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सुख-दुख

Zee News की HR policy की तारीफ़ करनी होगी, बीमा के जरिए रिपोर्टर शिवम की जान की कीमत 25 लाख आंकी गई

Vinod Kapri : शिवम् भट्ट। इस बच्चे को मैं जानता नहीं हूँ। ना कभी मिला। पर जब से शिवम् की मृत्यु का समाचार पढ़ा और सुना-मन बेहद उदास है। शिवम् का ज़िक्र आते ही टीवी के वो सैकड़ों शिवम् आँखो के सामने से गुज़रने लगते हैं जो दिन रात , सूखा बरसात , गर्मी सर्दी देखे बिना ख़बर की खोज में लग जाते हैं। मुंबई हमला हो , केदारनाथ त्रासदी हो या कश्मीर की बाढ़ हो – हर मैदान में रिपोर्टर या कैमरामैन बस बिना कुछ परवाह किए कूद पड़ते हैं। ऐसी हर कवरेज के दौरान मुझे इन लोगों की हमेशा सबसे ज़्यादा फ़िक्र रही। ना जाने कितने लोग इसके गवाह होंगे।

<p>Vinod Kapri : शिवम् भट्ट। इस बच्चे को मैं जानता नहीं हूँ। ना कभी मिला। पर जब से शिवम् की मृत्यु का समाचार पढ़ा और सुना-मन बेहद उदास है। शिवम् का ज़िक्र आते ही टीवी के वो सैकड़ों शिवम् आँखो के सामने से गुज़रने लगते हैं जो दिन रात , सूखा बरसात , गर्मी सर्दी देखे बिना ख़बर की खोज में लग जाते हैं। मुंबई हमला हो , केदारनाथ त्रासदी हो या कश्मीर की बाढ़ हो - हर मैदान में रिपोर्टर या कैमरामैन बस बिना कुछ परवाह किए कूद पड़ते हैं। ऐसी हर कवरेज के दौरान मुझे इन लोगों की हमेशा सबसे ज़्यादा फ़िक्र रही। ना जाने कितने लोग इसके गवाह होंगे।</p>

Vinod Kapri : शिवम् भट्ट। इस बच्चे को मैं जानता नहीं हूँ। ना कभी मिला। पर जब से शिवम् की मृत्यु का समाचार पढ़ा और सुना-मन बेहद उदास है। शिवम् का ज़िक्र आते ही टीवी के वो सैकड़ों शिवम् आँखो के सामने से गुज़रने लगते हैं जो दिन रात , सूखा बरसात , गर्मी सर्दी देखे बिना ख़बर की खोज में लग जाते हैं। मुंबई हमला हो , केदारनाथ त्रासदी हो या कश्मीर की बाढ़ हो – हर मैदान में रिपोर्टर या कैमरामैन बस बिना कुछ परवाह किए कूद पड़ते हैं। ऐसी हर कवरेज के दौरान मुझे इन लोगों की हमेशा सबसे ज़्यादा फ़िक्र रही। ना जाने कितने लोग इसके गवाह होंगे।

शिवम् के बहाने आज फिर अपने दोस्तों से अपील करना चाहूँगा। कवरेज कितनी ही ज़रूरी क्यों ना हो , ड्राइवर पर बिलकुल दबाव मत डालो कि वो तेज़ चलाए। दफ़्तर से दबाव कितना ही हो – कवरेज के दौरान रिस्क मत लो। मैं जानता हूँ कि बीसियों बार अपने रिपोर्टर से कुछ ख़ास करने के लिए मैंने भी कहा होगा पर साथ ही आख़िरी में एक बात हमेशा जोड़ी कि किसी भी क़ीमत मे रिस्क नहीं। खाने पाने का ख़्याल रखो। बीमार हो जाओ तो तुरंत इलाज कराओ। हो सकता है कुछ लोगों को अजीब लग रहा हो पर आज शिवम् के बहाने इसलिए कह रहा हूँ क्योंकि ज़्यादातर न्यूज़ चैनलों में आपके जाने के बाद आपके परिवार को पूछने वाला एक व्यक्ति भी नहीं होता।

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Zee News की HR policy की तारीफ़ करनी होगी कि बीमा के ज़रिए एक रिपोर्टर की जान की क़ीमत 25 लाख तो आँकी गई पर दुर्भाग्य ये है कि ज़्यादातर संस्थानों , नब्बे फ़ीसदी चैनलों मे एक रिपोर्टर की जान की क़ीमत 2 लाख भी नहीं है। साथी-दोस्त उसके बाद अपनी एक एक दिन की सैलरी देकर कुछ कर दें तो ठीक है वर्ना संस्थान से उम्मीद बेमानी है।

इसलिए दोस्तों !! ख़ासतौर पर फ़ील्ड मे जाने वाले सभी दोस्तों – फ़ील्ड मे आप लोग सबसे पहले अपना ख़्याल रखिए। ख़बर अहम होती है , होनी भी चाहिए पर जान की क़ीमत पर नहीं। शोले का वो संवाद याद आ रहा है – जानते हो दुनिया का सबसे बड़ा दुख क्या होता है ? बाप के कंधे पर जवान बेटे का जनाजा। आप सब भी जवान हो। माता पिता की उम्मीदें हो। सपने हो। सबकुछ करो पर जान की क़ीमत पर कुछ नहीं !!

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शिवम् भी सिर्फ़ 24 साल का था। बताया गया कि अभी 3 या 4 दिसंबर को वो 25 का हो जाता। उसके परिवार का दर्द हम समझ ही नहीं सकते। ये भी सुना है कि उसने अपनी आख़िरी स्टोरी का स्लग दिया था – Shivam Final input !!! तब कौन जानता था कि उसके लिखे को हम आज इस रूप में पढ़ रहे होंगे। शिवम् को मेरी श्रद्धांजलि और आप सबसे फिर अपील- अपना ख़्याल रखिएगा।

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0 Comments

  1. amit kumar

    November 24, 2014 at 6:41 pm

    It’s true Vinod Sir.
    I miss my best friend

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