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सुख-दुख

Times of india के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र की कोरोना से मौत

राजकेश्वर सिंह-

लखनऊ में मेरे सबसे करीबी मित्र और वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र को भी कोरोना ने आज हमसे छीन लिया। सुभाष का जाना मेरी बहुत बड़ी निजी क्षति है।

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मेरा उनका 30 वर्षों का साथ था। मैं दस साल नौकरी में दिल्ली रहा। शायद ही कोई दिन ख़ाली गया होगा, जिस दिन उन्होंने मुझसे बात न की हो। हर रात दस बजे तक उनका फ़ोन आना लाज़िमी था। लखनऊ- दिल्ली से जुड़े राजनीतिक, ग़ैरराजनीतिक…सारे मामलों पर अपडेट होना, करना उनके जीवन का हिस्सा बन गया था।

मेरे लिए उन्हें भुला पाना बहुत मुश्किल है। बीते 30 वर्षों में मुझसे जुड़े हर मसले पर वे हमेशा मेरे साथ खड़े रहे। बहुत ही स्वाभिमानी व्यक्ति थे। कई बार कुछ ऐसी स्थितियां बनीं, जब मैंने उन्हें कुछ लचीला रूख अपनाने की सलाह दी। वे तुनक जाते, कहते मैं झुक नहीं सकता। अपने फ़ायदे के लिए मैं खुद को हल्का नहीं करूँगा। उन्होंने अंतिम सांस तक अपने इस मिजाज को बरकरार रखा।

वे 14 वर्षों तक इंडिया टुडे मैगज़ीन को यूपी में हेड करते रहे। बीच में कुछ समय के लिए उनके ऊपर फरजंद अहमद साहब रहे। वे अपने मित्रों के साथ मिलकर संस्थागत रूप से लखनऊ में हर साल फुलबॉल टूर्नामेंट कराते थे। कुछ समय तक उन्होंने फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस के लिए भी काम किया। इस समय टाइम्स ऑफ इंडिया लखनऊ में Associate Editor के पद पर कार्यरत थे।

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कोरोना से परेशान लोगों की जानें जा रही हैं। हालात ऐसे बन गये हैं कि कुछ लोगों को जीते जी भी मरना पड़ रहा है। मुसीबत की इस बेला में समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाये ? कैसे बचा जाये। भगवान सुभाष जी की आत्मा को शांति प्रदान करें और परिवार को इस दुख को सहन करने की शक्ति दें।


समीरात्मज मिश्रा-

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आज सुबह ही लखनऊ में टाइम्स ऑफ़ इंडिया के वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र जी के निधन की सूचना सुनकर स्तब्ध रह गया.

यूपी में राजनीति से लेकर अन्य सभी विषयों पर मज़बूत पकड़ रखने वाले सुभाष जी से अक़्सर मुझे कई चीज़ें जानने और समझने को मिलती थीं. अपनी रिपोर्टों में भी कई बार उनकी बातों को शामिल करता था. कई बार मेरी ख़बरों का लिंक शेयर करके जो उत्साह बढ़ाते थे, वह बड़ी ऊर्जा देता था.

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बेहद मिलनसार और सरल व्यक्ति थे सुभाष जी. क्या कहूं, विश्वास ही नहीं हो रहा है……लेकिन यह सच है. सुभाष जी को सादर नमन.


विजय कांत-

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मेरी बुआ जी के तीसरे पुत्र सुभाष मिश्रा जिन्हें हम घर में अब्बू कह कर पुकारते थे, ने आज भोर करीब 2:30 बजे पीजीआई लखनऊ मैं अंतिम सांस ली। कोरोना की वजह से उन्हें भर्ती कराया गया था। चित्र में दूसरी तस्वीर वरिष्ठ पत्रकार तविषी श्रीवास्तव की है। सुभाष टाइम्स ऑफ इंडिया लखनऊ में एक वरिष्ठ पत्रकार के रूप में कार्यरत थे। अजीब संयोग है कि दोनों कोरोना के शिकार हुए।

दूसरी लहर में लखनऊ के 20 से अधिक पत्रकार साथी ऐसे चले गए। मगर सरकार का ध्यान अब तक नहीं गया। यूपी में पत्रकारों के सेवानिवृत्त अथवा एकाएक मृत्यु होने की दशा में किसी भी प्रकार पेंशन का प्रावधान नहीं है जबकि छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में 10 से ₹ 15 हजार रुपए प्रति माह पेंशन का प्रावधान है। सीएम योगी आदित्यनाथ एवं अतिरिक्त मुख्य सचिव नवनीत सहगल जी यदि ऐसा करवा देते हैं तो पत्रकार बिरादरी उन्हें भी स्मृति शेष हेमवती नंदन बहुगुणा की तरह याद रखेगी। उनके जमाने में लखनऊ के पत्रकारों को सरकारी आवास देने का प्रावधान हुआ था।

