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सियासत

प्रवचन नहीं दें, शासन करें

अनेहस शाश्वत

बहुत पहले किसी प्रसिद्ध भारतीय अंग्रेजी पत्रिका में एक इंटरव्यू छपा था, जिसमें इन्दिरा गांधी से उनके व्यक्तित्व से संबंधित सवाल पूछे गये थे। वैसा बेहतरीन इंटरव्यू न तो तब और न ही आज भी किसी हिंदी प्रकाशन में छपना सम्भव है। उसके बहुत से कारण हैं। बहरहाल ये स्यापा फिर कभी। इस इंटरव्यू की खासियत यह थी कि इंदिरा गांधी का पूरा व्यक्तित्व इसमें खुलकर सामने आया था। पूछने वाले की खूबी यह कि उसने ऐसे सवाल बनाए और इंदिरा गांधी का बड़प्पन ये कि उन्होंने सवालों के बेबाक और ईमानदार जवाब दिये। इन्दिरा गांधी से एक सवाल था कि जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी में बतौर प्रधानमंत्री क्या सबसे बड़ा अंतर है? थोड़ी विनोदी मुद्रा में इन्दिरा गांधी का जवाब था मेरे पिता संत थे और मैं राजनीतिज्ञ हूं। कितनी सच बात कही थी इंदिरा गांधी ने। नेहरू की मौत के जिम्मेदार माने जाने वाले चीन के चेयरमैन माओ-त्से-तुंग तब रुआंसे हो गए जब इंदिरा गांधी ने सिक्किम को हिन्दुस्तान का हिस्सा बना लिया। उस समय चीन सिक्किम पर कब्जा कर उत्तर पूर्व के राज्यों को अस्थिर बनाने की रणनीति पर काम कर रहा था कि इंदिरा गांधी ने बाजी पलट दी थी।

अनेहस शाश्वत

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बहुत पहले किसी प्रसिद्ध भारतीय अंग्रेजी पत्रिका में एक इंटरव्यू छपा था, जिसमें इन्दिरा गांधी से उनके व्यक्तित्व से संबंधित सवाल पूछे गये थे। वैसा बेहतरीन इंटरव्यू न तो तब और न ही आज भी किसी हिंदी प्रकाशन में छपना सम्भव है। उसके बहुत से कारण हैं। बहरहाल ये स्यापा फिर कभी। इस इंटरव्यू की खासियत यह थी कि इंदिरा गांधी का पूरा व्यक्तित्व इसमें खुलकर सामने आया था। पूछने वाले की खूबी यह कि उसने ऐसे सवाल बनाए और इंदिरा गांधी का बड़प्पन ये कि उन्होंने सवालों के बेबाक और ईमानदार जवाब दिये। इन्दिरा गांधी से एक सवाल था कि जवाहर लाल नेहरू और इन्दिरा गांधी में बतौर प्रधानमंत्री क्या सबसे बड़ा अंतर है? थोड़ी विनोदी मुद्रा में इन्दिरा गांधी का जवाब था मेरे पिता संत थे और मैं राजनीतिज्ञ हूं। कितनी सच बात कही थी इंदिरा गांधी ने। नेहरू की मौत के जिम्मेदार माने जाने वाले चीन के चेयरमैन माओ-त्से-तुंग तब रुआंसे हो गए जब इंदिरा गांधी ने सिक्किम को हिन्दुस्तान का हिस्सा बना लिया। उस समय चीन सिक्किम पर कब्जा कर उत्तर पूर्व के राज्यों को अस्थिर बनाने की रणनीति पर काम कर रहा था कि इंदिरा गांधी ने बाजी पलट दी थी।

इंदिरा गांधी की हत्या हुए आज 25 साल में ज्यादा अरसा बीत गया है। ऐसे में सवाल आता है कि आज की तारीख में उनके बारे में क्यों बात की जाए? तो इस बात का जवाब है कि आज शायद इंदिरा गांधी अपने समय से भी ज्यादा प्रासंगिक हैं। जवाहरलाल नेहरू की मौत के समय सयाने लोगों को याद होगा कि स्वप्न भंग सरीखी स्थिति थी। सारे आदर्श हवा-हवाई हो चुके थे और हिन्दुस्तान अनाज की बेहद कमी होने से भुखमरी के कगार पर खड़ा एक पराजित और पस्तहिम्मत मुल्क था, जो दूसरे देषों की दया और मदद का मुहताज था और अंतरराष्ट्रीय राजनय में उसकी हैसियत पाकिस्तान से भी गई-बीती थी।

