Abhishek Srivastava : जिस दिन शाज़ी ज़मा से एबीपी न्यूज़ की संपादकी छीने जाने की ख़बर आई उसी दिन यह लग गया था कि बीजेपी सिर्फ लोकसभा में मिले बहुमत का न्यूज़ रूम तक विस्तार करेगी। आगे के अभियानों के लिए उसे हर न्यूज़ चैनल में सुधीर चौधरियों, दीपक चौरसियाओं, उमेश उपाध्यायों, राहुल कंवलों, अर्णव गोस्वामियों और अमीष देवगनों की जरूरत है। शाज़ी का प्रगतिशील होना, उस पर से मुसलमान होना, लंबे समय से बीजेपी और संघ को खल रहा था। आनंद बाज़ार पत्रिका समूह में अवीक सरकार के हाथ से असित सरकार के हाथ में आई सत्ता को सबसे पहले बीजेपी सरकार ने समझा।
टीआरपी के बहाने पहली ही फुर्सत में शाजी जमा को संपादकीय जिम्मेदारियों से बेदखल करवाया और उनकी जगह राज ठाकरे के हमदर्द मिलिंद खांडेकर को आसन करवा दिया। मिलिंद खांडेकर टीआरपी के मास्टर कभी नहीं रहे लेकिन उनकी ताजपोशी करवा के यह संदेश दे दिया गया है कि टीवी चैनलों को अब बीजेपी के क्यूरेटर चलाएंगे। टीवी के अनाड़ी राजकिशोर जैसे बीजेपी कार्यकर्ता को पॉलिटिकल एडिटर बनाया जाना इसी संदेश का हिस्सा है।
समाचार चैनलों की राजनीति को समझने के लिए जानना जरूरी है कि आखिर किस तरह सुपारी संपादकों ने बीजेपी के सामने सरेंडर कर दिया और टीवी पर डेढ़ लाख दलितों की सभा ‘अछूत’ हो गई। जंतर-मंतर पर डोनल्ड ट्रंप की फोटो को केक खिलाकर बर्थडे मनाने के कुल बीस संघी लफंगों के जुटान को प्राइम टाइम खबर बना देने वाले संपादकों को मुंबई में डेढ़ लाख लोगों की उमड़े दलितों का सैलाब नज़र ही नहीं आया। दादर के ऐतिहासिक अंबेडकर भवन पर बुलडोज़र चलाने के खिलाफ डेढ़ लाख से ज्यादा लोगों का इकट्ठा हो जाना टीवी के संपादकों के लिए खबर ही नहीं थी।
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अंजना ओम कश्यप ने ग़ाजीपुर से शो किया। मनोज सिन्हा, हामिद अंसारी और मुख्तार अंसारी को ग़ाज़ीपुर की पहचान बताया, लेकिन अपने चैनल और टीवी मीडिया के प्रात: स्मरणीय पुरोधा एसपी सिंह का नाम लेना भूल गईं जो इसी जिले के थे। बहरहाल, प्रोग्राम पूरा देखने की खास ज़रूरत नहीं, केवल 2 मिनट 20 सेकंड पर आने वाली यह बाइट ज़रूर जान लें जो कि इस जि़ले से निकलने वाली सियासत की बॉटमलाइन है: ”ग़ाज़ीपुर हिंदुस्तान का इकलौता जि़ला है जहां दसचकवा ट्रक पलट जाता है।”
युवा मीडिया विश्लेषक अभिषेक श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
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rajk
July 24, 2016 at 2:49 pm
क्या मुसलमान-मुसलमान रोते रहते हो…!