शशि शेखर ने हिंदुस्तान को गर्त में डुबोने के एक बडे़ रोडमैप के तहत हिंदुस्तान का कार्यालय एचटी बिल्डिंग कनाट प्लेस से नोएडा के सैक्टर 63 में सूनसान तबेले जैसे इलाके में पहुंचा दिया। यहां आकर शशिशेखर व उनके दो- तीन तलवे चाटने वालों को छोड़कर सभी परेशान हैं। कुछ ही माह पहले हिंदुस्तान के साथ ही एचटी अंग्रेजी के पूरी संपादकीय टीम को नोएडा भेजने का फरमान जारी हुआ था लेकिन एचटी इंग्लिश स्टाफ ने एक जुट होकर शोभना भरतिया के मैनेजरों को आंखे दिखाई और सामूहिक इस्तीफों की चेतावनी दी तो उन्हे नोएडा भेजने का फैसला वापस ले लिया गया।
लेकिन हिंदी हिंदुस्तान में जब शशि शेखर जैसा शोभना भरतिया के मैनेजरों की गुलामी करने वाला संपादक बैठा हो तो मुखालफत करता भी कौन। शशि शेखर ने हिंदी हिंदुस्तान में काम करने वाले सभी वाले बेजुबान लोगों को जानवरों की तरह हांककर नोएडा ले जाने का ठेका ले लिया। इस कदम से सबसे ज्यादा वे लोग परेशान हैं जिनके लिए नौएडा पहुंचने में तीन- तीन हावर्स लग जाते हैं। नोएडा में संपादकीय विभाग के बैठने की व्यवस्था को इस ढंग से शक्ल दी गई है जैसे कि यह जगह सुकून व स्वतंत्रता से काम करने वाले पत्रकारों के लिए नहीं बल्कि गुलामों को काला पानी की सजा हो।
शीशे के भीतर केबिन से हॉल में हर किसी पर शशि शेखर व उनके दरवारियों की कड़ी निगाहें रहती है। अलग से खुफिया कैमरों के जरिए पता लगाया जाता है कि कौन किससे गप करता है। चमचों को छोड़कर जिनका कोई मायबाप नहीं है, उनकी शामत है। आए दिन जूनियर स्टाफ की टेबिल पर जाकर रैगिंग के अंदाज में हड़काना और जो सामने पड़े उसकी बेइज्जती किए बिना शशिशेखर को चैन नहीं पड़ता। हर टेबिल पर अपने कुछ चमचों से स्टाफ की जासूसी करवाने से शशि शेखर बाज नही आते। यानी कौन किससे बात कर रहा है इसका हिसाब रखना और स्टाफ को पूरे आठ हावर्स अपनी सीट से न हिलने देने के शशि शेखर के आदेश से संपादकीय टीम के सिर से पानी गुजर रहा है। अगर किसी अखबार का संपादक ही खुद इतनी ओछी हरकतें अपने साथ काम करने वाले कामगारों के साथ करता है तो फिर हिंदी पत्रकारिता के इससे और बुरे दिन क्या हो सकते हैं। कहा जाता है कि आज हिंदी में कोई स्वाभीमानी व आदर्श संपादक इसीलिए नहीं है कि उनकी जगह शशि शेखर जैसे बात बात पर गुंडई व मां बहिन की गाली से बात करने वाले तथाकथित संपादकों ने ले ली है। काश हिंदी दिवस पर हिंदी पत्रकारिता के अवमूल्यन करने वाले तथाकथित सपादकों के आचरण पर भी सार्वजनिक बहस होती।
एक पत्रकार द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
chanchal singh
September 19, 2014 at 9:59 am
sarm aatai hai aase patrakarita kaene walo par, jo gali khakar bhi kam karte hai. gali dete samay do kan ke niche baja do aakbar dobara kabhi bhi kisi ko gali nahi dege sampadak, sahi kaha na maine.
sanjib
September 19, 2014 at 8:50 pm
Hindi Patrakaron par sharm aa rahi hai. English Reporters/sub-editors aaj bhi apni garima banaye hue hain.. Dekha, kaise Shashi Shekar ko “Haank” Diya!! Hindi walon mein wo “Kuwwat” hi nahin hai… Sirf “Chamchai” karney mein lagey raho bhaiyon aur apni Asmita ko Taak par rakh kar kaam karo… Ab jab chaley hi gaye Noida, to phir khud ko Hankwao Unn Tuchchey “Chamchon aur Shashi Shekhar” se. Rone-dhone se kya faida…
sumit
September 20, 2014 at 12:16 am
ऐसा इसलिए होता है क्योंकि हममे एकता नहीं है। एच टी अंग्रजी वाले एकजुट हुए और अपनी जगह पर हैं। हम लोग ही ऐसे लोगो को बढ़ावा देते हैं इसलिए उनके हौसले बुलंद होते हैं। और स्तिथि बद से बदतर होती चली जाती है। ये भाई साहब अपने कैरियर की अंतिम पायेदान पर हैं इसलिए ऐसे उलटे सीधे काम करके मैनेजमेंट और मालिकों की नज़र में अचे बने रहना च्चाहते हैं और नौकरी बचाए रखना चाहते हैं। ये उनके अन्दर का डर है। गलत होने पर एकजुट हों तभी समाधान संभव है। और मैनेजमेंट जो समस्या से वाकिफ करवाए। वो भी एक इन्सान के खातिर पुरे स्टाफ का इस्तीफा मंजूर नहीं करेगा।
ankush
September 20, 2014 at 9:58 am
मारो बहुगुणा के साले इस सुपुत्र को दो भीगी पनही
ankush
September 20, 2014 at 10:00 am
अरे बहुगुणा की नाजायज औलाद है ये
dharm vir singh
September 20, 2014 at 5:07 pm
आप की बातों से मै भी सहमत हूँ कि शशि शेखर को आम आदमी से कोई मतलब नहीं है