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मजीठिया वेतनमान : पहली बार शीर्ष कोर्ट को असहाय देखा

किताबों में लिखे कानून पढ़कर सुप्रीम कोर्ट की मैं बहुत इज्जत करता था लेकिन सम्मान तब कम हुआ जब मजीठिया वेतनमान की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के जज दो साल लगा दिए फिर भी पत्रकारों को अपेक्षित न्याय नहीं दिला पाए। जबकि आम नागरिकों के मन में भय है कि यदि कोर्ट की अवमानना किए तो जेल ही होगी। वहीं अवमानना अधिनियम में भी लिखा है यदि कारपोरेट घराने न्यायालय की अवमानना करते हैं तो मालिक व संस्थान प्रमुखों को सीधे जेल होगी। मजीठिया वेतनमान की मांग को लेकर लगे कंन्टेप्ट पीटीशन (सिविल) में आज तक पत्रकारों को सही न्याय नहीं मिला।

<p>किताबों में लिखे कानून पढ़कर सुप्रीम कोर्ट की मैं बहुत इज्जत करता था लेकिन सम्मान तब कम हुआ जब मजीठिया वेतनमान की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के जज दो साल लगा दिए फिर भी पत्रकारों को अपेक्षित न्याय नहीं दिला पाए। जबकि आम नागरिकों के मन में भय है कि यदि कोर्ट की अवमानना किए तो जेल ही होगी। वहीं अवमानना अधिनियम में भी लिखा है यदि कारपोरेट घराने न्यायालय की अवमानना करते हैं तो मालिक व संस्थान प्रमुखों को सीधे जेल होगी। मजीठिया वेतनमान की मांग को लेकर लगे कंन्टेप्ट पीटीशन (सिविल) में आज तक पत्रकारों को सही न्याय नहीं मिला।</p>

किताबों में लिखे कानून पढ़कर सुप्रीम कोर्ट की मैं बहुत इज्जत करता था लेकिन सम्मान तब कम हुआ जब मजीठिया वेतनमान की लड़ाई में सुप्रीम कोर्ट के जज दो साल लगा दिए फिर भी पत्रकारों को अपेक्षित न्याय नहीं दिला पाए। जबकि आम नागरिकों के मन में भय है कि यदि कोर्ट की अवमानना किए तो जेल ही होगी। वहीं अवमानना अधिनियम में भी लिखा है यदि कारपोरेट घराने न्यायालय की अवमानना करते हैं तो मालिक व संस्थान प्रमुखों को सीधे जेल होगी। मजीठिया वेतनमान की मांग को लेकर लगे कंन्टेप्ट पीटीशन (सिविल) में आज तक पत्रकारों को सही न्याय नहीं मिला।

नियमानुसार क्या होना था
कानूनों के जानकारों की माने तो सिविल अवमानना में जेल नहीं होती। यह अवमानना इसलिए लगाई जाती है कि कोर्ट स्वयं जांच ले कि उसके आदेश का पालन हुआ या नहीं। क्योंकि अपने ही आदेश को पालन ना करा पाना न्यायालय के साथ जज की अवमानना मानी जाती है और जज को दोषी माना जाता है। कोर्ट की नोटिस के बाद अनावेदक कोई जवाब नहीं देता तो यह माना जाता है कि उसने कोर्ट की अवमानना की, अब उसके पास बोलने को कुछ नहीं है इसलिए मौन है अर्थात् आरोपों पर मौन स्वीकृति है।

