मैं शिवानी चौधरी आगरा से हूँ। प्रिंट मीडिया में पोस्ट ग्रेजुएशन करने के लिए नोएडा आई और 2018-19 में माखनलाल चतुर्वेदी नेशनल जर्नलिज्म यूनिवर्सिटी से मीडिया का कोर्स कर चुकी हूँ।
दरअसल, मीडिया में होने वाली धांधली बाजी और राजनीति झेलने या देखने की शुरुआत तो कॉलेज से ही हो चुकी थी। एमसीयू नोएडा की हालत इतनी लचर है की अब यह कैंपस ही बंद होने को है, लगभग बंद हो चुका है। हालाँकि एमसीयू नोएडा कैंपस के बंद होने की वजह अलग है। मेरे जैसे स्टूडेंट्स अपना घर छोड़कर बड़े शहरों में पढ़ाई करने आते हैं, लेकिन पढ़ाई के नाम पर कॉलेज आपको महज एक डिग्री थमा देता है तो हर एक सेकंड यही लगता है अपने पापा का पैसा इधर बर्बाद क्यों कर दिया। किसी भी तरह के स्किल्स सिखाने पर कॉलेज प्रशासन ने कभी ध्यान नहीं दिया।
अगर यह लेख पढ़ने पर मेरे कॉलेज से टीचर्स खासकर MJ branch की कोऑर्डिनेटर रजनी नागपाल का बयान आता है की शिवानी चौधरी या तमाम स्टूडेंट्स कॉलेज ही नहीं आते थे, तो हम सुविधाएँ किसके लिए मुहैया करवाएं। तो मैं बता देना चाहूँगी मेरा एडमिशन 3rd सेमेस्टर अगस्त के आखिरी वीक में हुआ था। कॉलेज में एडमिशन लेने के महज एक महीने के भीतर मैंने एक शार्ट फिल्म का लेखन और डायरेक्शन किया। कॉलेज फेस्ट में एंकरिंग में पार्टिसिपेट किया। मतलब साफ़ है मुझे कॉलेज रेगुलर आने में या किसी भी एक्टिविटी में पार्टिसिपेट करने से कभी डर नहीं लगा। क्यूंकि मैं बहुत कुछ सीखना चाहती थी।
कॉलेज में टीचर्स का व्यवहार और लचर व्यवस्था देखकर कॉलेज आने का मन नहीं करता। फिर सोचा कॉलेज में तो कुछ सीखने से रहे तो कहीं न्यूज़ चैनल में इंटर्नशिप के लिए कोशिश करते हैं। लेकिन हमको मीडिया में एंट्री मिलने का प्रोसीजर ही नहीं पता था। बहुत रिज्यूमे भेजे, खुद कई सरे मीडिया हाउसेस में रिज्यूमे देकर आते पर कहीं से कोई पूछने वाला नहीं।
खैर इन सब भसड़ में सीखा भी बहुत।
उसके बाद शुरू हुआ मीडिया में नौकरी पाने-बचाने का स्ट्रगल। मेरा कॉलेज प्लेसमेंट हुआ था। लाइव इंडिया डिजिटल वेबसाइट के लिए मेरा सलेक्शन हुआ। साथ में 5 -6 स्टूडेंट्स का भी लाइव इंडिया के लिए सलेक्शन हुआ। वैसे, मैं खुद हैरान थी की मेरा सलेक्शन कैसे हो गया क्यूंकि कॉलेज प्लेसमेंट आने तक मैं MJ branch की कोऑर्डिनेटर रजनी नागपाल की नजरों में विलेन बन चुकी थी। क्यूंकि रेगुलर कॉलेज ना आने के लिए मैंने मैम को किसी भी तरह की जवाबदेही देना जरूरी नहीं समझा था। इसी वजह से रजनी नागपाल जी का व्यवहार मेरे लिए कुछ ख़ास अच्छा नहीं रहा।
हो सकता है मेरा तरीका गलत हो।
लाइव इंडिया में पहले के दो तीन दिन तो ठीक चला हमारे ऊपर कोई ज्यादा वर्क प्रेशर नहीं था। लेकिन कुछ दिन बाद से ही ज्यादा से ज्यादा स्टोरीज लिखने का प्रेशर बनाया जाने लगा। फिर एक दिन साफ़ कह दिया की एक दिन में दस स्टोरीज किसी भी कीमत पर करनी हैं नहीं तो अपनी नौकरी गँवाने के जिम्मेदार आप ही होंगे। मेरे साथ साथ कई एम्प्लाइज इस बात से परेशान रहने लगे। ऑफिस में सभी फ्रेशर्स थे, सभी की नई नौकरी लगी थी और कोई भी अपनी नौकरी नहीं गँवाना चाहता था।