अभी भी अनेक पत्रकार कोविड-19 से जूझ रहे हैं जिनमें कई वरिष्ठतम पत्रकार भी है। मैं करीब तीन दशक तक लखनऊ के टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में विभिन्न पदों पर कार्य करता रहा और कल ही पूर्व सूचना आयुक्त अरविंद सिंह बिष्ट जी से इन दो विषय पर बातचीत हुई थी। योगी जी एवं सहगल जी की गिनती भले आदमियों में होती है तो मैं उनसे आशा करता हूं कि कॉविड काल में पत्रकारों कि जीवन सुरक्षा के साथ ही पेंशन आदि जैसे गंभीर विषय पर निर्णय लें। पुनः अपने भाई तथा पत्रकार साथी सुभाष मिश्र को विनम्र श्रद्धांजलि।

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राघवेंद्र दुबे-

सुभाष मिश्र भी…… यह विषाद में और गहरे डुबो देने वाली सूचना मुझे वरिष्ठ पत्रकार, भाई सुरेश बहादुर सिंह से अभी – अभी ( सुबह 7.10 बजे ) मिली। वरिष्ठ पत्रकार सुभाष मिश्र बीती रात तकरीबन दो या ढाइ बजे ( संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, लखनऊ में भर्ती थे ) नहीं रहे।

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दम तोड़ दिया नहीं लिखूंगा। इसलिए कि दम टूट जाना, या कहीं रुक कर दम ले लेना तो मित्र सुभाष की फ़ितरत में ही नहीं था। सुरेश बहादुर के मुताबिक वह तो पत्रकारिता का अनथक योद्धा था।

रविशंकर तिवारी साथ ही थे। बमुश्किलन दो माह पहले ही रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह जी के आवास पर उनसे ( सुभाष जी से ) मुलाक़ात हुई थी। अपने बुलाये जाने के इंतजार में मेरी ही तरह वह ठीक मेरे सामने ही बैठे थे – मास्क लगाए। केवल आंख दिखायी दे रही थी। उन्होंने ही मास्क थोड़ा सा सरकाया — ‘ अरे सुभाष जी ‘। लेकिन ललक होने के बावजूद हम खुद पर काबू रख कर, गले कहां मिल सके थे। बहुत सारी बातें हो गईं उतनी ही देर में।

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— ‘ सर्वहारा सामंत ‘ ( डीपी त्रिपाठी की बायोग्राफी ) का क्या हुआ ?
— छप गयी, राजकमल प्रकाशन से
— विमोचन कराइये…..और हां एक प्रति मुझे भेजिएगा ( उन्होंने तत्काल वाट्सएप पर अपना डाक पता मुझे भेजा ) फिर कहा – इन्हीं से ( राजनाथ सिंह जी से ) विमोचन कराइये। मुझे लगता है यह विमोचन के सर्वाधिक सुयोग्य हैं।
— जी, विमोचन में सभी दलों के लोग होंगे। डीपी त्रिपाठी का व्यक्तित्व भी एक जगह बंध जाने वाला तो था ही नहीं
— हां शरद पवार जी का होना बहुत जरूरी है
— राहुल गांधी और प्रियंका गांधी का भी। आखिर डीपी त्रिपाठी उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी के सर्वाधिक निकटस्थ, बहुत भरोसे के, उनके पॉलिटिकल स्ट्रेटजी मेकर थे ।
( यही सब बात हुई और वह डीपी त्रिपाठी से अपने रिश्ते बताते रहे )

फिर उन्हें राजनाथ जी ने बुला लिया और थोड़ी ही देर बाद मुझे भी। मुझे क्या पता था यह सुभाष जी से आखिरी मुलाक़ात है। नहीं, कतई नहीं। यह आखिरी मुलाक़ात नहीं हो सकती। यादों के गलियारे में हम मिलते ही रहेंगे एक दूसरे से और कहानियां गले लगती ही रहेंगी। जीवन, जीवन के बाद भी चलता रहता है, हम जिंदगी की जीत में यकीन जो रखते हैं।

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सुरेश बहादुर सिंह की आवाज रुंध गयी है –तावश्री और अब सुभाष…..शेष नारायण सिंह, मेरे अग्रज थे……। मैं सुरेश भाई से क्या कहता। मोबाइल खुद ब खुद डिसकनेक्ट हो गया।

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