फेसबुक पर आज एक पोस्ट मेरे एक अज़ीज़ मित्र ने डाली जिसमें लखनऊ में अभी हाल ही में हुए एक प्रदर्शन और उसमें पुलिस के बल प्रदर्शन पर हो रहे सार्वजनीन सियापे के विपरीत एक पुलिस अधिकारी पर हो रही लाठीबाजी का विवरण दिया था. मैं इसी विभाग से आता हूँ और मुझे इसमें होने का गर्व है….जब कभी इस तरह के रूदाली सियापे और लांछनों का बलगम पुलिस पर थूका जाता है तो मन को तकलीफ होती है….पुलिस आन्तरिक व्यवस्था का एक महत्वपूर्ण कारक है. प्रदेश की जनसँख्या के सापेक्ष केवल ७४ पुलिस अधिकारी (जिनमें सभी वर्ग शामिल हैं) १ लाख जनता पर उपलब्ध हैं. इस बारे में राष्ट्रीय मानक प्रति लाख १३० पुलिस मैन है, जबकि हमारे पड़ोसी कई देश इस मामले में हमसे बहुत आगे हैं. जाहिर है कि हम अपनी जनता की सुरक्षा हेतु दिए गए निम्नतम मानक से भी काफी पीछे हैं.
उ.प्र. पुलिस विश्व की सबसे बड़ी फ़ोर्स है जो आन्तरिक सुरक्षा में लगी है . जिसमे इतनी जगह पुलिस की आवश्यकता होती है की जन सुरक्षा व पुलिसिंग के लिए मानक में और भी कमी हो जाति है , जिस पुलिस को जनता के लोग दिन रात पानी पी पी के कोसते हैं, वह आपकी सुरक्षा के लिए लगभग २४ घंटों में से १४,१५ घंटे कार्य करती है जो उसके दायित्व का हिस्सा माना जाता है..सरकारी विभागों के साथ साथ निजी कम्पनियों के अधिकारी प्रातः उठ कर ईश्वर से अपने परिवार की सुरक्षा मांगते हैं , जबकि एक थाना प्रभारी अपने ईश्वर से यह मांगता है कि भगवन आज कोई दंगा कोई क़त्ल , कोई लूट न हो उसके क्षेत्र में सब कुछ शांत रहे…..यह कार्य प्रतिदिन उन भवनों के अधिष्ठाता भी नहीं करते जो मानवता की अलौकिक सुरक्षा व धर्म के निमित्त माने जाते हैं, फिर भी हम निकृष्ट हैं…
पुलिस को लोग एक सर्वशक्ति संपन्न बल मानते हैं पर यह सरकारी विभागों में सबसे निम्नस्तर का सम्मान पाने वाला विभाग है. चाहे कोई स्कूल हो , वक़ीलों का समूह हो , हस्पताल हो , रेल हो , डाक खाना हो , नगर निगम हो और बाकि ऊँचे दफ्तरों की तो बात ही मत करिए हर जगह ये जय हिन्द करते ही मिलेंगे… हर वह समूह जो मुखर है पुलिस पर भारी है..अब आइये पुलिस की उन बदकारियों की बात करें जिनको लेकर पुलिस हमेशा कठ्घरे में रहती है , वह है पुलिस का व्यवहार , यह जो व्यव्हार है न यह पुलिस की किसी प्रयोगशाला में नहीं सिखाया जाता है , न ही गलियों का प्रशिक्षण दिया जाता है. आप जो कच्चा माल इस विभाग को देते हैं वही आपके लिए लगा दिया जाता है…मेरे चार भाई हैं और चारों ने एक सी परवरिश पाई है , पर एक से परिवेश में सांस ली है एक ही वंशानुक्रम में विकसित हुए हैं पर अगर मै विचार करू कि दीवार घडी किस जगह लगनी है तो सारे एक मत नहीं होंगे, फिर पुलिस तो १.३५-१.४० लाख माता पिता की संतान हैं उनसे हम कैसे यह अपेक्षा करते हैं कि वे शिक्षण के दौरान बताई गयी बातों को वैसे ही ग्रहण करेंगे जैसे एक ने किया है या प्रशिक्षण कार्यक्रम बनाने वाले ने सोच कर बनाया है…
