने के बारे में सोचो, अभियान चलाओ। यकीन मानो, तुम तुम्हारे समुदाय की नई तकदीर लिख सकते हो।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement