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सुख-दुख

साढ़े चार घंटे लाइन में लगे दिल्ली के इन पत्रकारों को नहीं मिला कैश

Shashi Bhooshan Dwivedi : करीब तीन सौ की लाइन थी। मैं और ‘हिंदुस्तान’ के ही अतुल कुमार भी लाइन में लगे थे, सुबह नौ – साढ़े नौ से ही। मैंने सुबह अरुण कुमार जेमिनी को भी फोन किया। वे भी आने वाले थे। जाने क्यों नहीं आए। अतुल ने बताया कि वे तो तीन दिन से ही लाइन में लग रहे हैं और जब तक गेट तक पहुँचते हैं या तो कैश खत्म हो जाता है या शटर डाउन। आज भी यही हुआ। साढ़े चार बजे तक हम दोनों गेट तक पहुँच गए और बैंक बंद।

<p>Shashi Bhooshan Dwivedi : करीब तीन सौ की लाइन थी। मैं और 'हिंदुस्तान' के ही अतुल कुमार भी लाइन में लगे थे, सुबह नौ - साढ़े नौ से ही। मैंने सुबह अरुण कुमार जेमिनी को भी फोन किया। वे भी आने वाले थे। जाने क्यों नहीं आए। अतुल ने बताया कि वे तो तीन दिन से ही लाइन में लग रहे हैं और जब तक गेट तक पहुँचते हैं या तो कैश खत्म हो जाता है या शटर डाउन। आज भी यही हुआ। साढ़े चार बजे तक हम दोनों गेट तक पहुँच गए और बैंक बंद।</p>

Shashi Bhooshan Dwivedi : करीब तीन सौ की लाइन थी। मैं और ‘हिंदुस्तान’ के ही अतुल कुमार भी लाइन में लगे थे, सुबह नौ – साढ़े नौ से ही। मैंने सुबह अरुण कुमार जेमिनी को भी फोन किया। वे भी आने वाले थे। जाने क्यों नहीं आए। अतुल ने बताया कि वे तो तीन दिन से ही लाइन में लग रहे हैं और जब तक गेट तक पहुँचते हैं या तो कैश खत्म हो जाता है या शटर डाउन। आज भी यही हुआ। साढ़े चार बजे तक हम दोनों गेट तक पहुँच गए और बैंक बंद।

अतुल स्वभाव से शांत हैं। हंसते हुए वापस आने लगे। एक दो बार उम्मीद में वापस भी लौटे मगर कोई लाभ नहीं था। मेरा मन कर रहा था कि तोड़ डालो फोड़ डालो। पैसे हैं नहीं, भाड़ में गई दुनियादारी। मगर अतुल मुझे लौटा लाए। फिर भी अपनी बेचैन आदत के मुताबिक मैंने इधर उधर पता किया। पता चला कि सरकारी बैंकों में इससे ज्यादा भीड़ थी और उन्होंने सबको समय पर निपटा दिया।

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लौटकर मैंने अपना थोड़ा पैसा इलाहाबाद बैंक में ट्रांसफर किया। घर के पास है। सुबह जल्दी लाइन में भी लग सकता हूँ। अब रोज कनॉट प्लेस जाना अपने बस का तो है नहीं, न इतनी छुट्टियां हैं। फिलहाल मैं अतुल के धैर्य का प्रशंसक हूँ जो कल फिर सुबह सात बजे लाइन में खड़ा मिलेगा।

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और आखिरकार चेक से भी पैसा नहीं मिला। सारा दिन लाइन में रहने के बावजूद। यह कनॉटप्लेस के सिटी बैंक का हाल है। पैसा आपके पास है और आप भिखारी हैं। अब तक मुझे भी चीज़ें अतिशयोक्ति पूर्ण लगती थीं। आज खुद भोगा है। यकीनन यह आपातकाल है।

कादंबिनी मैग्जीन में कार्यरत पत्रकार शशि भूषण द्विवेदी की एफबी वॉल से.

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0 Comments

  1. ss

    November 18, 2016 at 6:50 pm

    Aisa lagta hai ki aap sabhi patrakar bhi Modi ke karyon ki ninda kar rahey hain. Maine to Notebandi ke teesre aur chhatthey din bhi Rupaye nikala. 3rd day dedh ghante lage aur 6th day to 40 minutes me hi apney rupaye nikal kar wapas apney ghar chal diya.
    Kya aap NDTV ki tarah Modi ke against hain? Jo itna kuch “Bhram” faila rahey hain Pathakon ke beech. Hum Bhadas ke pathak sab jante hain, kaun kitney paani me hai…

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