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कोर्ट में क्या हुआ
सुप्रीम कोर्ट में लगी सिविल अवमानना कोर्ट के नोटिसों का मालिकों ने कोई जवाब नहीं दिया। और जो जवाब दिए भी वो गोलमाल। चूंकि उक्त मामले में पीडि़त स्वयं बोल रहा है कि मुझे नियमानुसार वेतन नहीं मिला। ऐसे में पीडि़त के बयान, सैलरी स्लीप पर कोर्ट ने भरोसा ना करते हुए श्रम अधिकारी को ज्यादा विश्वसनी माना। अब जो श्रम पदाधिकारी मजीठिया वेतनमान की ठीक से गणना नहीं जानते वे क्या जाने मजीठिया वेतनमान क्या होता है। नतीजन कुछ श्रमपदाधिकारों ने प्रेस मालिकों को नोटिस देकर पूछा कि आप मजीठिया वेतनमान दे रहे हैं। उन्होंने कहा हां हम दे रहे हैं। अब श्रमायुक्तों ने रिपोर्ट भेज दी कि अमुक संस्था कह रहा है कि वह मजीठिया वेतन मान दे रहा है। अब जिस तरह यह केस चल रहा है वह कुछ दिनों बाद यह कहकर बंद कर दिया जा सकता है कि अमुक राज्य के अधिकारी मजीठिया वेतनमान दिलाने का भरोसा दे रहे हैं, और प्रेस मालिकों के खिलाफ अवमानना प्रकरण बंद करने का निवेदन किए हैं इसलिए यह प्रकरण बंद किया जाता है।

राष्ट्रपति से शिकायत हो
चूंकि राष्ट्रपति देश का प्रमुख होता है। और जजों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने का अधिकार होता है। ऐसे में राष्ट्रपति से उक्त जजों की शिकायत करनी चहिए कि इनसे हमें न्याय की उम्मीद नहीं है। कृप्या अन्य जजों से इस केस की सुनवाई कराई जाए। यहां सिर्फ आर्थिक भ्रष्टाचार नहीं हो रहा अपितु। श्रमिकों के मौलिक अधिकारों का भी हनन हो रहा है। कंपनी चलाने का मतलब यह नहीं होता कि आप बैंक से लोन ले लो, फिर श्रमिकों को वेतन भी ना दो, सरकार से अनुदान भी लो, सरकार से हर माह विज्ञापन का भी पैसा लो और श्रमिकों का शोषण भी करो। आखिर आप ऐसा क्या करते हैं कि रातों-रात करोड़पति हो गए और श्रमिक जहां के तहां है। इसलिए जरूरी है कंपनी की हिस्सेदारी (शेयर) में मजदूरों को भी सहभागी बनाया जाए। तभी आर्थिक समानता आएंगी। नहीं तो विदेशी कंपनियां हमारे बैंकों में रखे पैसे को लोन के रूप में लेगी। मजदूरों को वेतन भी आधा-अधूरा देगी और विदेश भाग जाएगी। अब कर लो जो करना हो। आज बैंकों के ऊपर ५ लाख करोड़ से ज्यादा का कर्ज ऐसा है जो अब नहीं वसूला जा सकता है। और उद्योगपति कोशिश कर रहे हैं कि सरकार मजदूरों के हितों को देखते हुए इस कर्ज को माफ कर दे। नहीं तो उद्योग बंद हो जाएगे और हजारों बेरोजगार हो जाएंगे। देश के राजनेताओं की कुछ ऐसी है देश भक्ति। आओ लूट लो इंडिया।

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महेश्वरी प्रसाद मिश्र
पत्रकार
[email protected]

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0 Comments

  1. Sidhartha

    October 19, 2016 at 8:53 pm

    Ab koi nyaye nahi dilwa lagega.sab thanda bister me ghus gaya.employee ki Abhi aur Gand mari jayegi likh ke le lo

  2. अरुण श्रीवास्तव

    October 21, 2016 at 3:26 am

    महेश्वरी जी आपने सोलहो आने सही कहा। अदालतें गरीबों के लिए है ही नहीं। फिर ये देती क्या हैं सिर्फ एक तारीख।
    मजीठिया वेजबोर्ड की अऔतहीन लड़ाई ने निराश ही नहीं किया है बहुतों क़ सड़क पर ला दिया है।
    रावण ने जिस तरह से शनि को अपने दरवाजे लंका में बांधकर बेबश कर दिया था ठीक उसी तरह अखबार के मालिकों ने कोर्ट को बेबस और लाचार कर दिया है।

  3. RAVI

    October 29, 2016 at 8:54 am

    VERY GOOD

    CORRECT KAHA AAP NE YAHI TO MAI SAMJA REHA TH KI HOTA HE ASA HAI JISKI LAATI USKI BHAS

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