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सुख-दुख

सच्चाई जान जाएंगे तो आप भी कहेंगे- ”केजरी ने अब तक भूषण तिकड़ी और योगेंद्र यादव को पार्टी से बाहर निकाला क्यों नहीं!”

(लेखक यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के संस्थापक और संपादक हैं.)


उन दिनों मेरे पास अंदर से कोई खबर नहीं थी. सिर्फ मीडिया द्वारा परोसे दिखाए जा रहे तथ्यों-खबरों पर निर्भर था. उस निर्भरता के जरिए ये राय बना ली कि केजरीवाल तो चुनाव जीतने के बाद अहंकारी हो गए हैं और इन्हें योगेंद्र व प्रशांत को कतई पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी से नहीं निकालना चाहिए. जब इन दोनों को निकाल दिया गया तो मुझे भी बहुत धक्का लगा कि आखिर ये क्या हो रहा है, कहीं ‘आप’ नेता केजरीवाल तानाशाही की तरफ तो नहीं बढ़ रहे, कहीं केजरीवाल आलाकमान सिस्टम तो नहीं लागू कर रहे, कहीं केजरीवाल वन मैन पार्टी तो नहीं बना दे रहे ‘आप’ को…

(लेखक यशवंत सिंह भड़ास4मीडिया डॉट कॉम के संस्थापक और संपादक हैं.)


उन दिनों मेरे पास अंदर से कोई खबर नहीं थी. सिर्फ मीडिया द्वारा परोसे दिखाए जा रहे तथ्यों-खबरों पर निर्भर था. उस निर्भरता के जरिए ये राय बना ली कि केजरीवाल तो चुनाव जीतने के बाद अहंकारी हो गए हैं और इन्हें योगेंद्र व प्रशांत को कतई पोलिटिकल अफेयर्स कमेटी से नहीं निकालना चाहिए. जब इन दोनों को निकाल दिया गया तो मुझे भी बहुत धक्का लगा कि आखिर ये क्या हो रहा है, कहीं ‘आप’ नेता केजरीवाल तानाशाही की तरफ तो नहीं बढ़ रहे, कहीं केजरीवाल आलाकमान सिस्टम तो नहीं लागू कर रहे, कहीं केजरीवाल वन मैन पार्टी तो नहीं बना दे रहे ‘आप’ को…

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अपने तात्कालिक जज्बातों को फेसबुक पर दो पोस्टों के जरिए अभिव्यक्त भी किया (देखें इस पोस्ट के बिलकुल नीचे)… लेकिन पिछले कुछ दिनों में मैं पूरे मामले की गहराई तक गया, ‘आप’ नेताओं, उनके नजदीकी लोगों, शुभचिंतकों, कार्यकर्ताओं, संगठकों आदि से मिला तो पता चला कि केजरीवाल ने अब तक अदभुत धैर्य बनाए रखा. अगर उनकी जगह कोई दूसरा होता तो जाने कबका पार्टी को दो फाड़ करा चुका होता या फिर भूषण खानदान की तिकड़ी और योगेंद्र यादव को कबका बाहर का रास्ता दिखा चुका होता. लेकिन केजरीवाल ने धैर्य नहीं खोया और चुनाव तक चुप्पी साधे रखी, ताकि ‘आप’ पार्टी को लेकर जनता के आकांक्षाओं पर तुषारापात न हो. तो आप भी जानिए, वे सारे कारण जिससे पीड़ित होकर केजरीवाल ने किसी हालत में भूषण खानदान की तिकड़ी (बाप शांति भूषण, बेटा प्रशांत भूषण, बेटी शालिनी गुप्ता) और योगेंद्र यादव के साथ काम न करने का फैसला लिया है.