करियर की शुरुआत में ही इधर उधर से टीप – टाप के लिखने के लिए जमीर जवाब नहीं दे रहा था। इसलिए जितनी स्टोरीज पूरे दिन में करती उसे रिसर्च करके ही लिखती। तो जाहिर है मैं टारगेट पूरा करने में असमर्थ रही और एक दिन ऑफिस से नौकरी से निकाले जाने का मेल भेज दिया गया। मन बहुत दुखी था इसलिए बिना कोई हिसाब किताब किए लाइव इंडिया से चली गई। नई नौकरी ढूंढना शुरू कर दिया। एक स्टार्टअप न्यूज़ एजेंसी में काम करने का मौका मिला। XYZ न्यूज़ एजेंसी में मुझे बतौर डेस्क कोऑर्डिनेटर कम रिपोर्टर की पोस्ट पर नियुक्त किया गया था।
न्यूज़ एजेंसी में डेस्क कोऑर्डिनेटर के तौर पर चार महीने लगातार काम करती रही लेकिन रिपोर्टिंग पर जाने का एक भी चांस नहीं मिला। मैंने अपने बॉस लोकेन्द्र सिंह जो की 17 वर्षों से ANI जयपुर के ब्यूरो चीफ रह चुके हैं से कहा कि सर मुझे रिपोर्टर प्रोफाइल के लिए नियुक्त किया गया था लेकिन मौक़ा पिछले पांच महीने में एक बार भी नहीं मिला है। मैं हमेशा से ही सीखने में विश्वास रखती आई हूँ इसलिये कभी भी तनख्वाह को लेकर लालची नहीं रही। महज 8,000 के वेतन पर मैं रिपोर्टिंग करने को भी तैयार थी।
काफी दिन तक सर मेरी बातों को घुमाते रहे। इसके बाद XYZ न्यूज़ एजेंसी से भी निकाल दिया गया। अक्टूबर 2019 के बाद मैंने बहुत सीनियर्स से संपर्क किया, मदद के लिए पूछा लेकिन कहीं से कोई जुगाड़ बना नहीं पाई। मैं एवरेज हूँ लेकिन ज़बरदस्त सिखने की और अच्छा काम करने की इच्छा रखती हूँ। हो सकता है तमाम स्टूडेंट्स इन परिस्तिथियों से गुजर चुके होंगे इसलिए चुप मत रहिये। एक बार तो अपने लिए भी बोलना जरूरी है।
शिवानी चौधरी
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Faisal mazz
June 15, 2020 at 4:15 pm
मेरा नाम फैसल माज हैं और अभी मुज़फ्फरनगर श्री राम कॉलेज से JMC ही कर रहा हूं और मेरा 2nd था इस साल आपने सही कहा कि अपने लिए आवाज़ उठाओ ,बीते 20 दिनों पहले मैंने भी आवाज़ उठाई थी ऑनलाइन क्लास के दौरान मैंने टीचर्स को बोला था कि सिर्फ theory पढ़ाते हो प्रक्टिकली कुछ भी नही हैं कैसे आगे बढ़ेंगे उसके वो बात हमारे HOD तक पहुंची जिसके बाद मेरे पास कॉल आती हैं HOD की तुम रेगुलर ही कितने रहे हो जबकि में 1st year में रेगुलर रहा हूँ जिसके चलते मुझे 2nd ईयर में क्लास का CR भी बना दिया गया था HOD द्वारा लेकिन जब मुझे एहसास हुआ कि study समाप्ति की और हैं और मैंने अबतक सीखा क्या हैं तब मैंने रेगुलर ना रह कर एक छोटे से वेब पोर्टल में काम करना शुरू कर दिया वहां से में रिपोर्टिंग करने लगा voice over बेटर करने लगा यानी के वहां भी जो भी काम करने के लिए आता था उनको में train करने लगा था जितना भी मुझे आता था ,फिर जब लगभग 5 month हो गए करते करते औऱ इनकम भी नही थी तो घरवाले बोलने लगे कि ना clg जाता ना कुछ कमाई ही कर रहा हैं फिर मैंने वहां भी छोड़ दिया अब सोच रहा हूँ clg है रेगुलर जाने लगू क्योकि घरवालो को ये भी तो नही बता सकता कि clg में कुछ नही सिखाया जाता उनको तो लगता हैं कि सब कुछ clg में ही होता हैं ,अब तो घरवालो से पैसे भी मांगते हुए डर लगता हैं 2 साल रूम पर रह हूँ पता नही कैसे कैसे करके अब रूम पर भी रहते हुए डर लगने लगा खर्च कैसे उठाऊंगा ,अभी बीते 15 दिनों पहले मेरे सीनियर हैं तंज़ीम राणा उन्होंने मेरे पास msg किया फेसबुक पर शायद मेरी उपलब्धियां देख कर में अक्सर उनको tag करता रहता था अब एक न्यूज चैनल में काम के लिए की अपना इलाका देख लो सहारनपुर अब उनको कैसे बताऊ की क्या सिचुएशन हैं मेरी किस उलझन में फंसा हुआ हूँ मैं ,बाते तो बहुत हैं आपकी ये स्टोरी पढ़ कर भावुक हो उठा था तो दिल की बात बयान करदी ,,धन्यवाद