पुलिस आपकी सुरक्षा में लग कर कार्य करती है तो कुछ गलती भी होती हैं , या तो अनजाने में और या फिर अहमन्यता के चलते , अनजाने की गलती को उदारता पूर्वक माफ़ करना सीखिए और अहमन्यता के कारण हुई गलती का प्रतिकार करिए और वही दंड निश्चित करें जो गलती के सापेक्ष है . मुर्गी के चोर को फांसी का दंड मत दीजिये . मै जानता हूँ और इस विश्वास पर खूब अडिग हूँ कि ज्यादातर पुलिस वाले काम करना चाहते हैं कुछ बुरे भी हो सकते हैं पर वे तो हमारे परिवार में भी होते हैं. क्या परिवार को हम छोड़ देते हैं…नहीं न…फिर पुलिस ही क्यों ????
निर्भया के साथ मरे सिपाही सुभाष चंद हों या संसद पर हुए हमले में मारे गए सिपाही हों उन्होंने अपने प्राणों को इसलिए उत्सर्ग किया कि आप और आपके छोटे छोटे बच्चों की मुस्कराहट बनी रहे , आपको बताता चलूँ की प्रति वर्ष देश की आन्तरिक सुरक्षा में वलिदान होने वाले कर्मियों में सबसे अधिक उ. प्र. पुलिस के होते हैं. जब किसी पुलिस वाले की मौत होती है तो उसके घरों तक भी वर्षों तक त्यौहार नहीं आते, उसके बच्चे सालों तक नहीं मुस्कराते हैं, उसकी पत्नी अपनी फटी धोती के नीचे अपनी अस्मत को बचाने का वही उपक्रम करती है जो गजोधर की बीवी ऐसी स्थिति में करती है…उसकी आंख की कोरो पर भी विछोह के आंसू हमेशा टंगे रहते हैं. भूखे बच्चों को गोद में समेटे वोह भी पूरी रात घर के सन्नाटे को अपनी सिसकियों से तोडती है……हमें भी इंसान मानिये हम में भी भावनाएं हैं , ख़ुशी के समय हम हँसते हैं , दुःख हमें भी रुलाते हैं….और रोते समय हम क़ाला चश्मा नहीं पहनते कि हिल्कियों से उबलते आंसू हमारे अभिजात्य को न भिगो दें…..हम सनसनी नहीं हैं……
लेखक शील कुमार यूपी पुलिस में डिप्टी एसपी हैं. उनका यह लिखा उनके फेसबुक वॉल से साभार लिया गया है.
jashpal
July 2, 2014 at 7:33 am
वाह खूब मस्त लिखते हो चलो कम से कम ये पढ़कर तो पता चला कि यूपी की पुलिस बेगुनाहों के साथ सादगी दिखाती है…वरना मेने तो पुलिस वालों को खुद कहते हुए सुना है कि पैसे दो वरना तंचा या अफीम लगा कर जेल भेज देंगे सड़ते रहोगे…
शमीम इकबाल
July 2, 2014 at 9:24 am
पुलिस वालो की दिकाते समझ में आती है /पर पीड़ित को ही परेशान करना कैसे सही है आमतौर से ज्यादातर वर्दी के घमंड में उल्टा सीधा करते है /इस की वजह पुलिस को लगता है वो जो लिखते है वहीसही आखिर पुलिस जाच पर इतना भरोसा क्यों
Ajay ptrakar
July 3, 2014 at 4:43 pm
sheel ji . i agree with your good voews . it is fully fact. no doubt