–‘आप’ पार्टी के गठन से लेकर अब तक बाप शांति भूषण ने दो करोड़ रुपये दिए. बेटा प्रशांत भूषण ने पार्टी का ढांचा और संविधान बनाया. बेटी शालिनी गुप्ता ने एनआरआई मोर्चे को संभाला. इस तिकड़ी के मन में शुरू से यह बात रही कि ये पार्टी उनके इशारे पर चलेगी और उनके अनुरूप चलेगी. केजरीवाल को पार्टी के बैठकों में ये लोग कदम कदम पर अपमानित करते थे. खासकर प्रशांत भूषण और शांति भूषण पार्टी बैठकों में केजरीवाल व अन्य को इस तरह डांटते डपटते थे कि जैसे वे दारोगा हों, बाकी सब चोर-उचक्के. दो बार तो केजरीवाल रो चुके हैं ऐसे अपमान और कड़वी झिकड़कियों के कारण. 

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–केजरीवाल के पक्ष में लहर देखकर भूषण तिकड़ी ने तय किया कि अगर जल्द ही इस बंदे को पार्टी संयोजक पद से न हटाया गया तो पूरी पार्टी केजरीवाल के नियंत्रण में हो सकती है. इस कारण भूषण तिकड़ी ने योगेंद्र यादव को अपने पाले में किया और उन्हें केजरीवाल के पैरलल प्रोजेक्ट कर नया संयोजक बनाने का अभियान छेड़ा. केजरीवाल को फेल साबित करने के लिए पार्टी बैठकों में वकील बाप बेटे शांति-प्रशांत भूषण द्वारा लंबा चौड़ा चार्जशीट पेश किया जाता जिसे योगेंद्र यादव बौद्धिक मुलम्मे में सपोर्ट करते.

–दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान भूषण तिकड़ी ने ‘आप’ को भाजपा के बाद नंबर दो की पार्टी बनाने के लिए काम किया. बेटी शालिनी गुप्ता ने फंड देने वाले एनआरआई को बीच चुनाव मेल कर दिया कि पार्टी को पैसे देने की जरूरत नहीं है क्योंकि केजरीवाल कई ऐसे प्रत्याशियों को चुनाव लड़वा रहा हैं जिनका बैकग्राउंड संदिग्ध है. बाप शांति भूषण ने बयान दे दिया कि वे सीएम के रूप में किरण बेदी को नंबर एक पसंद मानते हैं. ये सारी बातें स्थितियां केजरीवाल को पता चलती रहीं पर उन्होंने चुप्पी साध कर सिर्फ और सिर्फ अपना लक्ष्य की तरफ खुद को केंद्रित किए रखा.

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–योगेंद्र यादव ने पत्रकारों को ब्रीफ कर कर के ऐसी खबरें छपवाईं जिससे पार्टी डैमेज हो और पार्टी के भीतर का विवाद जगजाहिर हो ताकि केजरीवाल व पार्टी की छवि पर असर पड़े. इससे संबंधित आडियो पिछले दिनों जारी किया गया जिसमें साफ साफ द हिंदू की महिला पत्रकार कह रही हैं कि उन्होंने जो कुछ पार्टी के खिलाफ लिखा उसे योगेंद्र यादव ने ब्रीफ किया.

-शांति भूषण और प्रशांत भूषण ने योगेंद्र यादव को अपने कब्जे में कर रखा था ताकि उन्हें एक कठपुतली नेता मिल सके जो उनके हिसाब से पार्टी को चलाए. योगेंद्र यादव यह बात जानते थे कि ये पार्टी शांति भूषण के पैसे से बनी है. इसका संविधान ढांचा प्रशांत भूषण ने बनाया. फंड के मोर्चे पर एनआरआईज को हैंडल कर रही शालिनी की भूमिका बड़ी है. उन्हें लगा कि वे इस तिकड़ी के साथ काम करके अपना कद पद बढ़ा सकते हैं और पार्टी के भीतर मनचाही स्थितियां पैदा कर सकते हैं.

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–एक तरफ भितरघात कर रहे शांति भूषण, प्रशांत भूषण, शालिनी गुप्ता और योगेंद्र यादव की टीम थी जो जमीन पर कम, मीडिया व बौद्धिक हलकों में ज्यादा सक्रिय रही. इन लोगों की अंदरखाने कोशिश थी कि पार्टी नंबर दो की पोजीशन पर रहे ताकि हार का ठीकरा केजरीवाल पर फोड़कर उन्हें संयोजक पद से हटाया जा सके, भूषण तिकड़ी के अनुरूप न काम करने का दंड दिया जा सके और योगेंद्र यादव को नया संयोजक बनाया जा सके.

