पर्यावरण दिवस पर विशेष : हमने हर किस्म के दिवस बना रखे हैं. माता दिवस. पिता दिवस. पर्यावरण दिवस. ये बाजार के दिवस है. बाजार हिप्पोक्रेट होता है. बाजार अपने विस्तार के लिए ही दिन रात पहाड़ काट रहा, जंगल काट रहा, नदियां समुंदर पाट रहा.
कुल मिलाकर ये जो बाजार है और इस बाजार का जो बाप है, जिसे कारपोरेट कहा जाता है, उसने पृथ्वी की ऐसी तैसी कर रखी है.
धरती के मौसम का जो सिस्टम है, वह बिगड़ चुका है. जाने कब बारिश हो जाए. जाने कब बाढ़ आ जाए. जाने कब गर्मी शुरू हो जाए. जाने कब ठंढ लगने लगे. कुछ नहीं पता. धरती बीमार हैं. वाकई बीमार हैं. उनके शरीर के भीतर आदमी नामक जो वायरस है उसने धरती के आंतरिक सिस्टम का सब कुछ तहस नहस कर रखा है. लगता है धरती किसी डाक्टर सूर्य को दिखाने गईं थीं और डाक्टर सूर्य ने उन्हें कोई एंटीबायटिक दी है.
उस एंटीबायटिक के सेवन से धरती के भीतर का उपद्रवी वायरस यानि मनुष्य कुछ समय के लिए शांत हो गया है.
हम अगर अब भी शांत न हुए तो धरती को अपनी दवाओं का डोज बढ़ाना होगा. इसके सिंपटम भांति भांति तरीके से दिखने लगे हैं.
पकड़ सको तो पकड़ो, पहचान सको तो पहचानो. बूझ सको तो बूझो.
काश हर साल प्रकृति कुछ महीनों के लिए यूं ही आदमियों को स्टॉप बोल देतीं और जब आदम जात जहां तहां खड़े हो जाते, ठिठक जाते तब जल जंगल जमीन पहाड़ समुंदर टेंपरेचर को शुद्ध-सही होने का मौका मिल जाता!
पर्यावरण दिवस के मौके पर भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के एडिटर यशवंत सिंह अपने होम टाउन ग़ाज़ीपुर में प्रवास करते हुए बेहद स्वच्छ हो चुकीं मां गंगा की गोद में हंसते-तैरते वीडियोज के जरिए मस्ती-मस्ती में धरती के बीमार होने और फिर इलाज किए जाने की गाथा सुना रहे.
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