Mukesh Kumar : वरिष्ठ पत्रकार शेखर गुप्ता की पीटर मुखर्जी, स्टार की सीईओ रह चुकी रवीना राज कोहली और स्टार टीवी के बारे में टिप्पणी पढ़ने योग्य है। ये अंश अख़बारों में प्रकाशित लेख से लिए गए हैं-
‘वे गंभीर, वरिष्ठ भारतीय संपादकों में से ‘सितारे’ इकट्ठा करना चाहते थे। सारे अंग्रेजी दुनिया से पर उन्हें पेश होना था उनके हिंदी चैनल पर। मेरे सामने इंटरव्यू आधारित कार्यक्रम ‘शेखर के शिखर’ की पेशकश रखी गई। उनके राडार पर अन्य दो अंग्रेजी के संपादक थे एमजे अकबर और वीर संघवी, जिनके सामने जैसा कि अनुमान था क्रमश: ‘अकबर का दरबार’ और ‘वीर के तीर’ का प्रस्ताव रखा गया। मैंने कहा कि ये तो बहुत ही साधारण शो लगते हैं। हम उबाऊ संपादकों को इकट्ठा कर ऐसे कार्यक्रम पेश करने का मतलब ही क्या हैं, जो मनोरंजक नज़र आते हैं? मुझे बताया गया कि यह तो ब्रैंडिंग है, ध्यान खींचने के लिए थोड़ा स्तर गिराना पड़ता है। मुझे सलाह दी गई, ‘ग्रो यंगर, शेखर डियर।’ मुझसे यह भी कहा गया कि सुर्खियां, ब्रैंड दर्शकों को आकर्षित करने के लिए यहां-वहां थोड़ी तोड़-मरोड़ कोई सस्तापन नहीं है, बल्कि आवश्यक है। रवीना ने मुझे झिड़की के स्वर में कहा, ‘इसीलिए तो तेरा अखबार नहीं बिकता। हमारे साथ काम शुरू करो और फिर देख तू।’
यहां गौरतलब है कि अपने चैनल को लेकर उनका यह रवैया था और मैं उसमें बेवजह ही शिकार हो रहा था- हालांकि, मैं उस शो के लिए राजी नहीं हुआ (कभी-कभी आप उचित फैसले कर लेते हैं), स्टार न्यूज़ चैनल मेरे स्टाफ में से बहुत ही अच्छे युवा साथियों का समूह लुभाकर ले गया। जल्दी ही चैनल बैठ गया और वे सारे कहीं के नहीं रहे। संभव है भारत अभी उस तरह के सस्तेपन के लिए भी तैयार नहीं है। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि चैनल को अवीक सरकार ने खरीद लिया, जिसे अब एबीपी न्यूज़ कहते हैं। यह बहुत सफल भी है। यह विडंबना ही है कि ‘पिंजरे में परी’ ब्रेकिंग न्यूज एबीपी न्यूज़ पर ही चली थी। अब बारी वित्तीय नियमन माहौल की। मुखर्जी के वेंचर में सबसे बड़ा निवेश जिस फंड ने किया था, उसके कई प्रमुख संस्थापक शेयर बाजार में धोखाधड़ी के आरोप में अमेरिकी जेलों में पहुंच गए। इनमें रजत गुप्ता और राजरत्नम शामिल हैं। अनिल कुमार को प्रोबेशन मिला और कम से कम दो अन्य जांच के घेरे में हैं। इस तरह इसके पहले कि आप कहें कि मुखर्जियों ने निवेशकों को लूटा, यह पूछें कि वित्तीय जगत की ये होशियार शख्सियतें क्या कर रही थीं? मर्डोक का ‘स्टार’ तब बड़ी खुशी से भारतीय नियमन तंत्र से खिलवाड़ कर रहा था। जहां समाचार माध्यमों के विदेशी स्वामित्व पर रोक थी, ये लोग स्वामित्व की कठपुतली रचनाएं और बेनामी बिचौलिए खड़े कर रहे थे।’
वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.
मजीठिया मंच
September 8, 2015 at 5:12 am
लेकिन अफसोस शेखर गुप्ता जैसे मुखर पत्रकार ये सब इतने दिन बाद कह रहे हैं। क्या मीडिया में घपलों और सरकार को चूना लगाने की शुरुआत इसी चैनल ने नहीं की थी। शायद अब किसी को याद हो या न याद हो लेकिन जब दूरदर्शन को करोड़ों को चूना लगा कर उसके बड़े अधिकारी को लाया गया था तब मीडिया में हो हल्ला नहीं मचा था। एनडीटीवी के कर्ताधर्ता के बारे में यहां तक कहा जाता है कि सीबीआई जांच शुरू हुई थी। लेकिन एनडीए सरकार में तत्कालीन आईएंडी बी मंत्री ने मामले को रफा-दफा करा दिया। अब सुनने में हम सबको अटपटा लेगेगा कि एनडीटीवी कहीं वाम झुकाव का चैनल है और उसका एनडीए से साठगांठ …. कुछ पचने वाली बात नहीं है। लेकिन यहीं एनडीटीवी क समय वाजपेयी के कसीदे पढ़ा करता था । आखिर बिना धुआं के आग नहीं लगती। आखिर उस चर्चित दूरदर्शन घोटाले का आजतक कुछ पता नहीं चला। बताते हैं तब दूरदर्शन को करीब पांच करोड़ रुपए का चूना लगाया गया था। आज से कोई 25 साल पहले।