–चुनाव लड़ने के लिए घोषित किए गए प्रत्याशियों में अपनी मनमानी न चलते देख भूषण तिकड़ी ने 12 उम्मीदवारों पर तरह तरह के आरोपों का हवाला देकर पार्टी के भीतर तूफान पैदा किया. पार्टी लोकपाल एडमिरल रामदास ने जांच के बाद 12 में से दस प्रत्याशियों पर आरोपों को खारिज कर दिया. जिन दो पर आरोपों में सत्यता पाई गई उन्हें चुनाव के बीच ही केजरीवाल ने बदल दिया और दूसरे लोगों को टिकट दे दिया. पर भूषण तिकड़ी इससे ही शांत न थी. आरोप है कि इन लोगों ने जी न्यूज तक सारी आंतरिक बहस, विवाद को लीक कर दिया जिसके बाद मीडिया में ‘आप’ के दागी प्रत्याशियों पर बहस शुरू हो गई. इससे चुनावी माहौल में ‘आप’ की छवि को भारी धक्का लगा.

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–आरोप है कि चुनाव के दौरान ‘आप’ पर जितने चंदे, हवाला आदि के आरोप लगे, उनके पीछे मास्टरमाइंड ये भूषण तिकड़ी ही थी. इनकी कोशिश हर हाल में ‘आप’ को बहुमत दिलाने से रोकना था ताकि केजरीवाल का सर कलम किया जा सके. पर सारी साजिशों, बेइमानियों, भितरघातों, बयानबाजियों, मेलबाजियों के बावजूद भूषण तिकड़ी को मुंहकी खानी पड़ी.

–केजरीवाल और उनकी टीम की अथक मेहनत, धैर्य और आंतरिक झगड़ों पर चुप्पी का इनाम ये मिला कि उनके पक्ष में लहर नहीं, तूफान नहीं, सुनामी चल पड़ी. 70 में से 67 सीटें ‘आप’ को मिली. इससे भूषण तिकड़ी सकते में आ गई. फिर भी ये लोग नहीं माने और पार्टी संयोजक का पद योगेंद्र यादव को दिलाने के लिए अभियान शुरू कर दिया. इस बार सहारा लिया एक व्यक्ति एक पद का.

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–भूषण तिकड़ी की हरकतों-दुर्व्यवहारों-पार्टी विरोधी गतिविधियों के कारण दो-दो बार भरी मीटिंग में रो चुके केजरीवाल ने चुनाव बाद भी इन लोगों की साजिशें न रुकते देख एक दिन फैसला कर लिया कि वे किसी हालत में इन लोगों के साथ कोई मीटिंग शेयर नहीं करेंगे. संदेश साफ था. केजरीवाल अब इन भूषण तिकड़ी की डांट डपट चार्जशीट आरोप झिड़की विवाद भितरघात आदि को सहन करने को बिलकुल तैयार नहीं थे. उन्होंने अपने लोगों से साफ कह दिया कि ये लोग या तो खुद अलग-अलग प्रदेशों की जिम्मेदारी लेकर वहां मेहनत कर जनांदोलन खड़ा करें, जीतें या फिर पार्टी छोड़कर चले जाएं और अपनी पार्टी बनाकर नई शुरुआत करें, जैसे एक जमाने में मतभेद होने पर अन्ना ने किया था.

–मीडिया फ्रेंडली भूषण और योगेंद्र यादव ने अरविंद केजरीवाल के सख्त रुख को भांपकर मीडिया का जमकर इस्तेमाल करते हुए विधवा विलाप शुरू कर दिया और केजरीवाल को तानाशाह, अलोकतांत्रिक, वन मैन पार्टी आदि आदि आदि के जुमले से रंग डाला. योगेंद्र यादव, जो खुद यादव बहुल गुड़गांव की लोकसभा सीट पर अस्सी हजार के करीब ही वोट पा सके थे और हरियाणा में पार्टी कार्यकर्ता से लड़कर इस्तीफा दे डाले थे कि या तो इसे रखो या मैं बाहर चला जाउंगा, भी मीडिया के सामने अपनी पूरी ताकत के साथ अपने को पीड़ित के रूप में पेश करने में कामयाब रहे. जबकि उन दिनों केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ ताल ठोंक कर बिलकुल नई जगह से चुनाव लड़कर लोकसभा में ढाई लाख से ज्यादा वोट पाए थे.