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इन हालात की वजहें बहुत सी थीं लेकिन एक प्रमुख वजह नेहरू जी के कई मुद्दों पर हवा-हवाई आदर्श भी थे। ये आदर्श संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठकों में भाषणों के लिहाज से तो ठीक थे लेकिन खांटी राजनय में ऐसे आदर्श बेकार थे खास कर तब जब पड़ोस में चीन और पाकिस्तान सरीखे राष्ट्र हैं। बहरहाल नेहरू के बाद आये लाल बहादुर शास्त्री ने बीमार राष्ट्र के मर्ज को समझा और नब्ज को पकड़ लिया, लेकिन दुर्भाग्यवश वे उसी समय काल-कवलित हो गए। उसके बाद कांग्रेसियों के प्रखर विरोध के बीच इंदिरा गांधी ने तमिलनाडु के वरिष्ठ नेता कामराज नाडार के समर्थन से सत्ता संभाली। ये बात है सन् 1966 की और मात्र आठ साल बाद 1974 में परमाणु विस्फोट कर इंदिरा गांधी ने भारत को दयनीय राष्ट्र से ईष्या करने योग्य राष्ट्र के तौर पर स्थापित कर लिया।

जितनी भी समस्याएं इंदिरा गांधी को विरासत में मिलीं उनमें से ज्यादातर का हल उन्होंने राष्ट्रहित में खांटी राजनेता के तौर पर किया। कोई बनावटी आदर्श, कोई बहाना, कोई दिखावा और कोई झूठ नहीं। इसका सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण उदाहरण है, सन 1971 की पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई जिसके परिणाम स्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ। जब बांग्लादेश भी पाकिस्तान का हिस्सा हुआ तब लड़ाई के दौरान पाकिस्तान पूर्वी और पश्चिमी समीओं पर एक साथ हमला करता था। इससे संकट और जटिल होता था। बांग्लादेश बनवा कर न केवल इंदिरा जी ने पूर्वी सीमा को सुरक्षित किया बल्कि धर्म के आधार पर दो राष्ट्र के सिद्धांत की कमर भी तोड़ दी। नतीजे में आज पाकिस्तान की पहचान पर ही सवालिया निशान लग गया है और अमरीका के भारी समर्थन के बावजूद उसे एक असफल राष्ट्र की संज्ञा दी जाने लगी है।

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हरित क्रांति इंदिरा गांधी की ऐसी ही दूसरी उपलब्धि है जिसकी शुरुआत लाल बहादुर शास्त्री ने की, लेकिन उसे परवान इंदिरा गांधी ने चढ़ाया। नतीजे में आज किसानों की लाख दुर्दशा के बावजूद भारत के अन्न कोठार जरूरत से ज्यादा भरे हैं। इन्दिरा गांधी की उपलब्धियों की संख्या बहुत हैं। शीत युद्ध के दिनों में जब भारत एक निर्धन एवं कमजोर राष्ट्र था, रूस के साथ संधि कर इंदिरा गांधी ने न केवल अमरीका का घमंड तोड़ा वरन पाकिस्तान मुद्दे पर उसे झुकने के लिए विवश किया। आज समर्थ भारत के साथ के लिए अमरीका लालायित है, तब ऐसा नहीं था। इंदिरा गांधी की मृत्यु के साथ ही षायद यह कहना उचित होगा कि स्वतंत्र भारत के अब तक एक मात्र खांटी और घाघ राजनीतिज्ञ का निधन हो गया। जिनका असर आज तक भारतीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर साफ दिखाई देता है।

उनके बाद से आज तक के दौर में अकुशल, बड़बोले, हवाई बातें कहने वाले और अक्षम लोग सत्ता पर काबिज हैं। एक मात्र अपवाद प्रधानमंत्री नरसिंह राव हैं और राजीव गांधी को राजनीतिज्ञ कहने का कोई तुक नहीं, क्योंकि वे एक भले आदमी थे जो अपनी माता की स्त्रियोचित महत्वाकांक्षा का शिकार हुए। आज की वास्तविकता यह है कि हमारे देश की समस्याओं के मद्देनजर ठोस समाधान किसी भी राजनैतिक नेता के पास नहीं है। इसीलिए हवाई बातें, बड़बोलेपन, झूठ और गाली-गलौच का बोलबाला है। इसके लिए सिर्फ एक नजीर पर्याप्त होगी। विश्व की स्वयंघोषित महाशक्ति भारत के बनाये एक भी ब्रांड की अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोई पहचान नहीं है। इसलिए निवेदन है कि राजनीतिज्ञ शासक बनें। बड़ा बोलने, प्रवचन करने और आत्ममुग्धता से परहेज करें तो राष्ट्रहित में शायद बेहतर होगा।

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लेखक अनेहस शाश्वत उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार हैं. उनसे संपर्क 9453633502 के जरिए किया जा सकता है.

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0 Comments

  1. amit

    July 22, 2016 at 11:54 am

    no whatsapp par show nahi ho rha hain

  2. Ajeykumar www.jpnnews.in

    July 23, 2016 at 5:12 am

    pls add my mobile no 9969191363 in your brodcast group

    thanks
    regards
    ajeykumar

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