Archana
June 15, 2020 at 6:16 pm
Shivani जी ये सबके साथ होता है…. इसमें कुछ नया नहीं… मीडिया मे आना है तो सब झेलना पड़ता है…. खैर संघर्ष करो… पहुँचोगी कहीं न कहीं…
Kisan kumar
June 16, 2020 at 11:50 am
ऐसा भी होता है
राकेश कुमार
June 16, 2020 at 1:51 pm
शिवानी जी आपने बहुत अच्छा लिखा और आपने अपनी दिल की बात लिखी। मगर किसके लिए लिखा? संस्था के खिलाफ लिखा, अपने खिलाफ लिखा या मीडिया संस्थानों के खिलाफ लिया? कुछ समझ नहीं आ रहा कहा जाता है । अगर सीखने की ललक हो तो कहीं पर भी सीखा जा सकता है। अगर आपके अंदर सीखने की ललक होती तो आप संस्था के किसी शिक्षक के ऊपर प्रश्नवाचक चिन्ह नहीं लगाती और ना ही आप अपनी कमजोरियों को साझा करती है। शायद आपमें उत्साह ज्यादा है सीखने की ललक कम है इसी वजह से आप दो जगह पर सही तरीके से काम नहीं कर पाई। आज के समय में बहुत कम लोगों को काम करने का मौका मिलता है मगर कुछ लोग उसको भुला पाते हैं। इसीलिए जरूरत है मेहनत करने की ना कि अचानक से सारी ऊंचाइयों प्राप्त कर लेने की।इसीलिए धैर्य बनाए रखें मेहनत करें और अपने गुरुओं का सम्मान करें तभी आप जीवन में आगे बढ़ सकती हैं। बिना गुरुओं के सम्मान की कोई भी आज तक आगे नहीं बढ़ पाया है भगवान भी नहीं। इसीलिए नकारात्मक छोड़कर सकारात्मक के साथ आप आगे बढ़े, आपके साथ हमेशा अच्छा होगा। धन्यवाद।
XYZ SR
June 16, 2020 at 9:10 pm
मेरे नाम में क्या रखा है, सच बात बताता हूं,ज़ी मीडिया ZEE_MEDIA ZIMA ZEE_GROUP कि इससे भी बुरी हालत है, एक स्टूडेंट को जीमा के जरिए बुलाया जाता है, 3 लाख बीस ली जाती है,5 महीने लगातार नाइट लगाकर कुत्तों कि तरह काम कराया जाता है और जब पेड़ करने कि बात आती है तो जगह नहीं होती..! में खुद की ही बात कर रहि हूं, मेरे घरवाले किसान हैं कोई व्यापारी नहीं जो 1 साल तक फीस भी दें मेरा खर्चा भी और बाद हमें महन्त और नाइट करने के बाद जबाव मिले जगह नहीं है, फिर 100% प्लेसमेंट कहकर बच्चों को ठगने लूटने औश्र छल कपट करने कि जरूरत क्या..! बहार भीख मांगने लगें..! ज़ीमा वाले , जब मैं काम कर रहि था रात में 6 महिनों से तो जी के एक सहाब के पास पेड़ कि बात करने गया तो भाईसाहब ने पहचाना तक नहीं था,मैने बात भी की तो वोले मैं तो उस आखरी रात ही जी संस्थान को आग लगा देता जिसने मुझे और मेरे परिवार के विश्वास को धोका दिया, फिर ख्याल आया की 200 परिवारों का घर चलता है, सिकायत भी नहीं की सोचा कहीं और भी मेरे लिए नौकरी पाने हानीकरक ना हो कहीं, सच बता रहा हूं मेरे आंसू भी आए कि गांव और घर से करता सोचकर निकला था और क्या मुंह लेकर जाउंगा विचार बहुत बुरे आ रहे थे पर मैं बड़ी हिम्मत के साथ गांव आ गया बेरोजगार ,घर वालों को नहीं बताया कि मेरा सब खत्म हो गया..! सबके साथ यही कर रहे हैं, बच्चों के 1_3 साल खराब पैसा और भविष्य सब खराब नौकरी सिर्फ़ उनकी चहिती लड़कियों को मिलती है..! भेदभाव वाले मिडिया नए लोगों को इतना सताती है तो आप समझें और बच्चों को बचाएं..!