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–लोकसभा चुनाव के नतीजों से मतलब साफ था. जनता के बीच केजरीवाल अदभुत काम कर पा रहे थे, जनता को कनेक्ट करने में सफल हो पा रहे थे लेकिन योगेंद्र यादव और भूषण तिकड़ी जनता के बीच बिलकुल फ्लाप शो साबित हो रहे थे. भूषण तिकड़ी तो सीधे-सीधे चुनाव मैदान में उतरने, प्रत्याशियों का प्रचार करने तक से बिलकुल कतराती रही. उस समय भी केजरीवाल को इन लोगों ने खूब घेरा. लोकसभा चुनाव देश भर में लड़ने का फैसला योगेंद्र यादव और भूषण खानदान का था, लेकिन इन लोगों ने खुद हार का जिम्मा लेने व गलत फैसला किए जाने का अपराधबोध होने के बजाय केजरीवाल को घेर लिया, संयोजक पद छोड़ने के लिए लाबिंग शुरू कर दी. जैसे तैसे केजरीवाल आंतरिक राजनीति को इगनोर कर दिल्ली की जनता के बीच कठिन मेहनत करके उन्हें एक बार पूरा मौका देने के लिए अनुरोध करते रहे. साथ ही साथियों के साथ तरह तरह के कार्यक्रम करके दिल्ली की जनता से कनेक्ट होते रहे.

–दिल्ली विधानसभा में सुपरहिट बहुमत से सरकार बनाने के बाद और अपने खिलाफ आंतरिक राजनीति फिर तेज होते देख बीमारी से जूझ रहे केजरीवाल ने मौन धारण कर लिया. उन्होंने मन ही मन एक नया फैसला ले लिया, इरादा बना लिया. साथियों से अपनी पीड़ा, अपना फैसला, अपना इरादा कनवे करने के बाद केजरीवाल इलाज के लिए बेंगलोर चले गए. वे नहीं चाहते थे कि वे जवाब देकर पार्टी के झगड़े को बढ़ाएं और खुद की भदद् पिटवाएं.

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–अब जब कि भूषण खानदान की बेटी शालिनी के पार्टी विरोधी मेल जगजाहिर हो चुके हैं, शांति भूषण और प्रशांत भूषण समेत योगेंद्र यादव की पूरी मंशा सबको पता चल चुकी है, ‘आप’ शुभचिंतक हर कोई चाहने लगा है कि ये लोग या तो खुद पार्टी छोड़ दें या फिर इन्हें निकाल दिया जाए ताकि अरविंद केजरीवाल वह सब कुछ कर सकें जो उन्होंने जनता से वादा किया था चुनावों के दौरान. पार्टी कार्यकर्ता यह समझने लगे हैं कि दरअसल पार्टी को खड़ा करने वाला और उसे यहां तक ले आने वाले अरविंद केजरीवाल व उनके साथी ही हैं.

–अगर बौद्धिक विलाप से पार्टियां खड़ी हो सकती थीं और चुनाव जीत सकती थीं तो इस देश में कम्युनिस्ट पार्टियां कई कई बार पूर्ण बहुमत से केंद्र से लेकर सारे प्रदेशों में सत्तानशीं हो सकती थीं. लेकिन बौद्धिक समझ के साथ असल ताकत जनता और समाज की समझ के साथ उन्हें अपने पक्ष में खड़ा कर लेने की होती है जिससे योगेंद्र यादव से लेकर भूषण तिकड़ी तक अनजान है. यही कारण है कि ये लोग सिर्फ पार्टी पर नियंत्रण और अपने इशारे पर सब कुछ चलाते रहने की साजिशों में जुटे रहे.

