हैदराबाद की 26 वर्षीय प्रियंका रेड्डी एक वेटनरी डॉक्टर थी। 30 किलोमीटर की दूरी तय कर वह हर दिन अपना फर्ज़ निभाने शम्शाबाद हॉस्पिटल जाती थी। वह हैदराबाद-बेंगलुरु नेशनल हाईवे स्थित टोंडुपल्ली टोल प्लाजा पर अपना टू-व्हीलर पार्क करती थी और वहां से कैब लेकर अस्पताल तक जाती थी। मतलब अपने काम को वो कितनी गंभीरता और शिद्दत से कर रही थी, ये उसकी इस कोशिश से ही ज़ाहिर होता है।
एक लोवर मीडिल क्लास फैमिली की लड़की होगी, इसीलिए इतनी मेहनत करके अपने दिन की शुरुआत करती थी। थोड़ी पैसे वाली होती तो अपनी कार से जाती, कैब से जाती, लेकिन नहीं स्कूटी से जाती थी, और स्कूटी को एक जगह खड़ा करके फिर कैब से अपना आगे का सफर तय करती थी। लेकिन वो नहीं जानती थी, कि जिस शिद्दत से वो अपना काम कर रही है, उससे कई गुना बड़ी दरिंदगी लिए कुछ लोग उसकी ज़िंदगी को अपने बाप की प्रॉपर्टी समझ एक बार में जला कर खतम कर देंगे।
किसी को शौक़ नहीं होता कि वो रात के 9:30 बजे 30 किलोमीटर का सफर तय करके घर पहुंचे, लेकिन कुछ लोग अपनी ड्यूटी पैशन के लिए करते हैं, तो कुछ ज़रूरत के लिए… और कभी-कभी दोनों के लिए।
अपनी ज़िंदगी में एक समय में एक साथ एक औरत पहले से ही अनगिनत लड़ाईयां लड़ रही होती है, लेकिन ये बात उन्हें समझ नहीं आती जो झुंड में आते हैं और जानवरों की तरह नोच कर एक पल में उसकी दुनिया खतम कर देते हैं। पहले तो घूरेंगे, फिर प्लानिंग करेंगे, फिर उसकी मर्ज़ीं के बिना उसे इधर-उधर छूयेंगे, फिर रेप करेंगे और अंत में जला कर मार भी देंगे… जलाकर नहीं मारेंगे तो गला घोंट देंगे…
गला नहीं घोंटेंगे तो अंदर रॉड डाल देंगे… रॉड नहीं डालेंगे तो आंतें बाहर निकाल लेंगे… मतलब रेप भी करेंगे और जान भी ले लेंगे… इन्हें ये नहीं पता कि जो ज़िंदगी देता है, वो भी ज़िंदगी नहीं ले सकता… फिर ये किस अधिकार से किसी के साथ ये सब कर जाते हैं?
कौन हैं ये लोग? इनकी मांओं ने क्या खाकर इन्हें पैदा किया होता है? ये कौन से स्कूल में पढ़े होते हैं? कैसे लोगों के बीच बड़े हुए होते हैं? कहां से आते हैं? औरत की कोख से ही पैदा होते हैं ना, या शैतान की कोख से?
पैर के नीचे एक चींटी भी दिख जाती है, तो हम पैर हटा लेते हैं या चिंटी को उठाकर कहीं किनारे रख देते हैं, ये लोग नजाने कैसे चलता-फिरता शरीर खत्म करने से नहीं हिचकते।
खबर तो आप सबने भी पढ़ी होगी, कि कैसे 26 साल की प्रियंका का रेप करके उसे कैरोसिन डाल कर जला दिया। इन्हें क्या लगता है, औरत को दर्द नहीं होता? तकलीफ नहीं होती? मोमबत्ती जलाते हुए हल्के से उंगली जल जाती है, तो 2 दिन तक जलन होती है… गरम चाय/कॉफी पीने के बाद जली हुई जीभ 3 दिन तक कोई नया स्वाद नहीं पहचान पाती, तो सोच कर देखें उसे कितनी तकलीफ होती होगी, जिसे ज़िंदा जला दिया जाता है। रूह कांप जाती है… रोंगटे खड़े हो जाते हैं…
औरत का हर दिन कई नई चुनौतियां साथ लेकर शुरू होता है… वो अपनी सारी चुनौतियों से तकलीफों से लड़ाई-झगड़ों से खुद को बनाये और बचाये रखने की ज़िद से बड़े आराम से जीत सकती है, वो भी बहुत कुछ कर सकती है अगर अपने शरीर को बचाये रखने की एक एक्सट्रा लड़ाई के लिए उसे एफर्ट ना मारना पड़े। हमारी आधे से ज्यादा ज़िंदगी तो गिद्ध निगाहों से खुद को बचाने में ही निकल जाती है… हम भी बेखौफ जंगलों में घूमना चाहते हैं… अकेले समुंदर को चखना चाहते हैं… बेपरवाह नीले आसमान में उड़ना चाहते हैं… लेकिन कैसे? पहले शरीर को बचाये रखने की लड़ाई से उबर लें।
परसों दिल्ली में जली थी, कल हैदराबाद में जली, आज कहीं और जलेगी, परसों कहीं और जलेगी… ऐसे ही जलती रहेगी… लेकिन, हम हमेशा बोलेंगे, हर बार बोलेंगे… कुछ कर पायें या न कर पायें… ये सब बंद हो या ना बंद हो… इन्हें सज़ा मिले या ये अवारा कुत्तों की तरह बेखौफ सड़कों पर घूमें… हमें हर बार बोलना चाहिए। पिछली बार बोला, कुछ हुआ नहीं… रेप तो तब भी हुए अब भी हो रहे हैं… लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि हम चुप हो जायेंगे। हमें बोलते रहना चाहिए… लिखते रहना चाहिए… कहीं तो आवाज़ पहुंचेगी और ना भी पहुंचे, तो भी बोलेंगे… तो भी लिखेंगे।
अब ना गुस्सा आता है, ना अफसोस होता है… बस तकलीफ होती है बहुत ज्यादा और दुनिया की हर चीज़ बेमानी लगने लगती है।
योर स्टोरी डॉट कॉम की हिंदी एडिटर रंजना त्रिपाठी की प्रतिक्रिया.