Pravin Bagi : पत्रकारों की नौकरी का कोई ठिकाना नहीं रहता। आज है कल नहीं। मशहूर पत्रकार मणिकांत ठाकुर जी ने इसी अनिश्चितता से ऊब कर एक बार पत्रकारिता से तौबा कर लिया था और फ़ास्ट फूड की दुकान खोल ली थी। हालांकि कुछ समय बाद वे फिर पत्रकारिता की दुनिया में लौट आये अभी भी बने हुए हैं।
ठीक इसी तर्ज पर दो युवा पत्रकारों शशि उत्तम और उमेश कुमार ने पत्रकारिता से तौबा कर पटना में एक रेस्टोरेंट खोल लिया है। शशि हिंदुस्तान, पटना में फोटो जर्नलिस्ट थे और उमेश इंडिया TV के लिए दानापुर से काम करते थे। परिस्थितियां ऐसी बनी की दोनों की नौकरी नहीं रही। दोनों सड़क पर, बेरोजगार। कहाँ जायें, क्या करें? हज़ार लोग- हज़ार सुझाव।
फिर कुछ मित्र मिले और पत्रकारों के लिए सस्ते दर पर कैंटीन खोलने का सुझाव दिया। पत्रकारिता में बेरोजगारी का दंश झेल चुके संजय वर्मा और बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव प्रेम उनके सहयोग में आगे आये। प्रेम जी ने पटना के मंदिरी स्थित यूनियन की खाली पड़ी जमीन का एक कोना शशि और उमेश को उपलब्ध कराया। संजय जी ने हौसले के साथ कुछ संसाधन जोड़े और पटनिया फूड सह पत्रकार कैंटीन शुरू हो गया। पत्रकारों के लिए 95 रुपये में दो पीस मटन और चावल तथा 30 रुपये में शाकाहारी भोजन की व्यवस्था है। अन्य लोग भी वहां भोजन कर सकते हैं, पर उनके लिए रेट अलग है।
शशि और उमेश की हौसला अफजाई के लिए आज कन्हैया भेलारी और सरोज सिंह के साथ मैंने भी कैंटीन का स्वाद चखा। वाकई लाजवाब था।
इन दोनों ने हमें एक नई राह दिखाई है। नौकरी जाये तो निराश होने की जरूरत नहीं है। एक रास्ता बंद होता है तो हज़ार नए खुल जाते हैं। टूटने और झुकने के बजाए कोई नया रास्ता खोलें। कठिन है, पर असंभव नहीं। शशि और उमेश को बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं। संजय और प्रेम भी साधुवाद के पात्र है। आप भी उनका हौसला बढायें।
बिहार के वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी की एफबी वॉल से.
Vikash gupta
July 17, 2019 at 10:42 pm
शानदार, बहोत जबरदस्त