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— नीचे उस मेल के कुछ अंश हैं जिसे प्रशांत भूषण की बहन शालिनी भूषण उर्फ शालिनी गुप्ता ने आठ सौ एनआरआई वाले ईमेल ग्रुप को भेजा था, जिसे ‘आप ग्लोबल ग्रुप’ कहा जाता है… ये मेल चुनाव के दौरान भेजे गए ताकि ‘आप’ को फंड न मिले, ‘आप’ में विवाद बढ़े और फूट पड़े जिससे अंततः पार्टी कमजोर पड़े व भाजपा जीत जाए. ‘आप’ की हार से भूषण तिकड़ी केजरीवाल को संयोजक पद से हटा देती और योगेंद्र यादव को बिठा देती. लीजिए मेल के कुछ अंश पढ़िए…

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Since all of you are important stakeholders in the party, donating your time and money some straight talk is warranted. Here is my perspective. You will get a different answer to your question depending on who you talk to.

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One camp believes that in this game of politics if we have to pick some candidates and employ some techniques that other political parties do. Also the benchmark that arvind is using is even if these candidates have recently been inducted from other political, parties and we all know their reputation, source of disproportionate assets etc, or that they have used money and muscle to win previous elections, they are ok as AAP candidates as long as there is no concrete proof of any wrongdoing that would be evidence in court.

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The other camp of leaders believe that even if there is no concrete proof, if they have an unsavory reputation as local thugs, have disproportionate assets and illegal professions, and have used wrong means to win previous elections they do not come up to the standards of AAP candidate and we cannot expect them to work in public interest if they win.  Many such people have a setting with the police and do not allow FIRs to be registered against them.  So to use proof as a standard is not enough for AAP.  These are career politicians just out to make money.  Moreover to fight the election with such candidates is political suicide.

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This negotiation has happened because of very strong push by a group of leaders led by Prashant Bhushan who did not want to see the party ideology of clean politics thrown by the wayside.

उपरोक्त मेल के जवाब में कुछ परेशान एनआरआई ने रिप्लाई भी किया. पढ़िए एक एनआरआई मोतिका आनंद का छह जनवरी को भेजा गया जवाब…

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I wanted to finalise adopting a constituency as there might not be enough time for elections. I want to see AAP winning the elections and at this point I want to canvass for AAP not a particular candidate. This needs to be cleared up as to what is going on? Whether we focus on candidates or AAP as a whole?

एक अन्य एनआरआई अतुल आनंद लिखते हैं:

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Imho these complaints, dont know how many seats we are talking about, should have been reviewed before announcing candidates. We will be made a laughing stock for these ticket cancellations which media/bjp will only gleefully grab as another uturn [U-turn] by AAP.

जब दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बन गई तो एक जय चटर्जी ने शालिनी गुप्ता के पत्र के जवाब में उनसे पूछा…

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is that true that you are the same Shalini Gupta who is the daughter of Shanti Bhusan? If that’s true then you should step down as NRI coordinator and get elected through a pre-declared, transparent and due process.

तो ये रहे कुछ फैक्ट्स जिसके आधार पर पार्टी के शुभचिंतक खुलकर कहने लगे हैं कि ‘आप’ विरोधियों और आम आदमी द्रोहियों को पार्टी में रहने का कतई हक नहीं हैं. अगर वे खुद नहीं चले जाते हैं तो उन्हें पार्टी से बाहर निकाल फेंकना चाहिए क्योंकि अनुशासनहीनता की भी हद होती है. लोग इन सारे तथ्यों को जानने के बाद कहने लगे हैं कि केजरीवाल अदभुत व्यक्ति हैं, वे इतना सब कुछ जानने के बावजूद अब तक क्यों और कैसे इन विभीषणों को झेलते रहे. भूषण तिकड़ी और योगेंद्र यादव के पार्टी द्रोह की बातें यहीं नहीं खत्म होती. एक लंबा सिलसिला है, कई अध्याय हैं. पूरा वही जान सकता है जिसके पास आम आदमी पार्टी के बनने से लेकर अब तक मिली सफलता-असफलता की कहानी सुनाने वाला सही व्यक्ति हो और सुनने के लिए पूरा टाइम हो. अगर शार्टकट में पड़कर और मीडिया जनित रिपोर्टों के आधार पर भावुक होकर फैसले ले रहे हों तो आप केजरीवाल को उसी तरह गरियायेंगे जैसे मैं गरिया चुका हूं (देखें नीचे शीर्षक), अधजल गगरी छलकत जाय की तर्ज पर. पूरा ज्ञान होने के बाद फैसले लेंगे तो ज्यादा रेशनल, ज्यादा डेमोक्रेटिक और ज्यादा साइंटिफिक होंगे. इसीलिए, कहीं ऐसा न आप कर दें कि सबको कहना पड़े- लम्हों ने खता की, सदियों ने सजा पाई.

