मुस्लिम महिलाओं के बारे में एक विशेष तबके ने यह धारना बना रखी है कि इस समाज में महिलाओं को घर से बाहर निकलने की पूरी तरह से आजादी नहीं होती है। महिलाओं को पर्दे में रहने की सख्त हिदायत होती पर जिस तरह से सीएए के विरोध में मुस्लिम महिलाओं ने हुंकार भरी है उससे उनके बारे में इस तरह की धारणा रखने वाले लोगों को अपनी सोच बदलने के लिए मजबूर कर दिया है। इन महिलाओं ने घर की चौखट लांघकर इंकलाब का जो नारा बुलंद किया है, उससे न केवल केंद्र सरकार की चूलें हिल गई हैं।
इन महिलाओं ने धर्म के आधार पर लाये गये सीएए के विरोध में एक गजब माहौल बनाया है। भले मुस्लिम समाज के पुरुष देश में फैली अराजकता के खिलाफ पूरी तरह से खड़े न हो पा रहे हैं पर महिलाओं ने यह मोर्चा पूरी तरह से संभाल लिया है।
वैसे तो देश में लगभग सभी जिलों में मुस्लिम महिलाएं सीएए के विरोध में आंदोलन पर हैं पर दिल्ली में शाहीन बाग, खुरेजी तो उत्तर प्रदेश में और प्रयागराज और कानपुर और बिहार में पटना में महिलाएं अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गई हैं। मुस्लिम महिलाओं ने सीएए के विरोध में जिस तरह से अपनी आवाज बुलंद की है यह न केवल देश बल्कि विदेश के लिए भी एक मिसाल बन गई है।
शाहीन बाग में तो महिलाएं &4 दिन से अनिश्चितकालीन धरने पर बैठी हैं। इन महिलाओं आपस में एक-दूसरे की सहमति से शिफ्ट बांध ली और रात-दिन धरनास्थल पर बैठकर अपनी आवाज बुलंद कर रही हैं। इस आंदोलन की बड़ी विशेषता यह है कि इसमें कोई नेता नहीं है, कोई संगठन नहीं है बस सब आंदोलनकारी हैं।
इस आंदोलन को हर वर्ग का समर्थन तो मिल रहा है पर यह आंदोलन किसी संगठन को अपना एजेंडा घुसेड़ने की अनुमति नहीं दे रहा है। इस आंदोलन में जहां यज्ञ हो रहे हैं वहीं कुरान भी पढ़ी जा रही है। गंगा-जमुनी तहजीब की एक मिसाल बन रहा यह महिलाओं का आंदोलन न केवल देश बल्कि विदेश के भी मीडिया को आकर्षित कर रहा है।
भले ही भाजपा का मीडिया सेल इस आंदोलन को कांग्रेस द्वारा प्रायोजित बता रहा हो पर मीडिया और सोशल मीडिया में मुस्लिम महिलाओं के इस आंदोलन ने अपनी अलग पहचान बना ली है। शाहीन बाग का धरना देश की दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणा का काम कर रहा है।
यह आंदोलन जहां महिलाओं को अपने हक की आवाज बुलंद करने के लिए एक संदेश दे रहा है वहीं समझौते पर समझौता किये जा रहे समाज के लिए भी एक ऊर्जा काम कर रहा है। यह शाहीन बाग की महिलाओं का जÓबा और बुलंद आवाज ही कि अब खुरेजी में भी महिलाओं ने पूरी तरह से इसी तर्ज पर मोर्चा संभाल लिया है। इन महिला आंदोलनकारियों के सामने शासन-प्रशासन के सभी हथकंडे फेल हो रहे हैं।
जहां शाहीन बाग में बैठी महिलाएं यह कहती सुनी जा रही हैं कि वे तो तिरंगे को ओढ़कर बैठ गई हैं अब जो भी होगा देखा जाएगा पर वे धरने से तभी उठेंगी जब सीएए वापस हो जाएगा। ऐसे ही खुरेजी में चल रहे आंदोलन में महिलाएं यह कहते सुनी जा रही हैं कि हम महिलाएं पर्दे से संविधान बचाने की लड़ाई लड़ने के लिए बाहर निकल आई हैं। हम महिलाएं धर्म के आधार पर नागरिकता निर्धारित करने वाले किसी भी कानून को किसी भी कीमत पर लागू नहीं होने देंग।
महिलाओं के इस आंदोलन एक बड़ी खूबी यह भीहै कि इसमें छोटे-छोटे बच्चों के साथ बूढ़ी महिलाओं ने भी मोर्चा संभाल रखा है।
ऐसा नहीं है कि दिल्ली में ही महिलाएं आंदोलन पर हैं बिहार में पटना सब्जी मंडी में भी महिलाएं बेमियादी धरने पर हैं तो उत्तर प्रदेश में कानपुर और इलाहबाद में बेमियादी धरना चल रहा है। हां वह बात दूसरी है कि इन सबकी प्रेरणा शाहीन बाग धरने से मिल रही है।
चाहे, दिल्ली में शाहीन बाग का धरना हो, खुरेजी का धरना हो या देश के दूसरे शहरों का हर जगह एक ही मांग है कि एनआरसी एनपीआर वापस लिया जाए। यह तब भी हो रहा है कि जब इन महिलाओं को भाजपा ने समझाने के लिए अपने सिपेहसालार लगा रहे हैं।
दिल्ली खुरेजी आंदोलन मेंं 18 वर्षीय छात्रा मरियम बताती हैं, ‘एक दिन मेरी एसएसटी की टीचर ने क्लास में कहा गया कि मुस्लिम लोगों को सीएए एनआरसी का विरोध नहीं करना चाहिए।’
कुछ भी हो देश में मुस्लिम महिलाओं ने अपने हक में जो आवाज बुलंद की है वह देश की दूसरी महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बन रही है।
लेखक CHARAN SINGH RAJPUT से संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.