अयोध्या के पिच पर सेमीफाइनल का उत्साह बना हुआ है। राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद पर बड़ा फैसला आते ही भारत का कद और भी बड़ा हो जायेगा। विवाद खत्म हो जायेगा। सियासत के बाजार में भावनाएं बेची जाने की सबसे बड़ी दुकान बंद हो जायेगी।
हम साबित करेंगे कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में न्यायिक फैसले का किस कद्र सम्मान किया जाता है। हम दुनिया को बता देंगे कि धर्मनिरपेक्ष भारत में अखंडता, समरसता, सौहार्द, एकता-भाईचारे और गंगा जमुनी तहजीब को कोई भी ताकत चुनौती नहीं दे सकती।
भारतीय समाज का हर तब्क़ा मंदिर-मस्जिद विवाद को खत्म करने वाले एतिहासिक और बहु प्रत्यक्षित का स्वागत करने को तैयार है। एक सप्ताह के दौरान सामने आने वाले इस फैसले को लेकर उत्साह जरूर है लेकिन गर्मागर्मी, गरमाहट या तनाव नहीं है।
लग रहा हैं कि हम बदल गये हैं। सुधर गये हैं। कट्टरता और संकीर्णता की बर्फ पिघल रही है। नये भारत की नयी सोच आशा की किरण दिखा रही है। नये निज़ाम में कट्टरपंथियों की कट्टरटा भी नर्म पड़ गयी है। नफरतों के हौसले पस्त हो गये हैं। फिरकापरस ताकतें दुबक कर कहीं छिप गयीं है।
बड़े फैसले की बेला पर लग रहा है कि नये भारत का निजाम लाजवाब हो गया है। इनदिनों शांति और सौहार्द की अपीलों से देश गूंज रहा है।
कुल मिलाकर हम भारतीय अमन चैन से जियो और जीने दो के सिद्धांत पर अमल कर रहे हैं। रही बात भारत विरोधी आतंकी ताकतों की, तो इनसे हमारी कुशल सरकार निपट लेगी। लेकिन डर बस एक ही बात का है। हमें लश्करे तैयबा से नहीं बल्कि ‘लश्करे नोएडा’ से डर लगता हैं। इनसे ही हमें सावधान रहना हैं। नफरत फैलाने और माहौल खराब करने के लिए ये आमादा हैं।
लगता है कि सौहार्द बिगाड़ने की इन्होंने सुपारी ली है। बढ़ते न्यूज़ चैनलों ने पत्रकारिता को सबसे बुरे दौर पर ला कर खड़ा कर दिया है। जमीनी रिपोर्टिंग का स्थान टीवी डिबेट ने ली लिया है। हिंदू-मुस्लिम के अखाड़ानुमा डिबेट का संचालन एक एंकर करता है। जो एंकर/पत्रकार सबसे ज्यादा नफरत फैलाने में माहिर साबित होता है टेलीविजन के बाजार में वो सबसे बड़ा ब्रांड बन जाता है।
टीवी पैनल पर मजहबी नफरत और तू-तुकार करके भारतीय समाज के बीच फासले पैदा करने की साजिशें नई नहीं है। लेकिन आज जब अयोध्या मसले पर फैसला आने को लेकर शांति और सौहार्द की अपीलें की जा रही हैं तो ऐसे में नफरती टीवी चैनलों से भी सावधान रहने की जरूरत है।
कुछ वर्षों से टीवी मीडिया ने मीडिया को बेहद बदनाम किया है। खासकर हिंदी मीडिया को नफरत के सौदागरों ने अपना सशक्त हथियार बनाया है। उत्तर भारत में हिंदी टेलीविजन मीडिया का गढ़ यूपी का नोएडा है। यहां अधिकांश चैनलों का केंद्रीय कार्यालय/मुख्य स्टूडियो हैं। यही ख़ूबार एंकरों का लश्कर है जो यहां से ये नफरत की आग लगाते है। इसलिए बड़ा फैसला आने से पहले ही हम ये बड़ा फैसला करें कि ‘लश्करे नोएडा” से हमें सावधान रहना है !
लेखक नवेद शिकोह लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार हैं.