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लेखक यशवंत सिंह से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.


उपरोक्त विश्लेषण पर फेसबुक पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं…

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Prakash Kukrety भैया हम तो पहले से ही यह सब जानते थे, यकीन न हो तो वाल पर देखिये,मैने खुलकर भूषण और यादव को पार्टी से निकालने की बात कही है
Mukund Hari राजनीतिक महत्वाकांक्षा का इतना गन्दा खेल !
संजय राय to, ab finali kya kiya jaye …yashwant ji …..
Meenu Jain आप एक प्रबुद्ध चिन्तक एवं विचारक है तो इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि आप एक कुशल राजनीतिज्ञ भी है.
Arun Sathi गंभीर आरोप है और इससे उबर कर देश की आकांक्षाओं पे ख़ड़े उतरना ही चुनौती है.. केजरीवाल ने बाकई धैर्य का काम किया पर मिडिया उस मुद्दे को प्रायोजित कर उछाल दिया
Ashish Verma मुझे शुरुवात से केजरीवाल पे भरोसा था। मयंक गांधी भी इसलिए उछाल रहस रही हैं AAP मुंबई में मनपा चुनाव नही लड़ेगी
Mannu Singh ap logo ki thothi bato se jhooth sach me ni badal jayega. sach ko pachana sikhiye.
Binod Verma kanhi garbar lag raha hay Yashwant ji!!!
Dinesh Jindal ek baat samajh me nahi aayi shalini jii itni badi bewkoofi kaise kar sakti hain.. apni id se mail karke
Kumar Abhishek shalini ne mail kaise kia hoga ??
Kishlay Sharma Yashwant Bhai main todha shocked tha jab aapne Kejri ko tanaashah kaha tha…par noe i am happy kyonki meri research aur result bhi hai hai.
Yashwant Singh शालिनी ‘आप ग्लोबल सेल’ की हेड हैं. मेल करना एनआरआई को जोड़ना, पार्टी के लिए एनआरआई से फंड कलेक्ट करना उनका नियमित काम था. उन्होंने ओपन मेल किया है, यह सब आन रिकार्ड है. कई बार ताकत और अहंकार आंख पर पट्टी बांध देता है. भूषण तिकड़ी को यह कतई नहीं पता था कि एक दिन पार्टी के भीतर उनकी हरकतों पर सवाल होंगे और ये लोग निकाले भी जाएंगे. ये पता होता तो ये लोग बिलकुल राइट टाइम होते
Yashwant Singh भाई Binod Verma जी, हर कहानी पर शक करना चाहिए. और, हर कहानी से आगे की कहानी पर ध्यान गड़ाना चाहिए. सच की पड़ताल एक सतत प्रक्रिया है. जिन डूबे तिन पाइंया… आपको नया कुछ पता हो तो स्वागत है. मुझे खुद को अपग्रेड करने में खुशी होगी.
Jass Singh yy ji 57 se seats ayengi. akhir kyon baar baar predict kar rahe the. sab se sateek bhavishvani yy ji he sach sabit hui. kitni mohala sabayien yy ji ne ke. kya delhi ke logo ke rai le yy ji ne kush galat kiya. ek pahlu he mat dekhe. dusre ko moka be de. aur rahi baat pb aur sb aur un ke larki ke toh wo jaror shak ke ghere me hai.
Kishlay Sharma Shalini ne yeh mail bhi Lokpal enquiry ka result aane se pehle hi kar diya tha…they wanted highjack party as per their whims and fancies.
Saleem Akhter Siddiqui यशवंत जी राय बदलने से पहले अभी थोड़ा इंतजार करना चाहिए था। तिकड़ी के तथ्य भी सामने आने दीजिए।
Yashwant Singh राय नहीं बदला है. अब तक उपलब्ध तथ्यों के आधार पर आंकलन किया है. तिकड़ी के पास अब कहने रोने के लिए कुछ नहीं है क्योंकि वो सब कुछ मीडिया में कह रो लीक पोक चुके हैं…
सोबन सिंह महर पढ़ लिया ये वाला भी, गजब का निकली तिकड़ी.
Jyotika Patteson  स्वार्थ और महत्वकाक्षांओं के मुँह पर तमाचा है अरविंद का ये निर्णय… हर राजनेता को केजरीवाल जैसा ही निर्णय लेना चाहिए..
नवीन रमण  आप पार्टी की पड़ताल करता और कुछ तथ्य उजागर करता लेख । योगेन्द्र यादव और तिकड़ी भूषण की अपनी लालसाएं
माधो दास उदासीन एक विश्लेष्ण यह भी…
Neha Sweetu क्या ये सच है???
संजय राय लीजिये ये आ गया सच …. आम आदमी पार्टी का …….आप को ज्ञातब्य हो की जब अन्ना ने स्वामी अग्निवेश , शांति भूषण , प्रसान्त भूसन , किरण , अरविन्द , manish की टीम घोषित की जनांदोलन के लिए …तो मैंने सबसे पहले सवाल किया था बाप -बेटा एक साथ क्यों ? मैं क्यों नहीं …..तो लोगों ने मेरा बिरोध किया था …..बाप-बेटा मिल के अन्ना को अलग किये , फिर बाप अलग हुआ …..बेटे ने योगेंदर के साथ मिल ये गेम रच दिया ……….कोइ कैसे करे काम …स्वार्थ और मह्त्वाकांछा के चलते ……….हद हो गयी ये तो ….
Manish Tiwari आप का एक रोचक रहस्योदघाटन ! पढ़े जरूर ।
Santosh Singh अब जरा इसको भी पढिए ई किसी भड़ासिये का भड़ास नहीं है यह पार्टी के शुभ चिंतक द्वारा लिखा गया पोस्ट है जो कि चाहता है कि ‘आम आदमी पार्टी’ का यह प्रयोग जनता परिवार की तरह चुच्चू और मुरब्बा न बन जाये।
Saurabh Rajput क्या यही हकीकत है यदि हाँ तो लगता है जो पार्टी ने किया वो ठीक ही किया ?
Saket Sisodia Bhai yeh to ‘mann ki baat’ lagti hai. Isme tathayatmak jaisa kuch nahi. Volunteers emotional fool nahi hain, Yashwantji unhe rajniti na padaye.
Yashwant Singh सच के कई परत होते हैं.. जितने गहरे उतरिए, उतने ज्यादा सच पाते जाइए… ‘आप’ का असली सच…
Kishlay Sharma The final nail by otherwise YY and PB sympathiser Yashwant Singh of Bhadas 4 Media.


इसी प्रकरण पर यशवंत सिंह द्वारा शुरुआत में केजरी के खिलाफ लिखे गए आक्रोश भरे कुछ आलेख यूं हैं…

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केजरीवाल से मेरा मोहभंग… दूसरी पार्टियों के आलाकमानों जैसा ही है यह शख्स…

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योगेंद्र-प्रशांत निष्कासन प्रकरण के बाद अरविंद केजरीवाल की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी से नीचे गिरा है

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किस-किस को कत्ल करोगे केजरीवाल… हिम्मत हो तो अब मयंक गांधी को बाहर निकाल कर दिखाओ…

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0 Comments

  1. Rahul

    March 10, 2015 at 1:46 pm

    No convinced Yashwnt ji. Your allegations are full of contradictions and in quite few places without any logic. PB and especially YY may be wrong in their conduct but still cannot be accused of destroying party. U have not said any thing in ur article which has not been said already.

  2. कुलदीप कादयान

    March 10, 2015 at 1:21 pm

    कृपया ये लाइन ठीक कर लें:

    “योगेंद्र यादव, जो खुद यादव बहुल गुड़गांव की लोकसभा सीट पर बीस हजार के करीब ही वोट पा सके थे”

    उनकी टोटल वोट 79452 थी.

    कुलदीप कादयान

  3. यशवंत

    March 10, 2015 at 1:30 pm

    शुक्रिया कुलदीप कादयान जी, ठीक कर लिया है.
    आभार

  4. Shashank Bharadwaj

    March 10, 2015 at 3:10 pm

    Sir all the antidotes are based on your view and how you are seeing the things. on Shalini matter I can only say that mail which you are talking about is completely out of context and she never said or discourage anyone not to donate. Another thing you mentioned about someone asking who is Shalini, many who joined AAP post 2013 Delhi success don’t know and never bothered to find out who is who. The mail of Shalini which you are talking about was actually regarding owning up a constituency and nothing related to donation or anything else.

  5. दुष्यंत

    March 10, 2015 at 3:24 pm

    वैसे मीडिया की बताई बातों से ही आपने जो राय बनाई और पिछले लेख केजरीवाल अपनी जानी-पहचानी तल्ख़ ज़बान में टिप्पणी की उसके बाद ये लेख उस ग़लती की सफ़ाई तरह भी दिखता है। लेकिन अच्छा है। ये गुण आपका हम जैसों को भङास पर ले आता है।

  6. suresh mishra

    March 10, 2015 at 6:57 pm

    aam aadmi party ke beech machi dawabdyudh ka jeetajagta udaharan
    very nice

  7. Arjun

    March 10, 2015 at 8:20 pm

    Maja to tab aayega jab 28 March ko Kumar Vishwas ji ka naam sanyojak pad ke liye laya jayega aur PB/YY hakke bakke dekhte rahenge..

    This YY is the same guy condemned by many AAP volunteers/leaders for using “Salim” card. Per the constitution of AAP, Shalini Gupta should not have taken any post in first place. Why dint PB complain regarding that ever?

  8. snehal

    March 11, 2015 at 6:39 am

    not convincing at all.. not even worth a full read after the sentence.. इस तिकड़ी के मन में शुरू से यह बात रही कि ये पार्टी उनके इशारे पर चलेगी और उनके अनुरूप चलेगी… The bias is clear..

  9. PRADEEP PRAKASH BADK

    March 11, 2015 at 2:27 pm

    few questions- Is there any rule to change the nation convener or only PB and company has to decide ;Isn’t it autocratic style.

    People wanted to see YY at nation level but why he was clashing in Haryana with state convener ?

    Why PB was forcing to make YY as nation convener of AAP, and never denied by YY that he is not interested as Nation convener.
    Is there any rule in AAP that afer getting elected as MLA/MP/Minister the can’t hold any Party post.?

    I want to know whether “Jai Kisan” has been initiated by Yogendra after getting permission of Party or it was his individual movement

  10. लव कुमार सिंह

    March 11, 2015 at 3:32 pm

    यशवंत भाई,
    आजकल लगभग हर मामले में मीडिया या मीडिया से जुड़े लोग, जिसमें आप भी शामिल हैं, तुरंत प्रतिक्रिया जताने से खुद को रोक नहीं पाते। वे खबर मिलते ही बोलने-लिखने को जैसे दौड़ पड़ते हैं। ….और लगभग हर मामले में कुछ समय बाद, मीडिया का तुरत-फुरत वाला आकलन गलत निकला है और निकल रहा है। हम मोदी समेत कई मसलों पर आपको उलट-पुलट होते देख चुके हैं। इतनी जल्दबाजी ठीक नहीं है।

  11. Lata Soni

    March 11, 2015 at 10:27 pm

    I am sick of AAP and Kejriwal. He is behaving like Sonia Gandhi and eliminated Yogendra Yadav, Prashant Bushan and Anjeli Damania. I will never vote for this party again.

  12. Abhijit

    March 12, 2015 at 12:01 pm

    Actually ‘bhadas’. Not much substance. Nothing new Basically a consolidated summary of arguments and accusations made by the AK supporting faction.

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